जानें कहाँ जा रही युवा पीढ़ी…

385
जानें कहाँ जा रही युवा पीढ़ी...
जानें कहाँ जा रही युवा पीढ़ी...

….. आज की युवा पीढ़ी…..

सेवा वही कर सकता है, जो अपने लिये कभी कुछ नहीं चाहता। सेवा करने के लिये धनादि पदार्थों की चाह तो कामना है ही, सेवा करने की चाह भी कामना ही है; क्योंकि सेवा की चाह होने से ही धनादि पदार्थों की कामना होती है। इसलिये अवसर प्राप्त हो और योग्यता हो तो सेवा कर देनी चाहिए, पर सेवा की कामना नहीं करनी चाहिये।

आज युवा पीढ़ी जाने कहाँ जा रही है..? लोग खुद मे इतने व्यस्त है कि उन्हे अपने कर्तव्य का जरा सा भी ध्यान नहीं है जबकि उनका सबसे बड़ा कर्म है कि वह अपने मता-पिता तथा अपने बुजुर्गो की सेवा करें। कुछ लोग हर समय अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ गलत व्यवहार करते है। वे ये नहीं जानते की उन्हे भी इस उम्र का सामना करना पड़ेगा। अपने बच्चों की वजह से कुछ लोग वृद्धाश्राम का सहारा लेते है जो की हमारे लिए बड़े ही दुख की बात है की जिस माँ बाप ने हमे जन्म दिया हमारे लिए जाने कितना कुछ किया खुद भूखें रहे पर हमे खिलाया। हमारी रक्षा के लिए जाने कितने जप तप किये। आज वही माँ बाप हमसे दुखी है। यह बहुत गलत है सबसे बड़ा अधर्म है।

जानें कहाँ जा रही युवा पीढ़ी…

यदि ये हमसे दुखी है तो हमें इन्हे खुश रखना चाहिये रोटी को मोहताज उन मां-बापों को दर दर क्यों भटकना पड़े जिस मां-बाप ने पढ़ाया-लिखाया हमारी हर एक जरूरत को पूरा किया। हमने जो चाहा जो मागा हमें दिया पर आज हम उन्ही माता पिता के साथ गलत करते है, उनकी सेवा से कतराते है। यह एक बहुत बड़ा पाप है। हम अपने जीवन में कितने भी धर्म-कर्म करें पर यदि अपने माता पिता का तिरिष्कार कर रहे है तो हमारे सारे धर्म कर्म व्यर्थ हैं। जीवन भर जप तप किया, बहुत पूजा पाठ की लेकिन माँ बाप को सुख नहीं दिया वे दुखी है, उनकी सेवा न की,उनका हमेशा अपमान किया तो इस सब पूजा पाठ का कोई अस्तित्व नहीं। हमें अपने माँ बाप को हमेशा खुश रखना चाहिये हर किसी के माँ बाप अपने बच्चों के प्रति प्रेम व निष्ठा रखते हैं। वे हमेशा भगवान से उनके उज्वल भविष्य की कामना करते हैं। हमें भी अपने माँ बाप एवं ब्रद्धों की सेवा करनी चाहिये। यह हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य होता है हमें भी इस समय से गुजरना पड़ेगा तथा हम जैसा करेगें वैसा फल पायेगें। हम इन ब्रद्ध जनों की सेवा करके अपने जीवन को महान व जीवन भर सुख सम्वृद्ध प्राप्त कर सकते है। जानें कहाँ जा रही युवा पीढ़ी…

अपने भीतर भगवान को देखना ध्यान है और आपके बाजू के व्यक्ति में भगवान को देखना सेवा है। अक्सर लोगों में भय होता है कि दूसरे लोग उनका शोषण करेंगे यदि वह सेवा करेंगे। जबकि सच यह है कि सेवा से योग्यता आती है और ध्यान के गहन में जाने में सहायता मिलती है और ध्यान से आपकी मुस्कुराहट वापस आ जाती है। सेवा और आध्यात्मिक अभ्यास साथ में चलते हैं। जितना आप ध्यान के गहन में जाएंगे उतनी ही दूसरों के साथ बांटने की इच्छा में वृद्धि होगी। जितनी आप दूसरों की सेवा करेंगे उतने ही गुण आप प्राप्त करेंगें। कई लोग सेवा इसलिये करते हैं क्योंकि उससे उन्हें लाभ प्राप्त होता है। जब लोग खुश होते हैं तो उन्हें लगता है कि अतीत में निश्चित ही उन्होंने सेवा की होगी। इसके विपरीत यदि आप खुश नहीं हैं तो फिर सेवा करें इससे आपकी चेतना का विस्तार होगा और आप खुशी का अनुभव करेंगें। जितना आप बांटेंगे उतनी ही शक्ति और प्रचुरता की बौछार आप पर होगी। यह बैंक में जमा पूंजी को बढ़ाने के समान है। जितना आप अपने आपसे खुल जाते हैं उनता ही आप भगवान को अपने में प्रवेश करने का स्थान प्रदान करते हैं।

दिखावे और स्वार्थ के लिए करते हो तो मत कीजिए।
किसी की सेवा करनी है तो निस्वार्थ मन से कीजिए।।
जिनके अंदर इंसानियत की भावनाएँ छुपी होती है।
निस्वार्थ सेवा वही करते हैं।।
वरना इंसान तो रिश्तो को तभी तक पहचानता है।
जब तक रिश्ते में स्वार्थ छुपा होता है।।

जब आप सेवा को अपने जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता बना लेते है तो फिर भय समाप्त हो जाता है। मन और अधिक केंद्रित हो जाता है। कृत्य को उद्देश्य मिलने लगता है और दीर्घकालीन आनंद की प्राप्ति होती है। जब आप सेवा करते हैं तब आप में स्वाभाविकता और मानवीय मूल्य निखरने लगता हैं और आपको भय और उदास मुक्त समाज निर्मित करने में सहायता प्राप्त होती है। युवाओं के लिये आध्यात्म उनकी बांटने की क्षमता में निखार लाता है और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाता है। यदि आपकी दूसरों की मदद और सेवा करने की इच्छा है तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं क्योंकि दिव्यता आपका अच्छे से ध्यान रखेगी। पैसों की बहुत चिंता न करें। प्रेम और आभार से परिपूर्ण रहें। प्रेम में रहकर अपने भीतर के भय से निकलें। उदासी का सबसे बड़ा और प्रभावी प्रतिकारक सेवा होती है। जिस दिन भी आप निराशाजनक और मंद महसूस कर रहे हों उस दिन अपने घर से निकलें और लोगों से पूछें, “मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ।” जो आप सेवा करेंगे उससे आपका जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदलेगा और आपके भीतर एक आनंद की लहर आएगी क्योंकि आपने किसी के जीवन को मुस्कुराने का मौका दिया है। जब आप प्रश्न करते है, मैं ही क्यों,या मेरे बारे में क्या इससे आपको उदासी और निराशा मिलेगी।


कौन कहता है ज़िंदगी में खुशहाली नहीं होती।
मौसम में बहार और फ़िजाओं में हरियाली नहीं होती।।
जो करते हैं बुजुर्गों की निस्वार्थ भाव से सेवा।
उनकी किस्मत कभी खाली नहीं होती।।

आधुनिकता मानव समाज का एक ऐसा आवरण है,जिसे ओढ़कर वे स्वयं में बदलाव महसूस करते है।आज के युवाओं को समाज तथा जीवन के यथार्थता को समझना होगा। इसके लिए माता-पिता को समान रूप में स्थिति से युवाओं को अवगत कराना होगा। यह कार्य केवल यौवनप्राप्त करने पर ही नहीं, शिशु अवस्था से ही बच्चें को दायित्वशील बनाना उनका कर्तव्य होगा। तभी जाकर बड़े होने पर वह स्थिति की वास्तविकता का सामना करने में सक्षम होगा कुछ माता-पिता खुद कष्ट झेलकर भी बच्चें को विलासी जीवन प्रदान करते हैं। बच्चों को माता-पिता की वास्तविक आर्थिक स्थिति से रुबरु कराना उनका उत्तरदायित्व होता है। बचपन से अगर कोई शिशु आर्थिक स्थिति को समझेगा तो युवावस्था में भी यहीं सोच बरकरार रहेगा। आज का युग प्रतियोगिताओं का युग है। माता-पिता को उनके सन्तानों को समाज में अपनी स्थिति मजबूत बनाने हेतु एक सफल पुरूष एवं नारी के रूप में आगे बढ़ाना है, न की उन्हें प्रतियोगिताओं की घोड़ा बनाना है।

मकड़ी अपना जाला आप बुनती है और उसी में फँसी पड़ी रहती है। हम भी अपनी परिस्थितियों की सृष्टि आप करते रहते हैं और उसी में सुख-दु:ख अनुभव करते हुए जीवन को हँसते-रोते व्यतीत करते रहते हैं। आमतौर से ऐसा समझा जाता है कि हमारी वर्तमान परिस्थितियों के निर्माता कोई और हैं। जब विपरीत या कष्टकारक कोई अवसर सामने आते हैं। जब विपरीत या कष्टकारक कोई अवसर सामने आते हैं और उनके निदान के कारण की ढूँढ़-खोज करनी आवश्यक होती है,तब हम यह खोजबीन अपने भीतर न करके, अपने दोषों पर विचार न करके बाहरी कारणों पर दोषारोपण करते हैं और यह प्रयत्न करते हैं कि दोषी कोई और सिद्ध हो जाए और हम अपने आपको निर्दोंष मानकर संतोष कर लेने का कोई बहाना ढूँढ निकालें।

आज का मानव अतीत के अंधकार से वर्तमान के उजाले की ओर अग्रसर हो रहे है। युवा पीढ़ी खुद को आधुनिक कहने लगे है। आधुनिकता की दौड़ में कहीं न कहीं युवा पीढ़ी अपनी सभ्यता तथा संस्कृति को खोने लगे है। आलोच्य विषय के अंतर्गत आधुनिकता को लेकर युवा पीढियों की जो मानसिक धारणाएं हैं,उस पर प्रकाश डाला गया है। जानें कहाँ जा रही युवा पीढ़ी…