
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के कार्यकाल को लेकर कई गंभीर सवाल और आरोप समय-समय पर सामने आए हैं, जो न केवल उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाते हैं, बल्कि संवैधानिक पद की गरिमा और विश्वसनीयता को भी कटघरे में खड़ा करते हैं। उनके उत्तर प्रदेश में कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद भी राष्ट्रपति कार्यालय मौन है और जिसके कारण स्पष्ट नही है।उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग के चेयरमैन और पूर्व मंत्री डॉ.सी पी राय ने इन आरोपों और अनियमितताओं पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त किया है और केंद्र सरकार से इसकी निष्पक्ष जाँच करने की माँग किया है तथा राष्ट्रपति भवन से स्थिति स्पष्ट करने की मांग किया है। UP राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के कार्यकाल को लेकर कई गंभीर सवाल-डॉ.राय
डॉ.राय ने कहा है कि आनंदीबेन पटेल का कार्यकाल, चाहे वह गुजरात की मुख्यमंत्री के रूप में रहा हो या फिर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की राज्यपाल के रूप में, विवादों से घिरा रहा है। गुजरात में उनके मुख्यमंत्री काल (2014-2016) के दौरान पाटीदार आंदोलन और उनके परिवार से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोप, विशेष रूप से उनकी बेटी अनार पटेल से संबंधित गीर में जमीन आवंटन के मामले, ने उनकी छवि को धूमिल किया था। इन आरोपों की गूंज आज भी सुनाई देती है, और यह सवाल उठता है कि क्या उनकी नियुक्ति और कार्यकाल को लेकर केंद्र सरकार की ओर से कोई स्थिति स्पष्ट की गई है।

डॉ.सी पी राय ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में उनके कार्यकाल के पाँच वर्ष पूरे होने के बावजूद, 29 जुलाई 2024 को, राष्ट्रपति कार्यालय या गृह मंत्रालय की ओर से कोई स्पष्ट पत्र या निर्णय जारी नहीं किया गया कि क्या उन्हें पुनः नियुक्त किया गया है या नए राज्यपाल की नियुक्ति तक पद पर बने रहने को कहा गया है। यह न केवल प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि केंद्र सरकार संवैधानिक प्रक्रियाओं के प्रति गंभीर नहीं है। क्या यह लापरवाही जानबूझकर है ताकि कुछ असहज सवालों को दबाया जा सके..?
डॉ.राय ने कहा है कि आनंदीबेन पटेल पर उनके कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। उनके परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से बेटी और दामाद से जुड़े व्यवसायिक हितों और जमीन सौदों पर सवाल उठे हैं, जो संदेहास्पद तरीके से उनके प्रभाव का लाभ उठाते दिखते हैं। इसके अतिरिक्त, उत्तर प्रदेश में उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में नियुक्तियों और नीतियों को लेकर भी असंतोष की खबरें सामने आई हैं, जिनमें पारदर्शिता की कमी और पक्षपात के आरोप शामिल हैं। यह अत्यंत चिंताजनक है कि एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति बार-बार ऐसे विवादों में उलझता हो।
उत्तर प्रदेश जैसे विशाल और जटिल राज्य में, जहाँ कानून-व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र पहले से ही चुनौतियों से जूझ रहे हैं, राज्यपाल जैसे पद पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्षता, पारदर्शिता और संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करे। लेकिन श्रीमती पटेल का कार्यकाल इन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता। उनके द्वारा समय-समय पर दिए गए बयान, जैसे कि बुलडोजर नीति पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देना या कानून-व्यवस्था पर अतिशयोक्तिपूर्ण दावे, उनकी तटस्थता पर सवाल उठाते हैं। क्या यह एक संवैधानिक पद की गरिमा के अनुरूप है कि वह सरकार की नीतियों का महिमामंडन करें, जबकि उन नीतियों पर जनता और विपक्ष गंभीर सवाल उठा रहे हैं..?
डॉ.सी. पी. राय ने मांग किया है कि आनंदीबेन पटेल के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के सभी आरोपों की निष्पक्ष और स्वतंत्र जाँच कराई जाए। केंद्र सरकार और राष्ट्रपति कार्यालय को चाहिए कि वे तत्काल स्पष्ट करें कि आनंदीबेन पटेल का कार्यकाल विस्तार क्यों और कैसे हुआ और यदि नहीं, तो नए राज्यपाल की नियुक्ति में देरी का कारण क्या है। उत्तर प्रदेश की जनता को यह जानने का अधिकार है कि उनके राज्य के शीर्ष संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति कितना पारदर्शी और जवाबदेह है। हमारी माँग है कि भ्रष्टाचार के इन आरोपों की जांच के लिए सीबीआई या किसी स्वतंत्र एजेंसी को नियुक्त किया जाए, ताकि सच्चाई सामने आए और संवैधानिक संस्थाओं पर जनता का विश्वास बना रहे। यह समय है कि केंद्र सरकार और भाजपा अपनी जवाबदेही स्वीकार करें और उत्तर प्रदेश की जनता को एक स्वच्छ और निष्पक्ष प्रशासन दें। UP राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के कार्यकाल को लेकर कई गंभीर सवाल-डॉ.राय