MSP के लिए संघर्ष होगा तेज

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MSP के लिए संघर्ष होगा तेज
MSP के लिए संघर्ष होगा तेज

MSP के लिए संघर्ष तेज करो -अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा

लखनऊ। आज जिस तरह से कृषि का व्यवसाय घाटे का सौदा बनता जा रहा है वह किसान व खेत मजदूरों के लिए अपने वजूद को बचाने का सवाल बन गया है । 13 महीने के ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने मोदी सरकार को तीन काले कृषि कानून वापस करवाने को बाध्य किया । दूसरी बड़ी मांग एमएसपी पर खरीद की गारंटी पर कमेटी बनाने का आश्वासन देने के बावजूद केंद्र सरकार इससे मुकर गई । देश के किसानों की मांग है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार C 2 + 50% के फार्मूले के आधार पर एमएसपी तय किया जाए। इसका मुख्य कारण यह है की कृषि उत्पादों के लागत मूल्यों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है जैसे खाद, बीज,दवाई,मशीनरी,डीजल- पेट्रोल आदि।
कृषि उत्पादों की एमएसपी खर्चों के अनुसार नहीं बढ़ रही इसका नतीजा यह है कि किसान ,खेत-मजदूर कर्जदार होकर आत्महत्या करने को मजबूर हैं।

उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों के परिणाम स्वरूप बेरोजगारी ने आज तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए । कारपोरेट घरानों को पालने पोसने वाली है सरकार उस एमएसपी पर भी फसलों की खरीद नहीं कर रही जो इस ने स्वयं घोषित किए हैं अर्थशास्त्री बता रहे हैं की हरियाणा में केवल इस सीजन में सरसों के रेटों में किसानों की 20 हजार करोड रुपए की लूट की है । अभी-अभी खरीफ की फसलों के जो एमएसपी तय किए गए हैं उनमें C2 + 50% के हिसाब से एमएसपी न लगाए जाने से अलग-अलग फसलों पर किसानों को प्रति क्विंटल जो घाटा होगा वह इस प्रकार है

धान ₹683 प्रति क्विंटल
जवार 1969 रुपए प्रति क्विंटल
बाजरा ₹216 प्रति क्विंटल
मूंग 2269 रुपए प्रति क्विंटल
कपास ₹2059 प्रति क्विंटल
सोयाबीन 1428 रुपए प्रति क्विंटल
सूरजमुखी ₹80 प्रति क्विंटल
मक्का ₹605 प्रति क्विंटल।

इस आधार पर देश में जितनी फसल की कुल उपज होती है उसके हिसाब से आप जोड़ सकते हैं कि कुल कितना घाटा किसानों को होता है यह किसान का घाटा सीधा-सीधा कारपोरेट कंपनियों का मुनाफा है। जो सरकार करवा रही है आगे खुले बाजार की व्यवस्था करते हुए यह सरकार की प्रणाली को खत्म करने की मंशा रखती है यदि यह होता है तो देश की खाद्य सुरक्षा खत्म हो जाएगी इसलिए हमारी मांग है की उत्पादन करने वालों को पूरा एमएसपी मिले और उपभोक्ता यानी खपत करने वालों को भी उचित रेट पर अनाज सब्जी फल आदि मिले आप जरा देखें कि टमाटर उगाने वालों से कोई दो रुपए किलो खरीदने को तैयार नहीं था वही टमाटर आज ₹100 किलो के भाव से बिक रहा है यही स्थिति डेयरी उत्पादों की भी है इसलिए किसानों को उनकी कृषि की आजीविका और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बचाने हेतु मौजूदा कारपोरेट परस्त दिवालिया नीतियों को बदलकर वैकल्पिक नीतियों के लिए संघर्ष तेज करना जरूरी हो गया है। इसलिए किसानों मजदूरों कर्मचारियों आदि तबकों को एकता बनानी होगी इसी एकता के बल पर संयुक्त संघर्ष करके ही भाजपा सरकार के फुटपरस्त षड्यंत्रों को विफल किया जा सकता है जो वह हिंदू- मुस्लिम और जात- पात के आधार पर लोगों को बांट रही है और उनकी रोजी रोटी और अधिकारों को नष्ट करके तानाशाही थोंपने में लगी है।