
डॉ.सत्यवान सौरभ
कुदरत का रूठना भी ज़रूरी था, इंसान का घमंड टूटना भी ज़रूरी था। कुदरत का संदेश
हर कोई खुद को खुदा समझ बैठा, उस वहम का छूटना भी ज़रूरी था।
पेड़ कटे, नदियाँ रोईं, पर्वत भी कांपे, धरती माँ की कराहें कौन था आँके।
लोभ में अंधा हुआ इंसान इतना, उसको आईना दिखाना भी ज़रूरी था।
आंधियाँ, तूफ़ान, बारिश का प्रहार, दे गए चेतावनी – बचो, संभलो बार-बार।
जीवन का असली सच बताना भी ज़रूरी था, नश्वरता का एहसास कराना भी ज़रूरी था।
कुदरत ने सिखाया – मत बनो अभिमानी, बूँद-सी है तेरी ज़िंदगी की कहानी।
विनम्र रहो, और धरती को बचाओ, प्रकृति का ज्ञान जगाना भी ज़रूरी था। कुदरत का संदेश