मुख्यमंत्री इन्दौर, मध्य प्रदेश में देवी अहिल्याबाई होलकर की 228वीं पुण्यतिथि पर आयोजित देवी अहिल्या पुण्य स्मरण समारोह में सम्मिलित हुए। लोकमाता देवी अहिल्याबाई आदर्श शासक थीं। उस कालखण्ड में जब देश में साधन, सुविधाएं नहीं थीं, विदेशी हुकूमत थी, वैसे समय में एक रियासत से आगे बढ़कर भारत के सांस्कृतिक वैभव की पताका को एक नयी ऊँचाइयां प्रदान करना, एक असामान्य घटना थी, देवी अहिल्याबाई ने यह करके दिखाया। जब भी भारतीय और भारतीयता की चर्चा होगी, तो भारत के महापुरुषों, लोक आराध्यों, महारानी पद्मिनी, महारानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, महारानी देवी अहिल्याबाई आदि का नाम पूरी श्रद्धा के साथ लिया जाएगा। आदि शंकराचार्य ने सांस्कृतिक एकता हेतु भारत की चारों दिशाओं में पीठों की स्थापना कर जो कार्य किए, लोकमाता देवी अहिल्याबाई भारतीय सांस्कृतिक एकता की अलख जगाने का वही कार्य 18वीं सदी में कर रही थीं। श्री काशी विश्वनाथ का वर्तमान मन्दिर देवी अहिल्याबाई की देन, श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर में लोकमाता अहिल्याबाई का भव्य स्मारक बना। रामराज्य में सामान्य नागरिक की बात होती है, किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता, किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होता है। यह वर्ष हमारे लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण, यह छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का, हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना का 350वां वर्ष। मुख्यमंत्री ने वीरांगना देवी अहिल्याबाई होलकर के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। लोकमाता देवी अहिल्याबाई आदर्श शासक थीं-मुख्यमंत्री
ब्यूरो निष्पक्ष दस्तक
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि 18वीं सदी में भारत को लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर का सान्निध्य व नेतृत्व प्राप्त हुआ। कोई शासक अचानक पूज्यनीय नहीं हो जाता। उस कालखण्ड में जब देश में साधन, सुविधाएं नहीं थीं, विदेशी हुकूमत थी। वैसे समय में एक रियासत से आगे बढ़कर भारत के सांस्कृतिक वैभव की पताका को एक नयी ऊँचाइयां प्रदान करना, एक असामान्य घटना थी। यह देवी अहिल्याबाई ने करके दिखाया था। इसलिए वे लोकमाता के रूप में हम सभी के लिए स्मरणीय व पूज्य बनी हैं। इतने वर्षों के बाद भी हम उनका स्मरण और उनकी आराधना कर रहे हैं। वह सामान्य शासक नहीं, बल्कि आदर्श शासक थीं। आज इन्दौर, मध्य प्रदेश में देवी अहिल्याबाई होलकर की 228वीं पुण्यतिथि पर श्री अहिल्योत्सव समिति द्वारा आयोजित देवी अहिल्या पुण्य स्मरण समारोह में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उन्हें अवगत कराया गया है कि विगत 100 वर्षों से श्री अहिल्योत्सव समिति द्वारा लगातार देवी अहिल्या पुण्य स्मरण समारोह का आयोजन किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने वीरांगना देवी अहिल्याबाई होलकर के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री जी ने समारोह के दौरान एक पुस्तिका का विमोचन भी किया। उन्होंने लोकमाता देवी अहिल्याबाई की 228वीं पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम से जुड़ने और संवाद करने का अवसर प्रदान करने के लिए श्रीमती सुमित्रा महाजन के प्रति आभार व्यक्त किया। जब भी भारतीय और भारतीयता की चर्चा होगी, तो भारत के महापुरुषों, लोक आराध्यों, महारानी पद्मिनी, महारानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, महारानी देवी अहिल्याबाई आदि का नाम पूरी श्रद्धा के साथ लिया जाएगा। वे जनमानस के मन में लोक आराध्या, लोक स्मरणीय बनकर पूजी जाती रहेंगी। जिस प्रकार आज देवी अहिल्याबाई की 228वीं पुण्यतिथि पर उनका स्मरण किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में जन्मे समाजवादी नेता डॉ0 राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि अगर किसी व्यक्ति को उसके न रहने के 50 वर्ष बाद भी कोई स्मरण कर रहा है, तो वह सामान्य नहीं असामान्य व्यक्ति है। यह आयोजन सभी को इन बातों का स्मरण कराता है। समाज ऐसे ही नहीं किसी व्यक्ति से सम्बन्धित आयोजन के साथ जुड़ जाता। व्यक्ति के व्यक्तित्व के कारण समाज उसे याद रखता है।
महाभारत के शान्ति पर्व की चर्चा करते हुए कहा कि सरशैय्या पर भीष्म पितामह लेटे हैं। युधिष्ठिर भीष्म पितामह से पूछते हैं कि क्या राजा परिस्थितियों का दास होता है। भीष्म पितामह ने कहा ‘कालो वा कारणं राज्ञो राजा वा कालकारणम्। इति ते संशयो मा भूद्राजा कालस्य कारणम्।।’ राजा अपने समय की परिस्थितियों के रूप का निर्माण करता है। इसको लेकर किसी को कोई सन्देह नहीं होना चाहिए। राजा ही अपने समय के स्वरूप का निर्धारण करता है। वह अपने समय की परिस्थितियों का निर्माता होता है। इसलिए हमारे यहां एक सामान्य युक्ति प्रचलन में है ‘यथा राजा, तथा प्रजा’। जैसा शासक होगा, जैसी राजनीति होगी, देश में जिस प्रकार की बहार बहेगी, वैसी ही परिस्थितियां होंगी। शासक भ्रष्ट, अनाचारी, दुराचारी, अन्यायी, अत्याचारी है, तो भ्रष्टाचार, दुराचार, अनाचार व अन्याय के गन्दे नाले दुर्गन्ध फैलाएंगे। राजा चरित्रवान है, लोक कल्याण के लिए समर्पित है, ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा है, तो भागीरथी की गंगा बहने में देर नहीं लगती, उसकी सुगन्ध को फैलने में देर नहीं लगती।
भारत में रामराज्य एक आदर्श राजकीय व्यवस्था के रूप में मान्य है। रामराज्य में आधिदैविक, आधिभौतिक, आध्यात्मिक किसी भी प्रकार के दुःख के लिए कोई स्थान नहीं है। भारत में एक आदर्श राजकीय व्यवस्था है, जिसमें भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है। पं0 दीनदयाल उपाध्याय जी ने अन्तिम पायदान पर बैठे हुए व्यक्ति के अन्त्योदय की बात की है। उन्होंने कहा है कि जब भारत की आर्थिक उन्नति की बात होगी, तब इसका पैमाना ऊँची पायदान पर बैठा व्यक्ति नहीं, बल्कि सबसे नीचे पायदान पर बैठा व्यक्ति होना चाहिए। प्रभु श्रीराम आज भी हम सभी के आदर्श हैं। रामराज्य की अवधारणा भारत में आदर्श राज्य के रूप में मानी गयी है। भारत हजारों वर्षों से इस परम्परा को मानता आ रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भी जब किसी ने पूछा कि राज्य कैसा होना चाहिए, तो उन्होंने कहा कि रामराज्य होना चाहिए। क्योंकि रामराज्य में एक सामान्य नागरिक की बात होती है। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता, किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होता। हर व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे के साथ मिलकर अपनी व्यवस्था का संचालन करते हुए आगे बढ़ता है। रामराज्य की इस आदर्श व्यवस्था को हम प्राचीन काल से मानते आ रहे हैं। एक कॉमन मैन की बात को महत्व दिया जाना, सबसे अधिक महत्व रखता है। जिस शासन व्यवस्था में इस परम्परा को मान्यता मिली, उस व्यवस्था को लोगों ने आदर भाव से देखा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रभु श्रीराम का चरित्र प्रत्येक भारतीय के रग-रग में रचा-बसा है। इसका पहला उदाहरण रामलीला के आयोजन में देखा जाता है। रामलीला के सभी प्रसंगों को सभी व्यक्ति जानते हैं, किन्तु सभी लोग रामलीला के आयोजन से बड़ी तन्मयता से जुड़ते और देखते हैं। उन प्रसंगों के साथ स्वयं को, अपने परिवार को और सगे सम्बन्धियों को जोड़ते हैं। रामलीला या रामकथा के आयोजन में शामिल होकर लोग बड़े श्रद्धाभाव तथा बड़ी तन्मयता से जुड़ने का प्रयास करते हैं। कुछ लोग श्रीराम व श्रीकृष्ण के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करते थे, मिथक मानते थे, लेकिन श्रीराम एक वास्तविकता है। प्रभु श्रीराम सनातन धर्म की शाश्वतता तथा सत्य की पराकाष्ठा हैं। भगवान श्रीराम की शाश्वतता पर कोई प्रश्न नहीं खड़ा कर सकता। अयोध्या में बनने वाला भगवान श्रीराम का भव्य मन्दिर इस बात का प्रमाण है।
भारत में वीर नारियों, वीरांगनाओं का एक विशिष्ट महत्व है। हर कालखण्ड में भारत की मातृसत्ता ने संकट के समय नेतृत्व भी दिया है। महाराणा प्रताप को हल्दी घाटी के युद्ध के बाद अरावली के जंगलों में जाना पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में भी उन्होंने स्वदेश और स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं किया। स्वधर्म के ध्वज को झुकने नहीं दिया। उनके समक्ष सेना एकत्र करने और परिवार की व्यवस्था दोनों का चिन्तन था। अपनी पुत्री को भूख से बिलखते हुए देखकर एक बार वे सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर करने का विचार करने लगे, तो मेवाड़ की महारानी उनकी पत्नी ने उन्हें रोका और कहा कि उन्हें इसका अधिकार नहीं है। यह अधिकार हल्दी घाटी में शहीद सैनिकों का है, शहीद हुए चेतक का है। यदि वे इस संघर्ष को आगे नहीं बढ़ा सकते, तो तलवार उन्हें दे दें। वे विदेशी हुकूमत को नाकों चने चबवाने का कार्य करेंगी। लेकिन भारत की ध्वजा को झुकने नहीं देंगी। इसके कुछ वर्षों में महाराणा ने अपने सभी दुर्ग व किलों पर जीत हासिल की और मेवाड़ राजवंश की पताका को स्थापित किया। जिस पर हर भारतीय गौरव की अनुभूति करता है।
यह वर्ष हमारे लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का, हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना का 350वां वर्ष है। बड़े से छोटा होना महानता नहीं, बल्कि छोटे से बड़ा होना महानता के लक्षण हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज ने उस कालखण्ड के बर्बर शासक औरंगजेब को नाकों चने चबवाने पर मजबूर कर दिया था। 17वीं सदी में वैसा शौर्य और पराक्रम देखना हर भारतीय को एक नयी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। उस कालखण्ड में भारत में सनातन धर्म, भारतीयता और भारत की परम्परा व संस्कृति के बारे में बात करना अपराध माना जाता था। ऐसे कालखण्ड में छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना की गई थी। यह सामान्य नहीं असामान्य घटना थी। महाराणा प्रताप कहते थे कि एकलिंगी महादेव शासक हैं। वे उनके दीवान के रूप में कार्य कर रहे हैं। मालवा शासन में शासिका के रूप में देवी अहिल्याबाई ने भी यही बात कही थी कि भगवान शिव ही शासक हैं, शासन शिव की अमानत है। शासन का राजस्व जनता की अमानत है। यह जनता और लोक कल्याण को समर्पित है। उन्होंने बद्रीनाथ मन्दिर से लेकर रामेश्वरम् के मन्दिर के लिए कार्य किए। केरल से निकले एक संन्यासी आदि शंकराचार्य ने सांस्कृतिक एकता हेतु भारत की चारों दिशाओं में पीठों की स्थापना कर जो कार्य किए थे, लोकमाता देवी अहिल्याबाई भारतीय सांस्कृतिक एकता की अलख जगाने का वही कार्य 18वीं सदी में कर रही थीं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आक्रान्ताओं की परम्परा पर विश्वास करने वाले लोग सनातन को अपमानित करने का कार्य कर रहे हैं। सनातन धर्म की परम्परा पर गौरव की अनुभूति करने वाले लोकोद्धार व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अभियान को पूरी निर्भीकता के साथ आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। 18वीं सदी में लोकमाता देवी अहिल्याबाई इसी ध्वज पताका को लेकर चली थीं। श्री काशी विश्वनाथ का वर्तमान मन्दिर देवी अहिल्याबाई की देन है। श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की स्थापना के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने विशेष रूप से कहा था कि लोकमाता देवी अहिल्याबाई का एक बड़ा स्मारक यहां बनना चाहिए। श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर में लोकमाता अहिल्याबाई का भव्य स्मारक बना है। श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में पहले 05 फीट का रास्ता था, वहां 50 लोग एकत्र नहीं हो सकते थे। आज एक समय में 01 लाख श्रद्धालु एकत्र हो सकते हैं। श्री काशी विश्वनाथ धाम में बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए प्रतिदिन 05 लाख श्रद्धालु आ रहे हैं।
18वीं सदी में लोकमाता अहिल्याबाई ने भगवान विश्वनाथ के भव्य मन्दिर का निर्माण किया था। सोमनाथ मन्दिर के पुनरुद्धार का कार्य देवी अहिल्याबाई ने किया था। पहले भारत में छोटी-बड़ी और अलग-अलग राजनीतिक इकाइयां रही हैं। भारत में भले ही राजनीतिक इकाइयां छोटी-बड़ी हों, लेकिन उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम सम्पूर्ण भारत अनादि काल से एक रहा है। भारत के रूप में अपनी मान्यता को सदैव बनाए रहा है। प्रभु श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण व आदि शंकराचार्य इसके उदाहरण हैं।मुख्यमंत्री ने कहा कि श्रद्धेय अटल ने स्वर्णिम चतुर्भुज के रूप में भारत में एक अन्तरराष्ट्रीय स्तर का हाइवे बनाया। यह कार्य अटल जी ने आजादी के बाद प्रारम्भ किए। लेकिन भारत में हाइवे की परम्परा आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व की थी। अपने कालखण्ड में चन्द्रगुप्त मौर्य ने भी दो पथ-उत्तर पथ एवं दक्षिण पथ बनवाए थे। उस समय जब उत्तर पथ तथा दक्षिण पथ था।
एक पथ पाटलीपुत्र से तक्षशिला तक जा रहा था। इसके कुछ अवशेष मिले हैं, जिसमें फिर से इकोनॉमिक कॉरिडोर का निर्माण करने जा रहे हैं। यह उत्तर प्रदेश में पूरब से पश्चिम को जोड़ने जा रहा है। यह एक नया कॉरिडोर विकसित होगा। इकोनॉमिक कॉरिडोर को विकसित करने की कार्यवाही को आगे बढ़ाया जा रहा है। उस समय आचार्य चाणक्य तक्षशिला से नालन्दा की यात्रा करने के लिए 3-4 दिन में पहुंच जाते थे। उस समय भी अच्छी सड़कों का निर्माण हो रहा था। दूसरा पथ दक्षिण तक था। उसके मार्ग भी चिन्ह्ति थे। उस कालखण्ड में भी इस भाव से भारतीय शासक जुड़ा था। भारत को जोड़ने के लिए शासन व्यवस्था कोई भी रही हो, अगर भारतीयता से ओत-प्रोत है, तो उसने सदैव लोक कल्याण को महत्व दिया, आगे बढ़ाने तथा उसे प्रेरित और प्रोत्साहित करने का कार्य किया। भारत की सांस्कृतिक सीमा सदैव से कहीं भी राजनीतिक बन्दिशों से जकड़ी नहीं रही।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा हर घर में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता हेतु हर घर नल योजना लागू की गई है। पाइप द्वारा पेयजल की यह योजना अकल्पनीय है। पहले उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में माताओं को 5-5 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता था। पूरे क्षेत्र में पानी सूख जाता था। आज बुन्देलखण्ड क्षेत्र में हर घर तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो रहा है। हर खेत तक पानी पहुंच रहा है। आज बुन्देलखण्ड हाइवे से जुड़ चुका है। कल ही बुन्देलखण्ड में नए औद्योगिक परिक्षेत्र के निर्माण की घोषणा की गई है। यहां पर आगामी वर्षों में लगभग 05 लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा। इससे व्यापक पैमाने पर रोजगार और नौकरियों के अवसर सृजित होंगे।
किसी कालखण्ड में सोमनाथ मन्दिर तथा काशी विश्वनाथ मन्दिर के पुनरुद्धार का कार्य किया गया था। आज श्री काशी विश्वनाथ धाम बन रहा है, तो उज्जैन में महाकाल में महाकाल लोक का निर्माण हो रहा है। सोमनाथ, द्वारका व उत्तराखण्ड के केदारनाथ में भगवान केदारनाथ के भव्य लोक की स्थापना का कार्य हो रहा है। बद्रीनाथ धाम में भी यह कार्य आगे बढ़ रहा है। यह वही मॉडल है, जो लोकमाता ने हम सभी के सामने प्रस्तुत किए थे। आज का दिन हम सभी के लिए लोकमाता को स्मरण करने तथा उनके प्रति श्रद्धानत होने का दिन है। आने वाली पीढ़ी को लोक कल्याण के पथ पर एक दिशा में आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करने का दिन है। मुख्यमंत्री ने उज्जैन में श्री महाकालेश्वर मन्दिर में दर्शन-पूजन किए। उन्होंने इन्दौर स्थित योगी माधवनाथ महाराज की पावन समाधि के भी दर्शन किए। लोकमाता देवी अहिल्याबाई आदर्श शासक थीं-मुख्यमंत्री