एक देश,एक चुनाव पर गंभीर सरकार

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एक देश,एक चुनाव पर गंभीर सरकार
एक देश,एक चुनाव पर गंभीर सरकार

एक देश, एक चुनाव के मुद्दे पर मोदी सरकार गंभीरता के साथ विचार कर रही है. इसके लिए सरकार ने एक समिति का गठन कर दिया है, जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बनाए गए हैं. इस संबंध में जल्दी ही नोटिफिकेशन जारी किया जा सकता है. दरअसल केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है. जिसका एजेंडा अभी तक नहीं बताया है. एक देश,एक चुनाव पर गंभीर सरकार

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 31 अगस्त 2023 को संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया जा रहा है, जिसमें 5 बैठकें होंगी. केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री ने लिखा कि विशेष सत्र में सार्थक चर्चा और बहस की उम्मीद है.सूत्रों के मुताबिक संसद के विशेष सत्र में सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ का बिल ला सकती है. ‘एक देश, एक चुनाव’ यानी लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने के मसले पर लंबे समय से बहस चल रही है. इसके समर्थन और विरोध में तमाम तर्क दिए जाते हैं. राजनीतिक दलों की राय इस मसले पर बंटी हुई है. पहले यही समझ लेते हैं कि ‘एक देश, एक चुनाव’ पर क्या राय दी जाती रही है.

कुछ लोगों का मानना है कि अगर लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ करवाए गए तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे प्रभावित हो सकते हैं. ये भी कहा जाता है कि एक साथ चुनाव से क्षेत्रीय दलों को नुकसान पहुंच सकता है. वजह ये बताई जाती है कि इससे वोटरों के एक ही तरफ वोट देने की अधिक संभावना होगी, जिससे केंद्र सरकार में प्रमुख पार्टी को ज्यादा फायदा हो सकता है. ये भी कहा जाता है कि अलग-अलग समय पर चुनाव होने के कारण जनप्रतिनिधियों को लगातार जवाबदेह बने रहना पड़ता है. कोई भी पार्टी या नेता एक चुनाव जीतने के बाद निरंकुश होकर काम नहीं कर सकते. किसी न किसी चुनाव का सामना करने के कारण राजनीतिक दलों की जवाबदेही लगातार बनी रहती है. ऐसा कहा जाता है कि अगर लोकसभा और सभी विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए, तो इससे निरंकुशता की आशंका बढ़ जाएगी.

एक देश,एक चुनाव में “सबसे खतरनाक बात यह है कि अगर किसी को बहुमत नहीं मिलता है (एक राष्ट्र, एक चुनाव के मामले में), तो मुख्यमंत्री कैसे चुना जाएगा? दल-बदल विरोधी कानूनों के बिना, एक मुख्यमंत्री का चुनाव किया जाएगा, ठीक एक अध्यक्ष के चुनाव की तरह. इसका मतलब है कि किसी भी पार्टी के विधायक किसी भी पार्टी को वोट दे सकते हैं. एक राष्ट्र, एक चुनाव ‘ऑपरेशन लोटस’ को वैध बनाने और विधायकों की खरीद-फरोख्त को वैध बनाने का मोर्चा है.”

एक देश एक चुनाव कोई अनूठा प्रयोग नहीं है, क्योंकि 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा हो चुका है. जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे. यह क्रम तब टूटा जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएँ विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग कर दी गई. आपको बता दें कि 1971 में लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गए थे। जाहिर है जब इस प्रकार चुनाव पहले भी करवाए जा चुके हैं तो अब करवाने में क्या समस्या है.

विपक्ष ने एक देश, एक चुनाव के मुद्दे को लेकर सरकार की आलोचना की है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि एक देश, एक चुनाव पर केंद्र सरकार की नीयत साफ नहीं है. अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि एक देश एक चुनाव की अभी जरूरत क्या है. उन्होंने कहा कि पहले महंगाई और बेरोजगारी का निदान हो. वहीं, AIMIM नेता असदउद्दीन ओवैसी ने कहा है कि भारत में एक देश, एक चुनाव संभव नहीं है. ओवैसी ने वन नेशन, वन इलेक्शन को असंवैधानिक बताया.

एक देश-एक चुनाव का फैसला लागू होता है, तो सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ ही कराए जाएंगे. प्रधानमंत्री मोदी कई मौकों पर इसके पक्ष में जोर-शोर से आवाज़ उठा चुके हैं और अब देश में इसको लेकर माहौल बनाया जा रहा है. कुछ वक्त पहले ही लॉ कमिशन ने एक देश एक चुनाव पर आम लोगों की राय भी मांगी थी.प्रधानमंत्री ने संसद में इस बात का जिक्र किया था कि किसी को भी एक सिरे से एक देश-एक चुनाव के मसले को नहीं नकारना चाहिए और इसपर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए. मोदी ने देश का वक्त, खर्च और विकास की गति तो तेज करने के लिए एक देश-एक चुनाव को वक्त की जरूरत बताया था और कहा कि हमें इस ओर कदम बढ़ाने चाहिए. एक देश,एक चुनाव पर गंभीर सरकार