धुआं तभी उठता है जब चिंगारी लगी हो..!

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धुआं तभी उठता है जब चिंगारी लगी हो..!
धुआं तभी उठता है जब चिंगारी लगी हो..!

अशोक भाटिया

राजनीति भी बेहद दिलचस्प होती है। यहां सामने कुछ और चलता है और परदे के पीछे कुछ और होता दिखाई दे जाता है। कुछ ऐसा ही झारखंड के सियासत में इन दिनों एक तूफान मचा हुआ है। चर्चा से उठे इस तूफान का नाम चंपई सोरेन है। मीडिया में चर्चा से लेकर सियासी गलियारे तक में यह खबर फैली कि कोल्हान के टाइगर भाजपा  के संपर्क में हैं। दरअसल, इसके पीछे एक बड़ा आधार चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने के तरीके को भी बनाया गया। दावा तो यहां तक किया गया कि संथाल की लड़ाई का मुकाबला अब भाजपा  कोल्हान के हथियार से लड़ेगी।जो लोग चंपई के भाजपा से तार जुड़े होने की खबरों को सकारात्मक ले रहे थे वे उनकी नाराजगी को बड़ी वजह मान रहे थे। दरअसल, चंपई सोरेन ने कई राजनीतिक मंचों से अपनी नाराजगी को इशारों में जाहिर भी किया है। हालांकि इसी बीच भाजपा  विधायक सीपी सिंह का इशारों में दिया गया यह बयान कि राजनीति में कौन किधर जायेगा, इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि चंपई सोरेन के भाजपा  से संपर्क होने की जानकारी काफी चर्चा में है। सीपी सिंह ने कहा कि आज की राजनीति में कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह पार्टी छोड़कर नहीं जा सकता। धुआं तभी उठता है जब चिंगारी लगी हो..!

गौरतलब है कि भारत का पूर्वी राज्य झारखंड, साल 2000 में अस्तित्व में आया और अब जब वह अपना 24वां पूरा कर रहा है तो एक बार फिर यहां की राजनीति अपने उसी दौर से गुजर रही है जिसके लिए झारखंड मशहूर रहा है। बीते 24 सालों में राज्य ने बेहद छोटे-छोटे दौर वाले कई मुख्यमंत्री देखे हैं। ये सिलसिला राज्य के निर्माण के साथ ही शुरू हो गया था और फिर ये बात सिद्ध होती चली गई कि ‘राजनीतिक रूप से झारखंड अस्थिरता वाला राज्य है।’ आज इस अस्थिरता की बात इसलिए क्योंकि ताजा सिनेरियो इसी से जुड़ गया  है। हुआ यूं है कि बीती जुलाई झारखंड के मुख्यमंत्री  रहे चंपई सोरेन ने इस्तीफा दे दिया था। उनका मुख्यमंत्री  बनना भी एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम था जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री  रहे हेमंत सोरेन जब जेल भेजे गए थे तब उन्होंने मुख्यमंत्री  कुर्सी चंपई सोरेन के हवाले कर दी थी। मुख्यमंत्री  सोरेन को खनन मामले में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते गिरफ्तारी देनी पड़ी थी।

तकरीबन पांच महीने बाद जब हेमंत सोरेन बाहर आए थे तब उन्होंने सत्ता में वापसी की और चंपई सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा. हेमंत सोरेन एक बार फिर मुख्यमंत्री  बने, लेकिन तब से ही चंपई सोरेन के बगावती तेवर की खबरें सुर्खियों में थीं। उनके नाराज होने की अटकलें थीं। सोशल मीडिया से लेकर खबरों तक में सूत्रों के हवाले से ऐसे दावे किए गए कि चंपई सोरेन नाराज हो गए हैं हालांकि उनकी तरफ से इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई लेकिन  रविवार के घटनाक्रम से स्पष्ट है कि कोल्हान क्षेत्र का यह नेता 3 जुलाई के बाद से पार्टी जेएमएम और मुख्यमंत्री  हेमंत सोरेन से नाराज तो हो ही गया था हालांकि चंपई सोरेन अभी तक इस बारे में खुद इसे कभी स्पष्ट तौर पर नहीं स्वीकारा था। 

झारखंड में  शुक्रवार तब  अचानक ही सियासी हलचल तेज हो गई थीं  जब यह खबरें सामने आईं कि पूर्व मुख्यमंत्री  चंपई सोरेन, हेमंत सोरेन और पार्टी के साथ बगावत करने वाले हैं। वह दिल्ली में भाजपा  शीर्ष नेतृत्व से मिलने पहुंचे हुए हैं। झारखंड में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राज्य से पूर्व मुख्यमंत्री  और जेएमएम नेता चंपई सोरेन के भाजपा  में जाने की अटकलें लगती रहीं।  इन चर्चाओं के बीच शुक्रवार को जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने पत्रकारों के सवाल पर मुस्कुराते हुए सिर्फ इतना कहा, “आप लोग ऐसा सवाल कर रहे हैं पर, इस पर क्या बोलें, हम तो आपके सामने हैं।” इतना बोलते ही वह गाड़ी में बैठ गए। बता दें कि, हेमंत सोरेन के जेल से वापस आने के बाद चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री  पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद से ही उनके नाराज होने की चर्चा उठती रही है।

सूत्रों के मुताबिक चंपई शनिवार को कोलकाता पहुंचे और फिर रविवार दोपहर दिल्ली। माना जा रहा है कि भाजपा  के कुछ सीनियर नेताओं से उनकी फोन पर भी बातचीत हुई और जल्द ही आमने-सामने की मीटिंग भी हो सकती है। चंपई सोरेन का दिल्ली में तीन दिन रहने का प्लान है। चंपई सोरेन के अलावा जेएमएम के 5-6 और विधायकों के भी अलग से भाजपा  के संपर्क में होने की चर्चा चल रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के पुराने 4 दशकों से सिपहसलार  और लेफ्टिनेंट चंपई सोरेन का अपने ही पार्टी से मोहभंग हो गया। उन्होंने जेएमएम पर अपमानित करने का आरोप लगाते हुए अपनी राहें जुदा करने का इरादा स्पष्ट कर दिया है। सोरेन ने कहा है कि आगे का हमसफर चुनने के लिए उनके तमाम विकल्प खुले हुए हैं। 

उनका आरोप है कि उन्हें बेआबरू करके सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। उनके तमाम अधिकार अपनी ही पार्टी और हेमंत सोरेन के करीबियों के द्वारा फ्रीज कर दिए गए थे। बगैर एजेंडा बताए विधायक दल की बैठक बुलाकर इस्तीफा देने का आदेश पारित कर दिया गया था। तमाम कार्यक्रम में जाने पर तीन दिनों तक  रोक लगा दी गई थी। लिहाजा उन्होंने तय कर लिया था या तो वो संन्यास ले लेंगे, या फिर समानांतर संगठन खड़ा करेंगे या फिर कोई साथ चलने के लिए हमसफर चुन लेंगे यानी पार्टी छोड़ने की अनौपचारिक घोषणा वो कर चुके हैं।

हालांकि उनके जाने से सरकार की सेहत पर फिलहाल फर्क पड़ता नहीं दिखता। झारखंड में 81 सीटों वाली विधानसभा में 8 सीट खाली हैं, जबकि जेएमएम के पास 26, कांग्रेस के पास 16 और राजद के पास एक विधायक है। सीपीआईएमएल विधायक विनोद सिंह भी सत्तापक्ष में हैं। 37 का आंकड़ा बहुमत की संख्या है। इधर भाजपा  के पास 23, आजसू के पास 3, एनसीपी के पास 1, और 2 निर्दलीय भी एनडीए के खेमे में है। यानी हेमंत सरकार पर फिलहाल कोई खतरा मंडराता दिखता नहीं है।

हालांकि चंपई की सराहना भाजपा  लगातार करती रही है। ये भी कहती रही है कि उनके साथ काफी बुरा बर्ताव जेएमएम ने किया है। उनको दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया गया, साफ है कि भाजपा  विधानसभा चुनावों में ये नैरेटिव गढ़ना चाहती है कि जेएमएम में आदिवासी नेता को भी अपमानित किया जाता है तो आखिर पार्टी किस आदिवासी अस्मिता के नाम पर वोट मांगती फिरती है। जो चंपई सोरेन जैसे दशकों पुराने वफादार का नहीं हो सका वो आखिर आम लोगों से कैसे वफादारी निभाएगा।

जाहिर है चंपई सोरेन जो पुराने और बड़े कद के नेता रहे हैं, कहा जा रहा है कि उनको सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद से ही भाजपा  चारा डाल रही थी। जेएमएम का आरोप है कि भाजपा  घर और पार्टी दोनों में फूट डालने वाली पार्टी है। भाजपा के चुनाव प्रभारी और सह चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान के साथ हिमंता बिस्वा सरमा के संपर्क में होने का दावा भी किया जा रहा है। हालांकि भाजपा  का कोई नेता खुलकर कुछ नहीं कह रहा है। भाजपा  प्रवक्ता प्रतुल शहदेव ने कहा कि चंपई सोरेन के पोस्ट ने साफ कर दिया कि जेएमएम में तानाशाही चलती हैं। शिबू सोरेन के बाहर परिवार का कोई भी आदिवासी जेएमएम को बर्दाश्त नहीं ये साफ हो गया है।

हालांकि, पॉलिटिकल एक्सपर्ट बैद्यनाथ मिश्रा यह मानते हैं कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं। इसके पीछे चंपई सोरेन के दिल में छिपी पीड़ा का तर्क दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि चंपई अगर भाजपा  में आते हैं तो पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री तो नहीं बनाने वाली क्योंकि भाजपा  के पास अपना मुख्यमंत्री कैंडिडेट है लेकिन चंपई अपनी पीड़ा और दर्द जाहिर तो जरूर करेंगे। वहीं, कांग्रेस विधायक दल के नेता रामेश्वर उरांव ने कहा कि यह संभव नहीं है। ऐसी अफवाहें उड़ाकर चंपई सोरेन को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।

चंपई सोरेन जी चाहे कितना भी पार्टी की टूट या उनके भाजपा में जाने की  ख़बरों का इंकार करें पर यह तो स्पष्ट हो गया है कि धुआं तभी उठता है जब चिंगारी लगी हो । चंपई सोरेन जी दिल्ली में ही है और समझा जा सकता है कि उन्हें किस  संदेशे का इंतजार है । वे कितना भी बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की तरह भाजपा में जाने का ना नुकुर करें पर उनकी मंजिल वही है। धुआं तभी उठता है जब चिंगारी लगी हो..!