2027 की जंग:सत्ता का शंखनाद

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2027 की जंग:सत्ता का शंखनाद
2027 की जंग:सत्ता का शंखनाद
संजय सक्सेना
संजय सक्सेना

महासंकल्प रैली’ से मायावती की वापसी की पटकथा तैयार, 2027 की जंग का शंखनाद। लखनऊ की बहुचर्चित ‘महासंकल्प रैली’ ने उत्तर प्रदेश की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। लंबे समय से राजनीतिक परिदृश्य से दूर रहीं मायावती ने इस रैली के ज़रिए अपनी वापसी का बिगुल बजा दिया है। मंच से दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की बात करते हुए उन्होंने 2027 के विधानसभा चुनाव की दिशा स्पष्ट कर दी। 2027 की जंग:सत्ता का शंखनाद

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर मायावती की वापसी की दस्तक सुनाई दे रही है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती 9 अक्टूबर को लखनऊ के ‘मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल’ पर विशाल ‘महासंकल्प रैली’ के जरिए अपनी राजनीतिक ताकत का जोरदार प्रदर्शन करने जा रही हैं। यह रैली न केवल बसपा के संस्थापक कांशीराम को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर है, बल्कि मायावती द्वारा पार्टी को दोबारा पटरी पर लाने और 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी का बिगुल फूंकने का भी मंच बन गई है। को लेकर बसपा संगठन के तमाम बड़े चेहरे, जैसे आकाश आनंद, दिनेश चंद्र, घनश्याम चंद्र खरवार, नौशाद अली, विश्वनाथ पाल, भीम राजभर, गयाचरण दिनकर, शमशुद्दीन राइनी समेत ज़िला, मंडल और सेक्टर स्तर तक के कार्यकर्ता सक्रिय हैं। पार्टी ने रैली में  5 लाख से अधिक लोगों  को जुटाने का दावा किया है।

अगर यह संख्या पूरी होती है, तो यह मायावती के लिए न केवल मनोबल बढ़ाने वाला क्षण होगा, बल्कि 2007 जैसे राजनीतिक प्रभाव की पुनरावृत्ति भी हो सकती है यह रैली इसलिए भी ऐतिहासिक मानी जा रही है क्योंकि 9 अक्टूबर कांशीराम की पुण्यतिथि है। कांशीराम, जिन्होंने बहुजन आंदोलन को एक नई दिशा दी थी, उनके विचारों को जमीन पर उतारने वाली नेता के तौर पर मायावती खुद को प्रस्तुत करती रही हैं। ऐसे में यह आयोजन कांशीराम को श्रद्धांजलि देने से कहीं आगे बढ़कर, बसपा के ‘राजनीतिक पुनर्जीवन’ का रोडमैप भी पेश करेगा।मायावती ने 2007 में जिस स्थान से बहुजन वोटबैंक को एकजुट कर बहुमत की सरकार बनाई थी, उसी स्थान से अब फिर एक नए युग की शुरुआत करना चाहती हैं। तब उन्होंने ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ का नारा दिया था। इस बार क्या नया नारा और नया संदेश दिया जाएगा, इस पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

रैली की तैयारियों में बसपा कोई कसर नहीं छोड़ रही है। प्रदेश के हर जिले से भीड़ जुटाने की ज़िम्मेदारी अलग-अलग नेताओं को दी गई है। जिलाध्यक्षों को लक्ष्य सौंपा गया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों से समर्थकों को बसों, ट्रेनों और निजी वाहनों के माध्यम से 8 अक्टूबर की रात तक लखनऊ पहुंचाएं। रैली स्थल पर ठहरने, खाने-पीने और सुरक्षा की व्यवस्थाएं भी पूरी कर ली गई हैं। कांशीराम स्मारक स्थल, जिसकी क्षमता लगभग 5 लाख लोगों की है, को पार्टी नीले झंडों और ‘I Love BSP’ जैसे पोस्टरों से पाट चुकी है।वहीं दूसरी ओर, लखनऊ नगर निगम और पुलिस प्रशासन भी रैली को लेकर सतर्क हो गया है। यातायात व्यवस्था से लेकर सुरक्षा घेरे तक सब कुछ चाक-चौबंद किया जा रहा है। स्थानीय प्रशासन को यह भली-भांति ज्ञात है कि इस रैली का असर राज्य की राजनीति पर पड़ेगा।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह रैली मायावती के लिए सिर्फ एक इवेंट नहीं, बल्कि उनकी  राजनीतिक वापसी का ट्रेलर है। 2012 के बाद से बसपा सत्ता से बाहर रही है, और लोकसभा चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा है। ऐसे में अब मायावती पार्टी की खोई हुई ज़मीन को फिर से पाने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।मिशन–2027 मायावती के लिए सिर्फ सत्ता पाने का अवसर नहीं, बल्कि बसपा की विचारधारा को पुनर्स्थापित करने का माध्यम भी है। मायावती जानती हैं कि दलित वोटबैंक का एक बड़ा हिस्सा अब भाजपा और सपा की ओर आकर्षित हो चुका है। ऐसे में ‘महासंकल्प रैली’ के जरिए वह यह संदेश देना चाहती हैं कि बसपा अभी भी मैदान में है, और दलितों-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों के हितों की असली संरक्षक वही हैं।

रैली में सबसे दिलचस्प पहलू यह होगा कि मायावती के भतीजे आकाश आनंद की पार्टी में दोबारा सक्रिय भूमिका की घोषणा हो सकती है। बीते कुछ महीनों से उनके हाशिए पर रहने की अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन अब संगठन की ओर से जो संकेत मिल रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि युवाओं को जोड़ने के लिए पार्टी एक बार फिर आकाश को फ्रंटफुट पर लाना चाहती है।आकाश की उपस्थिति मायावती की सियासी सोच में बदलाव का प्रतीक मानी जा रही है। यह बदलाव न केवल नेतृत्व स्तर पर है, बल्कि संगठन की कार्यशैली में भी नयापन लाने की कोशिश है। मायावती इस रैली से दोहरा संदेश देना चाहती हैं पहला, अपने कोर वोटबैंक को फिर से संगठित करना; और दूसरा, भाजपा व सपा जैसे दलों को यह बताना कि बसपा को अब नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है।भाजपा जहां हिंदू मतों के ध्रुवीकरण में व्यस्त है, वहीं सपा मुस्लिम-पिछड़ा दलित समीकरण पर काम कर रही है।

ऐसे में मायावती की रणनीति है “सामाजिक न्याय + कानून व्यवस्था + मजबूत नेतृत्व” को एक पैकेज के रूप में पेश करना।उनका फोकस खासकर जाटव, पासी, लोध, कुशवाहा, मौर्य, मुस्लिम और अन्य वंचित वर्गों को एक मंच पर लाने पर रहेगा। इससे बसपा न सिर्फ पारंपरिक वोटों को समेटेगी, बल्कि सपा और कांग्रेस की गैर-यादव पिछड़ा और गैर-जाटव दलित रणनीति को भी चुनौती देगी।इस रैली को लेकर न केवल प्रदेश, बल्कि राष्ट्रीय मीडिया की भी खास नज़र है। टीवी चैनलों पर लाइव कवरेज की तैयारी हो चुकी है और सोशल मीडिया पर पहले से ही #BSPMahasankalpRally ट्रेंड करने लगा है। मायावती का भाषण इस रैली का केंद्रबिंदु होगा, जिसमें वह आने वाले महीनों के लिए पार्टी की नीति, संगठनात्मक बदलाव और राजनीतिक गठबंधनों पर अपने इरादे जाहिर कर सकती हैं।

उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से अगर बसपा को 2027 में मजबूत प्रदर्शन करना है, तो उसे कम से कम 100+ सीटों पर सीधी टक्कर देनी होगी। 2022 में पार्टी केवल 1 सीट जीत पाई थी, जो अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। ऐसे में इस रैली के जरिए कार्यकर्ताओं और समर्थकों में जोश भरना, संगठन को जीवंत करना और नए चेहरे पेश करना अनिवार्य हो गया है राजनीति के जानकार मानते हैं कि यदि बसपा इस रैली में भारी भीड़ लाने में सफल रहती है और मायावती स्पष्ट संदेश देती हैं, तो यह विपक्षी दलों की रणनीति को हिला सकता है।‘महासंकल्प रैली’ सिर्फ एक शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि मायावती के लिए नई राजनीतिक पारी की शुरुआत है। यह दिखाने का समय है कि बसपा खत्म नहीं हुई, बल्कि अब और मजबूत होकर उभर रही है। कांशीराम की विरासत को लेकर चल रही इस राजनीतिक यात्रा में अब नया मोड़ आ गया है।अगर यह रैली सफल रही, तो मायावती और बसपा एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में लौट सकते हैं। और अगर नहीं, तो यह आखिरी मौका भी हो सकता है। 2027 की जंग:सत्ता का शंखनाद