दलितों की आड़ में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति

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दलितों की आड़ में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति
दलितों की आड़ में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति
राजेश कुमार पासी 
राजेश कुमार पासी

 जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से विपक्ष को दलितों की चिंता बहुत सताने लगी है। 2014 से पहले सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी जी ही थे जिनकी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया था अन्यथा कांग्रेस ही ऐसी पार्टी थी जिसकी सरकारें अपना कार्यकाल पूरा करती थीं । विपक्ष के बारे में यह धारणा बनी रही कि वो सरकार बना सकता है लेकिन चला नहीं सकता। विपक्ष को ताना मारा जाता था कि तुम लोग विरोधी दल के रूप में इकठ्ठे रहते हो और सत्ता में आते ही लड़ना शुरू कर देते हो। मोदी जी ने इन सारी धारणाओं को खत्म कर दिया और 11 साल से लगातार सत्ता में हैं । मोदी जी का तीसरा कार्यकाल चल रहा है। जब 2024 के चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो विपक्ष को उम्मीद दिखाई दी कि गठबंधन की सरकार मोदी जी नहीं चला पाएंगे । तब इंडी गठबंधन के नेताओं ने बयान दिया था कि हम सरकार नहीं बना रहे हैं क्योंकि मोदी सरकार सिर्फ दो महीनों में ही गिर जाएगी । उनका कहना था कि मोदी सरकार के गिरने के बाद हम अपनी सरकार बनाएंगे । विपक्ष की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर लिया है । विपक्ष को पता चल गया है कि ये सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा करने जा रही है। अपने पिछले दो कार्यकाल के दौरान मोदी सरकार ने अपनी जनकल्याणकारी योजनाओं के जरिये दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और गरीबों में अच्छी पकड़ बना ली है। दलितों की आड़ में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति

      वास्तव में विपक्ष मोदी के प्रभाव को अच्छी तरह जानता है लेकिन सार्वजनिक रूप से सच को स्वीकार नहीं करना चाहता। विपक्ष की किस्मत इस मामले में अच्छी है कि मोदी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का मुस्लिम समाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। आंकड़े कहते हैं कि मुस्लिम समाज मोदी सरकार की योजनाओं का अपनी जनसंख्या के अनुपात से लगभग दोगुना फायदा उठा रहा है लेकिन वो रणनीतिक रूप से भाजपा को हराने के लिए वोट करता है। मुस्लिम वोटों के मामले में भाजपा मोदी सरकार के शासनकाल के 11 साल बाद भी वहीं खड़ी है जहां वो 2014 में खड़ी थी। मुस्लिम समुदाय भाजपा को वोट नहीं देता है, ये उसकी मर्जी है लेकिन वो भाजपा को हराने के लिए रणनीति बनाकर वोट करता है, ये भाजपा की बड़ी समस्या है। विपक्षी दल मुस्लिम समाज की इस सोच और रणनीति का फायदा उठाने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चल रहे हैं।

विपक्षी दलों को ये तो पता है कि मुस्लिम समुदाय भाजपा को वोट नहीं देगा लेकिन उनके लिए समस्या यह है कि मुस्लिम वोटों की जरूरत सभी विपक्षी दलों को है। मुस्लिम वोट बैंक की लड़ाई में भाजपा कहीं नहीं है इसलिए इसको पाने के लिए विपक्षी दल आपस में ही लड़ते रहते हैं। इस लड़ाई के कारण विपक्षी दलों में एक दूसरे के साथ मुस्लिम तुष्टिकरण की होड़ लगी रहती है। सभी दल खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी बताने की कोशिश करते हैं। जहां ये दल भाजपा के खिलाफ मिलकर लड़ने की बात करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ एक दूसरे के खिलाफ भी लड़ रहे होते हैं। समस्या यह है कि सिर्फ मुस्लिम वोटों के सहारे ये लोग चुनाव नहीं जीत सकते, इसलिए मुस्लिम वोट बैंक के साथ दूसरे समुदायों को जोड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं। विपक्षी दलों में से कुछ दलों के पास जाति विशेष का वोट बैंक है और जब इसमें मुस्लिम वोट बैंक जुड़ जाता है तो एक बड़ा वोट बैंक तैयार हो जाता है। दलित समाज का वोट बंटा हुआ है. सभी पार्टियों को इसमें से हिस्सा मिलता है। 2014 से पहले दलितों और आदिवासियों के वोट का बड़ा हिस्सा कांग्रेस को मिलता था लेकिन धीरे-धीरे इसमें भाजपा ने बड़ी सेंध लगा दी है। मोदी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के कारण दलित समाज के बड़े हिस्से का झुकाव भाजपा की ओर हो गया है और कांग्रेस को इससे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। 

       विपक्षी दलों में मुस्लिम वोट बैंक के बाद अब दलित वोट बैंक की लड़ाई भी शुरू हो गई है। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितेषी साबित करने में लगे रहते हैं। दलितों के हालात के लिए राहुल गांधी अक्सर मोदी सरकार को घेरते रहते हैं। वास्तव में राहुल गांधी जानते हैं कि मुस्लिम वोट बैंक तब मिलेगा जब कांग्रेस कुछ मजबूत दिखाई देगी । कांग्रेस की कमजोरी के कारण ही मुस्लिम वोट बैंक पर दूसरे विपक्षी दलों का कब्जा हो गया है क्योंकि मुस्लिम उसे वोट देते हैं जो भाजपा का मुकाबला कर सकता है ।

राहुल गांधी दोतरफा लड़ाई लड़ रहे हैं. एक तरफ वो भाजपा से लड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ वो दूसरे विपक्षी दलों से भी लड़ रहे हैं । समस्या यही है कि जिनको साथ लेकर भाजपा से लड़ना है, वहीं दूसरी तरफ अपनी पार्टी के लिए उनके खिलाफ भी लड़ना है। यही कारण है कि राहुल गांधी भाजपा पर हमला करते हुए यह भूल जाते हैं कि 2014 से पहले 10 साल तक उनकी ही पार्टी शासन कर रही थी । उन्हें यह भी याद नहीं है कि इस देश पर आज़ादी के बाद से लगातार कांग्रेस का राज रहा है। उन्हें मीडिया में दलित दिखाई नहीं देते तो वो इसके लिए मोदी सरकार से सवाल पूछते हैं कि मीडिया में दलित क्यों नहीं है। वो उच्च अधिकारियों में दलितों को ढूंढना शुरू कर देते हैं। वास्तव में ये सवाल तो उन्हें अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से पूछना चाहिए कि दलितों की ऐसी हालत क्यों है। जिस पार्टी ने अपने लंबे शासनकाल में बाबा साहब अम्बेडकर जी को भारत रत्न के काबिल नहीं समझा, वही पार्टी आज उन्हें भगवान बनाने पर तुली है । नेहरू जी और इंदिरा जी ने खुद को भारत रत्न दे दिया लेकिन बाबा साहब को देना याद नहीं रहा। आज बाबा साहब कांग्रेस के लिए भगवान बन गए हैं. जब वो जिंदा थे तो उन्हें कांग्रेस सरकार में काम नहीं करने दिया गया।

  बाबू जगजीवन राम जी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने की कामयाब कोशिश कांग्रेस ने ही की थी। इतिहास में एक बार ही ऐसा मौका आया जब देश को एक काबिल दलित प्रधानमंत्री मिल सकता था तो वहां भी कांग्रेस ने टांग अड़ा दी । वास्तव में कांग्रेस और विपक्षी दलों ने आज तक दलित समाज के अयोग्य और नाकाबिल लोगों को ही राजनीति में आगे बढ़ाया है ताकि उन्हें काबू में रखा जा सके । दलित समाज में योग्य नेता पैदा हो सकते थे लेकिन ऐसा होने नहीं दिया गया । यही कारण है कि बहुजन समाज पार्टी का उदय हुआ लेकिन यूपी के अलावा देश के अन्य हिस्सों में दलित इस पार्टी के साथ जुड़ नहीं पाए । वास्तव में किसी जाति या समुदाय विशेष का वोट लेकर कोई भी पार्टी सत्ता की लड़ाई में ज्यादा कुछ नहीं कर सकती । 

      बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया जा रहा है और विपक्षी दल इसका जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया गया है। विपक्षी दल इस कार्यवाही का विरोध इसलिए कर रहे हैं ताकि बांग्लादेश और म्यांमार से आये रोहिंग्या मतदाता सूची से बाहर न कर दिए जाएं । विपक्ष यह तो कह नहीं सकता कि घुसपैठियों को मतदाता सूची से बाहर न किया जाए, इसलिए वो अपनी इस मुहिम को दलितों और गरीबो की आड़ लेकर चला रहा है। विपक्ष चुनाव आयोग पर आरोप लगा रहा है कि उसकी कार्यवाही से मुस्लिमों, दलितों, आदिवासियों, अति पिछड़ो और गरीबों का नाम मतदाता सूची से बाहर निकल जाएगा। चुनाव आयोग ऐसे दस्तावेज मांग रहा है जिससे साबित हो कि आप 2003 से पहले भारत में रह रहे हैं। इसके लिए आप अपने माता-पिता से संबंधित कागजात भी दे सकते हैं। जब कुछ नहीं है तो मतदाता सूची में अपने माता-पिता का नाम भी दिखा सकते हैं जिसमे चुनाव आयोग आपकी मदद करेगा । इसका साफ मतलब है कि किसी का भी नाम गलत तरीके से मतदाता सूची से हटने वाला नहीं है और अगर हट जाता है तो चुनाव आयोग में इसकी शिकायत की जा सकती है।

समस्या उन लोगों की है जो गैर कानूनी रूप से बांग्लादेश और म्यांमार से आकर भारत में बसे हुए हैं। ये लोग न केवल सरकार बनाने का काम कर रहे हैं बल्कि मोदी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का फायदा भी ले रहे हैं। देखा जाए तो ये लोग एक तरह से दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और गरीब मुस्लिमों के हक पर डाका डाल रहे हैं। अगर इन योजनाओं से इन लोगों को बाहर कर दिया जाए तो दूसरे जरूरतमंद लोगों को ज्यादा फायदा मिल सकता है। विपक्षी दल चाहते हैं कि उन मुस्लिमों का नाम भी इस सूची से न हटाया जाए जो अवैध रूप से घुसपैठ करके भारत में आ गए हैं । विपक्ष अपनी इस लड़ाई को दलितों के पीछे छिपकर लड़ रहा है। विपक्ष को न तो दलितों से मतलब है और न अन्य गरीबों से उसे सिर्फ अपने वोट बैंक की चिंता है जो उसने बड़ी मेहनत से तैयार किया है। इनके आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड बनाये गए ताकि इन्हें भारत का नागरिक साबित किया जा सके। अब विपक्ष की कोशिश है कि इन दस्तावेजों के आधार पर ही इन्हें मतदाता सूची में बने रहने दिया जाए और इस कोशिश में ही ये लोग सुप्रीम कोर्ट तक गए हैं । दलित समाज को सतर्क रहने की जरूरत है कि उनकी आड़ लेकर देश विरोधी काम किया जा रहा है।  दलितों की आड़ में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति