मानव जीवन की यात्रा इतनी सरल नहीं है, इस भूलोक पर देवता भी मानव रूप में आए तो उन्होंने भी कष्ट झेले। उन्होंने भी सेवा, त्याग, तपस्या, भक्ति आदि का भाव अपने अंदर रखा। सबसे बड़ी बात अपने को सिद्ध करने और लोगों में लोकप्रिय बने अर्थात अपनी जनता जनार्दन के बीच प्रेम, स्नेह, आदर आदि पाने के लिए घर का त्याग करना पड़ा। उसके पीछे के कारण चाहे जो भी रहे हों। भगवान श्रीराम ने घर को छोड़ा और 14 वर्ष का वनवास हुआ अर्थात घर या राजभवन छोड़ना पड़ा। वन में भगवान श्रीराम ने सभी जीव-जन्तुओं से संवाद किया। भगवान श्रीकृष्ण पैदा ही बंदी गृह में हुए। अपनी जन्मदाता मां का प्रेम, स्नेह आदि त्यागना पड़ा। वन में गाय चराई, गोपाल के साथ-साथ सभी जीवनों से संवाद किया। पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास काटना पड़ा अर्थात घर और राजभवन छोड़ना पड़ा। जीवन का संदेश
देवी-देवताओं के त्याग, तपस्या और घर छोड़ने की बात के बाद बात करें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने अपने घर को छोड़ना पड़ा। सारे देश को अपना घर मानकर लोगों को स्वतंत्रता के लिए जगाया, अंग्रेजों को इस देश से भगाया। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने घर को छोड़ देश-विदेश से ताकत इकट्ठा करके स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के दांत खट्टे किए और देश को स्वतंत्र कराया। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, ऊधम सिंह लाल-बाल-पाल आदि कितने ही देश भक्तों ने घर छोड़कर अर्थात अपने घर से निकलकर देश की माटी के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। देश को स्वतंत्रता दिलाई, सभी देशभक्तों को सादर प्रणाम।
साहित्य में भी कितने ही साहित्यकार ऐसे हुए हैं, जिन्होंने घर को छोड़ा और मस्त-मौला फक्कड़ स्वभाव से लिखा। कोई भक्ति में डूब कर लिख रहा था तो किसी ने समाज जीवन को उतार कर लिखा। भक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास, महाकवि सूरदास आदि ने घर छोड़ा और प्रभु की शरण में जाकर ही काव्य लिखा। हमारे साधु-संत-महात्माओं आदि ने घर छोड़कर ही जन सामान्य को सही मार्ग पर लाने का कार्य किया। स्वामी विवेकानंद ने घर छोड़ा और समाज जीवन को सुंदर संदेश देकर स्वयं राष्ट्र के लिए उदाहरण बन गए। यात्रावृतांत आदि लेखन लिखने वाले लेखक घर छोड़कर ही वास्तविक यात्रावृतांत का लेखन कर सकते हैं। इसमें अज्ञेय, राहुल सांकृत्यायन आदि कितने ही लेखकों के नाम गिनाए जा सकते हैं।
विचार करें और अपनी दृष्टि को संकुचित सोच से बाहर निकाल कर देखें तो हमें पता चलता है कि जिसने भी राष्ट्र, समाज और जन के लिए घर को छोड़ा है, वह व्यक्ति और व्यक्तित्व अपने आप ही महामानव बनता चला गया है। अपनी पीढ़ियों और आने वाली पीढ़ियों के लिए उदाहरण बन गए हैं। सही मायनों में बिना घर छोड़े कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है, जो इन ईंट, पत्थर की चारदिवारी में घिरे बैठे हैं और केवल अपना स्वार्थ पूरा करने तथा धन इकट्ठा करने में लगे हैं वह कभी भी किसी का उदाहरण नहीं बन सकते। सही मायनों में वह स्वयं का जीवन भी ठीक से नहीं जी पा रहे हैं। इस लेख में सभी के घर छोड़ने की बात नहीं हो रही है। लेकिन अपने अंदर सेवा को जिंदा रखना और सेवा करने की बात जरूर हो रही है। सेवा से बढ़कर कुछ नहीं है। यह जीवन यात्रा कब किसकी कहां पूरी होनी है इसे कोई नहीं जानता है। जीवन का संदेश