
विजय सहगल
एको अहं द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति’ अर्थात मै एक ही हूँ, दूसरा कोई नहीं हैं, न हुआ है, न होगा!! यह अद्वैत वेदान्त का एक सिद्धान्त है जो महाकुम्भ-2025, प्रयागराज पर सटीक बैठता है। बेशक, खगोल शास्त्र मे 144 वर्ष पूर्व के गृह नक्षत्रों की ठीक ऐसी ही स्थिति ने प्रयाग महाकुंभ 2025 के इस पर्व को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। 7 फरवरी 2025 को इस दिव्य और भव्य महाकुंभ मे सपत्नीक मुझे भी शामिल होने और संगम मे डुबकी लगाने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। हर किसी शुभ और पवित्र कार्य मे कोई न कोई व्यक्ति या संस्था सहायक होती है, इस परम धार्मिक और भारतीय सांस्कृतिक प्रथाओं और परम्पराओं मे सहभागी होने पर, बगैर किसी शंका और संदेह के उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तो है ही साथ ही साथ हमारे समधी द्वय रीना-जुगल किशोर रावल ने भी मेरे परिवार को इस महा कुम्भ मे संगम स्नान के लिये अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता। रावल दंपति के साथ और सहयोग के बिना, तीन दिन लगातार विशाल महाकुंभ क्षेत्र की परिक्रमा कर पूरे मेला क्षेत्र का जायजा लेना कठिन ही नहीं असंभव था। इन तीन दिनों मे पूरे मेला क्षेत्र मे लगभग 70-80 किमी॰ की यात्रा रावल साहब के प्रयागराज और संगम क्षेत्र के अच्छे ही नहीं बहुत अच्छे भौगोलिक ज्ञान का परिणाम थी। महाकुम्भ 2025: न भूतो न भविष्यते
6 फरवरी 2025 को एक-दो छोटी-मोटी बाधाओ को छोड़ सड़क मार्ग से 465 किमी॰ की दूरी तय करने मे कहीं कोई बाधा नहीं आयी। कहीं कोई जाम, अवरोध दिखलाई नहीं पड़ा। छः लाइन का रास्ता सरल और सुगम था। प्रयागराज के पूर्व 25-30 किमी॰ की शहरी यात्रा मे कुछ भीड़ भाड़ दिखी जो स्वाभाविक ही महाकुंभ क्षेत्र, जहां हर रोज करोड़ो श्रद्धालुओं की भीड़ जुट रही हो ऐसा होना लाज़मी था। गुरुवार 5 फरवरी को शाम पाँच-सवापांच बजे मै उनके आवास पर बिना किसी रुकावट के पहुंच गया पर मेरी, सुगम, बाधा-रहित यातायात की इस गलत फहमी ने, उसी शाम को मेला क्षेत्र मे गंगा-संगम क्षेत्र तक कार से जाने के इरादे को धराशायी कर दिया, जब रावल जी के प्रयाग राज की गली-कूँचों से वाकिफ होने के बावजूद भीड़ मे 2-3 घंटे की यात्रा मे जाम मे फंसे रहने के कारण हम लोगों को घर बापस आने को मजबूर कर दिया।
संगम तट पर न जाने की लालसा मे यातायात के बिघ्न से निराश तो था लेकिन सौभाग्य से सिविल लाइंस मे स्थित हनुमत निकेतन मे रामदूत, राम भक्त हनुमान जी मंदिर मे दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होने से मन प्रफ़्फुलित हो गया। मंदिर क्षेत्र के आसपास और पूरे रास्ते मे कुम्भ स्नान मे आये श्रद्धालुओं को देख कर, सरकार द्वारा की गयी तैयारियों की झलक देखने को अवश्य मिल गयी। जगह जगह रंगीन लाइटों से जगमगाते मार्ग, पेड़ो और चौराहों पर झिलमिलाती बत्तियों के बीच अनवरत पैदल आते जाते लोगों का हजूम प्रयागराज की रात मे भी दिन होने का अहसास करा रहा था। चका चौंध भरी रात्रि और उस पर गुलाबी सर्द हवा, इस बात का स्पष्ट गवाही दे रही थी कि सिवाय पैदल चलने के श्रमसाध्य कठिनाई के अलावा प्रयाग मे यात्रियों को कदाचित ही कोई असुविधा महसूस हुई हो।
प्रयागराज के पूरे रास्ते असंख्य श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ था जो या तो कुम्भ स्नान के बाद खुशी खुशी अपने गंतव्य के लिये बस स्टैंड या रेल्वे स्टेशन की ओर जा रहे थे या रेल्वे स्टेशन से गंगा स्नान की बलबती इच्छा मन मे लिये संगम घाट की ओर जोश और उत्साह से, हर हर गंगे, जय महाकुंभ, हर हर महादेव के जयकारे लगाते हुए त्रिवेणी की ओर जा रहे थे। किसी भी श्रद्धालु के मन मे कोई शिकायत नहीं थी, चेहरे पर तेज और मुस्कान इस बात का सबूत थी कि इन लोगो के मन मे अपनी सांस्कृति सभ्यता और सनातन के प्रति कितनी गहरी आस्था, श्रद्धा और सम्मान है। चार पहिया वाहन के निषेध के कारण जिसको जो साधन मिला, कोई ई-रिक्शा, या अन्य कोई दोपहिया वाहनों से जा रहे थे। कोई तो तीन पहिया रिक्शा और कहीं कहीं तो सामान ढोने वाले रिक्शे मे बैठ यात्री अपनी अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे।
जहां कहीं थोड़ी बहुत भी चढ़ाई होती तो रिक्शे से कुछ लोग उतर और कुछ लोग रिक्शे मे धक्का लगा कर रिक्शा चालक के श्रम मे सहयोग कर उसकी थकान मे राहत दे रहे थे। हनुमान मंदिर के प्रांगढ़ मे या उसके आसपास पैदल चल रहे महाकुम्भ श्रद्धालुओं को दो घड़ी आराम कर सुस्ताने के दृश्य जहां तहां देखने को मिले। रास्ते मे फुटपाथ, मैदान, पार्क आदि जगह भी बड़ी संख्या मे यात्रियों द्वारा अपने साथ लाये सिर पर पोटली मे रक्खे बिछौनों को बिछा-ओढ़ कर सोते, आराम करते देख उनके महाकुंभ मे शामिल होने की दृढ़ इच्छा शक्ति के जज्बे जुनून को मै, नमन किये बिना न रह सका। जगह जगह रास्ते, फुटपाथ, मैदानों मे सफाई की अभूतपूर्व व्यवस्था दिखलाई पढ़ रही थी।
पूरे प्रयागराज मे सड़कों के किनारे और बीच मे लगे बिजली के खंभों पर रंग बिरंगी एलईडी बल्बों से बनी स्वास्तिक, डमरू, खाटू श्याम जी के तीन बाण की आकृति, नारियल और आम के पत्ते का कलश, न्याय का प्रतीक तराजू, साधू बाबा द्वारा कुम्भ स्नान के बाद अपनी जटाओं को उपर फेंकने और महाकुंभ का प्रतीक अमृत कलश की चमकती आकृतियाँ दर्शाई गयी थी जो बड़ी ही मनमोहक और मन भावन थी। स्थानीय लोगो द्वारा जगह जगह भंडारे मे श्रद्धालुओं को सप्रेम भोजन ग्रहण कराया जा रहा था। जाति, धर्म, भाषा, प्रांत से परे सारे देश के विभिन्न प्रान्तों से आये महाकुंभ मे सहभागी हुए सनातन श्रद्धालुओं का ऐसा समागम दुनियाँ मे शायद ही कहीं देखने को मिलता हो।
7 फरवरी 2025 का दिन जिसका मुझे काफी अधीरता से इंतज़ार था। प्रातः 7.30 बजे हम दोनों परिवार संगम पर त्रिवेणी स्नान की लालसा मे घर से निकले। महाकुम्भ मे घूमने के लिए मेरे परिवार के लिये एक्टिवा और बुलेट मे से एक को चुनने का विकल्प था तब इतनी भीड़ मे एक्टिवा का चुनाव ही मेरे लिये सर्वश्रेष्ठ था। तमाम गलि-कूंजों से होते हुए हम लोग त्रिवेणी संगम की ओर बढ़े। अंग्रेज़ो के जमाने की वास्तु निर्माण से बना ऐसा पुल जिस की पहली मंजिल पर सड़क और दूसरी पर रेल पुल था। लगभग एक शताब्दी से प्रयोग मे लाये जा रहे इस पुल पर महाकुंभ के यातायात के दबाव के बावजूद आवागमन सुगम था। संगम पर स्नान करने जाते हुए यात्रियों के बीच एक महिला के सिर पर रक्खी पोटली से झाँकता एक छोटा से प्लास्टिक क्रिकेट बैट और महिला की गोद मे 3-4 साल के बच्चे को देख दिल भर आया कि कैसे महाकुंभ मे अपनी आवश्यकताओं के बोझ को पैदल ढोने के साथ बच्चे के सुख-सुविधाओं के बीच संतुलन बनाना तो इस माँ से सीखे?
तमाम ऊंचे-नीचे रास्ते, पगडंडियों और नदी के किनारे बने रास्तों से, एक घंटे के पहले ही, हम कब संगम के तट पर पहुँच गए पता ही नहीं चला। मीलों दूर तक टेंटों के समांतर पार्किंग की व्यवस्था बिना किसी पार्किंग शुल्क के एक कुशल व्यवस्था मे ही संभव थी। संगम स्नान के जाने के पूर्व लघुशंका हेतु, एक मेला कर्मी से जानकारी ले मै घाट से लगभग सौ गज दूर बने स्थान पर गया जहां एक ओर एक लिने मे लगभग 15-20 महिलाओं और दूसरे ओर इतने ही पुरुष शौंचालय की लाइन थी। बाहर 3-4 नल लगातार चालू हालत मे दिखे। सफाई ठीक ठाक थी। लघु शंका से निवृत्त हो हम नाव पर सवारी के लिए घाट पर पहुंचे। रावल जी से ज्ञात हुआ कि हम लोग अरैल घाट से त्रिवेणी संगम पर जाने के लिये नाव से प्रस्थान करेंगे। स्वाभविक ही था एक अनार सौ बीमार को चरितार्थ करती कहावत के अनुसार एक नाव मे चढ़ने के लिये पचासों लोग तैयार थे।
मांग और पूर्ति के अर्थशास्त्र के दर्शन यहाँ दिखाई दिये। जिस संगम तक तट तक सहज भले मे नाव के नाविक 50 रूपये प्रति व्यक्ति ले चलने मे निहोरें करते थे आज वे ही मल्लाह हजार-बारह सौ रूपये प्रति व्यक्ति के मुंह मांगे दामों मे भी चलने मे आना कानी कर रहे थे। बारह साल बाद होने वाली इस फसल को काटने मे नाविक भी पीछे कहाँ रहने वाले थे तब बिना किसी तरह मोल-भाव के हम लोगो ने नाव से संगम की ओर प्रस्थान किया। घाट से त्रिवेणी संगम तक का नदी मार्ग एकल मार्ग था। यातायात के नियमों के सख्ती से पालन करवाने हेतु नदी पुलिस की एक चौकी नदी के बीच मे स्थित थी जिसको नियंत्रित करने वाले पुलिस कर्मी छोटे से माइक से नाव वालों को आवश्यक निर्देश दे नियंत्रित कर रहे थे। ये बात अलग थी कि सड़क पर यातायात की तरह रजिस्ट्रेशन, ड्राइविंग लाइसेंस या इन्शुरेंस के बदले बसूला जाने वाला शुल्क या बसूली यहाँ नहीं थी पर सुरक्षा जैकेट और अन्य व्यवस्थाओं का शक्ति से पालन कराया जा रहा था।
तीन नदियों के त्रिवेणी संगम पर दो-तीन कृत्रिम लेकिन बड़े द्वीप प्लास्टिक के पीपों को आपस मे जोड़ कर बनाये गये थे। इस प्रतिरूप द्वीप तक पहुँचने मे नावों की रेलम पेलम जरूर थी पर यात्रियों को, हाथ-पैर नाव के अंदर रखने की हिदायत के साथ नाविक नावों को आगे-पीछे कर आगे बढ़ रहे थे। कृत्रिम द्वीप के चारों ओर के स्थान का अधिकतम उपयोग की नीति के तहत नाविक जददो-जहद करते ताकि हर तीर्थ यात्री सुगमता से संगम के नकली द्वीप पर पहुँच जाय। एक के पीछे दूसरी और फिर तीसरी नाव को आपस मे बांध कर नाविक श्रीद्धालुओं के लिये रास्ता बना रहे थे ताकि यात्री सुगमता पूर्वक कृत्रिम द्वीप पर पहुँच सके। द्वीप के एक कोने मे अपने सामान और वस्त्रादि रखने के बाद संगम मे स्नान के लिये उतरे। त्रिवेणी संगम मे मटमैले गंगा जल और यमुना नदी के हरे जल के रंग को देखा जा सकता था वही दोनों पवित्र नदियों के संगम से उत्पन्न माँ गंगा की पवित्र धारा तो देखते ही बनती थी। नदी का बहाव मध्यम था कहीं नदी की गहराई घुटने और अगले ही कदम पर कमर तक थी। पानी साफ सुथरा था।
गंगा जल से पूरी काया को पवित्रीकरण और आचमन के पश्चात, पहली डुबकी ने शीत लहर की तरह चुभन तो दी लेकिन उसके बाद शरीर से उत्पन्न ऊष्मा ने अंनगिनित डुबकी की ऊर्जा प्रदान कर दी। नदी के बहाव से कदम थोड़े बहुत डगमगाये लेकिन संगम की पवित्र डुबकी ने शरीर की सारी थकान मिटा दी और शरीर को स्फूर्ति, उत्साह और उमंग से भर दिया। सूर्य को अर्क देने के पश्चात बापस आ वस्त्रादि बदल कर तैयार हो गए। कृत्रिम द्वीप पर सैकड़ों की संख्या मे महिलाओं के लिये चेंजिंग रूम की अच्छी व्यवस्था थी। लगभग सवा-डेढ़ घंटे संगम पर स्नान आदि के पश्चात माँ गंगा की आरती, नमन और संकल्प के पश्चात हम लोगो ने गंगा तट की ओर प्रस्थान किया।
मौसम सुहावना था गंगा स्नान के बाद सुनहरी धूप मे नाव से बापसी यात्रा भी सुहावनी थी। साथ मे लाये वेसन के सेव जब नदी मे उच्छाले तो अनेक साइवेरियन सफ़ेद पक्षी सेव को खाने के लिये नाव के साथ साथ उड़ने लगे। पक्षियों द्वारा अपनी टेयू-टेयू की विशेष आवाज से वातावरण को एक विशेष संगीत से गुंजायमान कर दिया। संगम के बीच मे से नाव के पहुँचने पर नाविक ने लोगो द्वारा लायी गयी बोतलों मे गंगा जल भरने की सलाह दी। हम लोगो द्वारा लायी गई एक बोतल के साथ अन्य यात्रियों ने भी पवित्र गंगा जल भरा। नदी के मध्य मे सैकड़ों नावों को नदी मे आते-जाते देखना मन को सुकून देने वाला था। नदी के पृष्ठ भूमि मे प्रयागराज के किले की प्राचीरों ने इस दृश्य मे चार चाँद लगा दिये। मल्लाह ने नदी के तट के नजदीक ही छिछले पानी नाव को लगाया, तब एक बार पुनः गंगा जल के परम पावन जल मे उतरने का सौभाग्य प्राप्त कर एक बार पुनः माँ गंगा को नमन कर कुम्भ मेले के दर्शनार्थ आगे बढ़े। महाकुम्भ 2025: न भूतो न भविष्यते