

“दो युग, दो नेतृत्व: महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत।”
महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव दोनों ही नेताओं ने अपने युग में जनता के बीच रहकर ही राजनीति की असली ताकत को समझा। गांधीजी ने ग्राम-ग्राम जाकर स्वतंत्रता संग्राम को आम जनता से जोड़ा और उनके जीवन का मूल लक्ष्य था समानता, न्याय और सामाजिक सुधार। वहीं, मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में दलित, पिछड़ा और गरीब वर्ग की समस्याओं को सीधे समझा और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया। इन दोनों नेताओं का जमीनी जुड़ाव ही उन्हें जनता के दिलों में अमिट स्थान दिलाने वाला कारक बना।यही कारण है कि गांधी और मुलायम राजनीति में जमीनी जुड़ाव की मिसाल बने।
अक्टूबर का महीना भारतीय राजनीति के दो महान नेताओं की याद दिलाता है। 02 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती और 10 अक्टूबर को समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव की पुण्यतिथि। दोनों ही नेताओं ने अलग-अलग दौर में भारतीय समाज और राजनीति को नई दिशा दी। भारत की राजनीति में महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव दो ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपने-अपने युग में जनता के दिलों में गहरी छाप छोड़ी। गांधीजी ने सत्य, अहिंसा और स्वराज के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को जनआंदोलन बनाया। मुलायम सिंह यादव ने समाजवाद, सामाजिक न्याय और किसान–मजदूर हितों की आवाज़ और वंचित तबकों के अधिकारों की लड़ाई को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। दोनों नेताओं की राजनीति का मूल उद्देश्य था आमजन को सशक्त बनाना और सत्ता के केंद्र में कमजोर तबकों की आवाज़ को स्थान देना। गांधी के विचारों में नैतिकता और आदर्श थे, तो मुलायम के संघर्ष में जमीनी जुड़ाव और व्यावहारिक समाजवाद की झलक दिखती है।मुलायम सिंह यादव ने समाजवाद, सामाजिक न्याय और वंचित तबकों के अधिकारों की लड़ाई को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। एक ने अंग्रेज़ी हुकूमत से मुक्ति दिलाई, तो दूसरे ने सामाजिक असमानता और आर्थिक विषमता के खिलाफ संघर्ष किया।
भारतीय राजनीति का इतिहास दो विपरीत परंतु प्रभावशाली शख्सियतों के बिना अधूरा है वो हैं महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव। एक ने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए नैतिक और वैचारिक क्रांति चलाई, तो दूसरे ने आज़ादी के बाद लोकतांत्रिक भारत में समाजवादी आंदोलन को मज़बूती दी। दोनों नेताओं की पृष्ठभूमि, व्यक्तित्व और राजनीतिक शैली भले ही अलग रही हो, पर उनके कार्यों ने भारत को बदलने में गहरी भूमिका निभाई।
भारत के राजनीतिक इतिहास में ऐसे विरले ही नेता हुए हैं जिन्होंने जनभावनाओं को दिशा दी और राजनीति को जनसेवा का माध्यम बनाया। महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव, दोनों ही ऐसे युगपुरुष रहे जिन्होंने अपने-अपने समय में आम आदमी को राजनीति के केंद्र में रखा। गांधी ने जनजागरण से परिवर्तन की राह दिखाई तो मुलायम ने राजनीतिक संघर्षों से वंचित वर्गों को सत्ता में भागीदारी दिलाई। आज जब राजनीति बदलते मूल्यों और तकनीकी दौर में प्रवेश कर चुकी है, तब गांधी और मुलायम की विरासत हमें यह याद दिलाती है कि राजनीति का अर्थ केवल सत्ता नहीं, बल्कि समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति की सेवा है। यही दोनों नेताओं की सच्ची विरासत है-जनता के प्रति समर्पण, नैतिकता की आस्था और सामाजिक समानता का संकल्प।
आज जब देश राजनीति के बदलते दौर से गुजर रहा है, तब गांधी और मुलायम दोनों की विरासत पहले से अधिक प्रासंगिक है। गांधी के विचार हमें सत्य और नैतिक राजनीति की राह दिखाते हैं, जबकि मुलायम का समाजवाद हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र का असली अर्थ है — हर वर्ग को समान सम्मान और न्याय मिलना। गांधी और मुलायम दोनों का संदेश यही है कि सच्चा नेतृत्व केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि जनता के लिए होना चाहिए। उनके विचार आज भी प्रेरणा देते हैं कि समाज को न्यायपूर्ण, समान और सशक्त बनाने के लिए हमें लगातार संघर्ष करना होगा।
मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें दुनिया “महात्मा गांधी” और भारत “बापू” के नाम से जानता है, ने राजनीति को एक नैतिक दायित्व के रूप में देखा। गांधी जी के लिए राजनीति केवल सत्ता पाने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज सुधार और आत्मनिर्माण का रास्ता थी। उन्होंने सत्य, अहिंसा और आत्मशक्ति को अपने राजनीतिक हथियार बनाए। गांधी जी के नेतृत्व में भारत ने असहयोग आंदोलन (1920), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930), और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) जैसे विशाल जनआंदोलनों का अनुभव किया। उनका कहना था कि “आपको वह परिवर्तन बनना चाहिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।” गांधी जी ने कभी कोई राजनीतिक पद नहीं संभाला, परंतु उनके विचारों ने लाखों भारतीयों को संगठित किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक जनांदोलन में बदल दिया और विदेशी शासन के खिलाफ जनता की चेतना को जगाया।
मुलायम सिंह यादव का नाम भारत की समकालीन राजनीति में सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों की आवाज़ के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। उत्तर प्रदेश के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे मुलायम सिंह ने छात्र राजनीति से शुरुआत की और समाजवादी आंदोलन के जरिए अपनी पहचान बनाई। 1960 और 70 के दशक में डॉ. लोहिया और जयप्रकाश नारायण के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। वे उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे, और एक बार देश के रक्षा मंत्री भी बने। उनकी राजनीति का केंद्र बिंदु था – किसानों, पिछड़ों, और अल्पसंख्यकों को सत्ता में भागीदारी दिलाना। उनका स्पष्ट मानना था कि “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।” मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की स्थापना कर न केवल एक राजनीतिक दल बनाया, बल्कि सामाजिक आंदोलन को भी संगठित किया। मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में उनका समर्थन ऐतिहासिक साबित हुआ।
गांधी के आदर्शों से नेताजी के समाजवाद तक: दो अलग युगों की दो अहम शख्सियतें
महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव, भारतीय इतिहास के दो ऐसे नाम हैं जिनकी राजनीतिक यात्राएं और वैचारिक बुनियादें भले ही अलग हों, लेकिन दोनों ने अपने-अपने तरीके से देश की राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी है। जहाँ गांधी ने अहिंसा, सत्य और सर्वोदय के सिद्धांतों के साथ स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी, वहीं मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी विचारधारा को ग्रामीण और जमीनी स्तर तक पहुँचाया।
महात्मा गांधी : आदर्शों की विरासत
महात्मा गांधी का जीवन एक खुली किताब की तरह था, जिसके हर पन्ने पर त्याग, संघर्ष और नैतिकता की गहरी छाप थी। उन्होंने न केवल भारत को आजादी दिलाई, बल्कि दुनिया को यह भी सिखाया कि अन्याय का सामना अहिंसक तरीकों से भी किया जा सकता है। अहिंसा और सत्याग्रह, गांधी का सबसे बड़ा हथियार अहिंसा था। उनका सत्याग्रह, जिसमें अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध किया जाता था, लाखों लोगों को एक मंच पर लाने का जरिया बना। महात्मा गांधी के स्वतंत्रता संग्राम ने दांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन और असहयोग आंदोलन जैसे कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिसने अंग्रेजों की नींव हिला दी। महात्मा गांधी आज भी दुनिया भर में शांति, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के प्रतीक बने हुए हैं। उनकी सोच आज भी प्रासंगिक है।
मुलायम सिंह यादव: समाजवाद की जमीनी राजनीति
मुलायम सिंह यादव जिन्हें प्यार से ‘नेताजी’ भी कहा जाता था, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक ऐसे कद के नेता थे जिन्होंने जमीन से उठकर शिखर तक का सफर तय किया। उन्होंने ग्रामीण और पिछड़े तबके के लोगों की आवाज को राजनीति में बुलंद किया। एक सामान्य परिवार में जन्मे मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत समाजवादी विचारधारा से की। वे लोहिया और जयप्रकाश नारायण के विचारों से प्रभावित थे। किसानों के मसीहा मुलायम सिंह यादव ने किसानों, मजदूरों और पिछड़ों के अधिकारों के लिए कई आंदोलन किए। उनका मानना था कि समाजवाद का असली मतलब हर वर्ग को बराबरी का अधिकार देना है। मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में कई बार मुख्यमंत्री का पद संभाला और अपनी पार्टी, समाजवादी पार्टी, को राज्य की एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति बना दिया। मुलायम सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उन्हें कई राजनीतिक उतार-चढ़ावों और गठबंधनों का सामना करना पड़ा।
महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव : समानताएं और विरोधाभास
सामाजिक न्याय:- दोनों नेताओं का मुख्य उद्देश्य समाज के वंचित और कमजोर तबके को सशक्त बनाना था। जहां गांधी सर्वोदय के जरिए सभी का उत्थान चाहते थे, वहीं मुलायम ने समाजवाद के माध्यम से पिछड़ों और गरीबों के हक की लड़ाई लड़ी। भारत के दो महान नेताओं—महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव—के जीवन में सामाजिक न्याय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। गांधीजी ने अपने सत्याग्रह और अहिंसा के आंदोलन के माध्यम से समाज में असमानता और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। उनका मानना था कि समानता और न्याय ही स्वतंत्रता का वास्तविक आधार हैं, और उन्होंने छुआछूत, जातिवाद और आर्थिक असमानता जैसे सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जीवनभर संघर्ष किया।
मुलायम सिंह यादव ने भी समाजवाद और सामाजिक न्याय को अपने राजनीतिक जीवन का आधार बनाया। उन्होंने दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीब वर्गों को राजनीतिक शक्ति और समाज में सम्मान दिलाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। उनकी राजनीति का मूल संदेश यही था कि सशक्त और समान समाज बिना न्याय और अवसर की समानता के संभव नहीं है।
गांधी और मुलायम दोनों ने अलग-अलग युगों में काम किया, लेकिन उनका उद्देश्य एक ही था — समान अवसर, न्याय और हर वर्ग की गरिमा की रक्षा। यही उनकी सामाजिक न्याय की विरासत आज भी प्रेरणा देती है।
जमीनी जुड़ाव:- गांधी जी और नेता जी दोनों ही नेता जमीनी हकीकत को बखूबी समझते थे। गांधी ने गांवों में रहकर जनता को जोड़ा, वहीं मुलायम ने गांव-गांव जाकर लोगों की नब्ज टटोली। एक पुरानी खबर के मुताबिक, गांधी के निधन की खबर सबसे पहले मुलायम ने ही कड़कड़ाती ठंड में बैलगाड़ी से गांव जाकर लोगों को दी थी।
महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव, दोनों ही नेताओं ने जनता के बीच रहकर राजनीति की असली ताकत को समझा और महसूस किया। गांधीजी ने गांव-गांव जाकर स्वतंत्रता संग्राम को आम जनता से जोड़ा। उनका मानना था कि देश की ताकत उसकी ग्रामिण जनता में है, इसलिए उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन, चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह जैसे आंदोलनों के माध्यम से सीधे जनता से संवाद किया। गांधी का जमीनी जुड़ाव केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक सुधारों के लिए भी था।
मुलायम सिंह यादव ने भी अपने राजनीतिक जीवन में जमीनी जुड़ाव को हमेशा महत्व दिया। उन्होंने किसानों, मजदूरों, पिछड़ों और दलितों के मुद्दों को सीधे समझा और उनके हक़ की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। उनका संदेश साफ था — सत्ता का असली अर्थ तब है जब वह आम आदमी की जिंदगी में बदलाव लाए।
गांधी जी और नेता जी दोनों नेताओं की यह जमीनी पहुंच उन्हें जनता के विश्वास और स्नेह का केंद्र बनाती थी। गांधी और मुलायम दोनों ने दिखाया कि नेतृत्व केवल पद या शक्ति से नहीं, बल्कि लोगों के बीच रहकर उनके संघर्ष और उम्मीदों को समझने से मजबूत होता है।
वैचारिक भिन्नता:- जहां गांधी अहिंसा और नैतिकता को सर्वोपरि मानते थे, वहीं मुलायम की राजनीति में सत्ता की कूटनीति और व्यावहारिक दांव-पेंच का भी अहम हिस्सा था। दोनों के आदर्श और कार्यशैली में यह एक बड़ा अंतर था।
महात्मा गांधी और मुलायम सिंह यादव दोनों ही भारतीय राजनीति के प्रभावशाली नेता रहे, लेकिन उनके वैचारिक दृष्टिकोण और राजनीति के तरीके में स्पष्ट अंतर था। गांधीजी का केंद्र हमेशा सत्य, अहिंसा और नैतिकता रहा। उनका मानना था कि राजनीतिक और सामाजिक बदलाव केवल नैतिक बल और जनजागृति के माध्यम से संभव है। स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने जनता को अहिंसक आंदोलन के माध्यम से संगठित किया और समाज में समानता, ग्राम विकास और सामाजिक सुधार को प्राथमिकता दी।
मुलायम सिंह यादव का दृष्टिकोण अधिक व्यावहारिक और समाजवादी था। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में सामाजिक न्याय, दलित-पिछड़ा सशक्तिकरण और वंचित वर्गों के अधिकारों की लड़ाई को केंद्र में रखा। उनका नेतृत्व जमीन से जुड़ा था और वे चुनावी राजनीति और जनसंपर्क के माध्यम से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विश्वास रखते थे।
सारांश यह कि गांधी और मुलायम दोनों ही जनता के उत्थान और समाज सुधार में विश्वास रखते थे, लेकिन गांधी का रास्ता नैतिकता और अहिंसा के माध्यम से था, जबकि मुलायम सिंह यादव का मार्ग सामाजिक न्याय और व्यावहारिक राजनीति के माध्यम से। यही उनकी वैचारिक भिन्नता थी।
दो नेतृत्व-एक ध्येय: भारत का कल्याण
गांधी और मुलायम – दोनों की राजनीतिक सोच भले ही अलग थी, लेकिन दोनों का उद्देश्य एक ही था: भारत के आम नागरिक का कल्याण। गांधी जी ने जहां देश को आज़ादी दिलाने की राह दिखाई, वहीं मुलायम सिंह ने लोकतंत्र को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने की लड़ाई लड़ी। गांधी के बिना भारत की स्वतंत्रता अधूरी होती और मुलायम सिंह जैसे नेताओं के बिना लोकतांत्रिक भारत का सामाजिक आधार कमज़ोर पड़ता। आज जब हम भारत की राजनीतिक चुनौतियों और सामाजिक असमानताओं की बात करते हैं, तो गांधी और मुलायम दोनों के योगदान को याद करना ज़रूरी हो जाता है। एक ओर गांधी जी के सिद्धांत हमें नैतिकता की ओर ले जाते हैं, तो दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव की राजनीति हमें याद दिलाती है कि सत्ता तब तक अधूरी है, जब तक उसमें सबकी भागीदारी न हो। इन दोनों नेताओं की विचारधाराओं में भले ही समय और शैली का अंतर रहा हो, परंतु भारत की राजनीतिक चेतना के निर्माण में दोनों की भूमिका ऐतिहासिक और प्रेरणादायक रही है।
महात्मा गांधी जी और मुलायम सिंह यादव जी भले ही दो अलग-अलग युगों के प्रतीक रहे हों, दोनों ही अपने-अपने युग के प्रभावशाली नेता थे। एक ने आजादी की लड़ाई में देश का नेतृत्व किया, तो दूसरे ने स्वतंत्र भारत में सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाया। दोनों की कहानियाँ अलग हैं, लेकिन दोनों ही भारतीय राजनीति की दिशा तय करने वाले महत्वपूर्ण अध्याय हैं। दोनों की राजनीति का मूल भाव एक ही था — जनता के लिए, जनता के साथ और जनता के बीच। गांधी ने सत्य और नैतिकता के आधार पर स्वतंत्रता की नींव रखी, तो मुलायम सिंह यादव ने समानता और सामाजिक न्याय की बुनियाद को मजबूत किया। आज उनकी जयंती और पुण्यतिथि के अवसर पर हमें यह संकल्प आचरण में उतारना होगा, कि उनके आदर्श केवल शब्दों तक सीमित न रहें, बल्कि हमारे कर्म, व्यवहार और राजनीति का हिस्सा बनें — क्योंकि यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी दोनों युगपुरुषों को।