
जब तक केजरीवाल जेल में थे उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया लेकिन जेल से बाहर आते ही इस्तीफे की घोषणा कर दी। जब केजरीवाल जेल से सरकार चला सकते थे तो उन्हें जेल से बाहर आकर सरकार चलाने में क्या परेशानी थी। दिल्ली की दुर्दशा पर केजरीवाल की राजनीति
राजेश कुमार पासी
केजरीवाल आजकल दिल्ली में घूम-घूम कर सड़को का जायजा ले रहे हैं और उनको ठीक कराने की बात बोल रहे हैं। अजीब बात यह है कि उन्होंने 26 सिंतबर को आतिशी मार्लेना को दिल्ली की मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई और दूसरे दिन ही उन्हें लेकर सड़को का निरीक्षण करने चल पड़े । इसके लिए उन्होंने दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना को पत्र भी लिखा है । मुख्यमंत्री आतिशी ने उस पत्र को मीडिया में दिखाते हुए कहा है कि दीवाली से पहले दिल्ली की सड़कों को ठीक कर दिया जाएगा । केजरीवाल का कहना है कि उनके जेल जाने से पहले दिल्ली की सड़कें बिल्कुल ठीक थी लेकिन उनके जेल जाने के बाद सड़कें जर्जर हालत में पहुंच गई हैं । वो इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार मानते हैं क्योंकि उसने ही उन्हें जेल में डाल दिया था ताकि दिल्ली के काम रुक जाए ।
ये एक अलग तरह की राजनीति चल रही है क्योंकि जिस पार्टी की सरकार पिछले दस सालों से दिल्ली में शासन कर रही है, उसी पार्टी का मुखिया और 6 महीने पहले तक नौ साल तक मुख्यमंत्री रहा नेता दिल्ली की दुर्दशा का रोना रो रहा है। सवाल उठता है कि जो व्यक्ति पिछले नौ सालों से लगातार सत्ता में रहा है, उसे अचानक अपने घोटालों की वजह से जेल जाना पड़ा तो उसके राज्य की ऐसी हालत कैसे हो गयी । सवाल यह भी उठता है कि यही व्यक्ति जेल से सरकार चलाने की जिद्द पकड़ कर बैठा हुआ था और मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा नहीं दे रहा था तो क्या वो मानता है कि वो जेल से सरकार नहीं चला सका।
दूसरी बात यह है कि केजरीवाल ही जेल में गए थे लेकिन उनके सभी मंत्री जेल से बाहर थे और वो सरकार भी चला रहे थे तो क्या उनकी अनुपस्थिति में इन मंत्रियों ने बिल्कुल काम नहीं किया। केजरीवाल ने जिस आतिशी मार्लेना को मुख्यमंत्री बनाया है, वो लगातार दावा कर रही थी कि उनके नेता केजरीवाल जेल से लगातार निर्देश दे रहे हैं और उनके निर्देशों के अनुसार दिल्ली की जनता के सारे काम किये जा रहे हैं। जेल में रहने के बावजूद आम आदमी पार्टी के नेता दावा कर रहे थे कि दिल्ली के बेटे केजरीवाल को दिल्ली की बहुत चिंता है और दिल्ली सरकार उनके आदेशों का पालन कर रही है।
जब तक केजरीवाल जेल में थे उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया लेकिन जेल से बाहर आते ही इस्तीफे की घोषणा कर दी । जब केजरीवाल जेल से सरकार चला सकते थे तो उन्हें जेल से बाहर आकर सरकार चलाने में क्या परेशानी थी । वास्तव में केजरीवाल के बिना दिल्ली सरकार के सारे कामकाज रुके हुए थे लेकिन आम आदमी पार्टी द्वारा दावा किया जा रहा था कि सरकार पूरा काम कर रही है। केजरीवाल इसलिये इस्तीफा नहीं दे रहे थे क्योंकि वो किसी को मुख्यमंत्री पद पर बिठाना नहीं चाहते थे। उन्हें डर था कि उनके जेल में रहने के कारण जो भी नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेगा, वो सरकार और पार्टी पर कब्जा कर सकता है। केजरीवाल को पता नहीं था कि वो कब जेल से बाहर निकलेंगे इसलिए उन्होंने किसी को भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया । उनकी अनुपस्थिति में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल पार्टी और सरकार दोनों को चला रही थी लेकिन केजरीवाल ने उन्हें भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया क्योंकि वो वंशवाद का आरोप नहीं लगवाना चाहते थे ।
जब वो जेल से बाहर आये तो सुप्रीम कोर्ट की शर्तों के अनुसार वो मंत्रिमंडल की बैठक नहीं बुला सकते थे और इसके कारण कोई बड़ा फैसला नहीं हो सकता था। चुनाव को देखते हुए केजरीवाल कुछ फैसले लेना चाहते हैं इसलिये उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर आतिशी को मुख्यमंत्री बना दिया है। बेशक आतिशी मुख्यमंत्री बन गई हैं लेकिन सरकार केजरीवाल ही चला रहे हैं और पार्टी तो उनके कब्जे में ही है। कल्पना करिए कि अगर केजरीवाल जेल में होते तो क्या तब आतिशी पार्टी और सरकार पर हावी नहीं हो सकती थी। केजरीवाल ने त्याग भी कर दिया और त्याग से सब कुछ हासिल भी कर लिया।
आतिशी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठ रही हैं क्योंकि वो उस कुर्सी को केजरीवाल की कुर्सी मानती हैं और कहती हैं कि वो सिर्फ केजरीवाल के आने तक काम कर रही हैं । आतिशी कठपुतली से भी बदतर हालत में है. 2025 के चुनाव के बाद केजरीवाल का मुख्यमंत्री बनना तय है. अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के कारण यह संभव नहीं हो सका तो उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बनेंगी। आतिशी जानती हैं कि वो सिर्फ कुछ महीनों के लिए कुर्सी पर हैं । उन्होंने खुद ही घोषणा कर दी है कि वो ऐसे शासन करेंगी जैसे भरत ने खड़ाऊ रखकर शासन किया था । अब सवाल उठता है कि जो विपक्ष दिन-रात सविंधान का रोना रोता है और सविंधान को सिर पर उठाकर घूमता है, उसे बताना चाहिए कि बाबा साहब अम्बेडकर के सविंधान में कहां लिखा है कि मुख्यमंत्री पद किसी की निजी जागीर बन जायेगा। उस पर खड़ाऊ रखकर शासन किया जाएगा। न तो सविंधान में ऐसा कहीं लिखा है और न ही लोकतंत्र में ऐसा होता है, ये सिर्फ राजतंत्र में संभव है। मनमोहन सिंह भी एक डमी प्रधानमंत्री थे लेकिन उन्होंने सार्वजनिक रूप से कभी खुद को डमी प्रधानमंत्री नहीं माना और न ही सोनिया गांधी ने कभी सार्वजनिक रूप से उनका ऐसा अपमान किया जिससे लगे कि वो डमी प्रधानमंत्री हैं ।
जब केजरीवाल आतिशी को साथ लेकर सड़को का निरीक्षण कर रहे थे तो वो उनके पीछे-पीछे ऐसे चल रही थी जैसे उनकी कोई मातहत कर्मचारी हों । केजरीवाल मीडिया से बात कर रहे थे और वो चुपचाप पीछे खड़ी थी। जिन सड़को का निरीक्षण किया गया है और उनकी बुरी हालत है उनका ठेका दिया जा चुका है और उनको ठीक करने का काम शुरू होने वाला है।देखा जाए तो केजरीवाल यह दिखाना चाहते हैं कि असली मुख्यमंत्री वो ही हैं और उनके कहने से ही सब कुछ हो रहा है। केजरीवाल ही सभी अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे और आतिशी चुपचाप पीछे खड़ी सब देख रही थीं। अधिकारियों की टीम भी केजरीवाल से ही सारे निर्देश ले रही थी। देखा जाए तो ये पूरी तरह से सविंधान और मुख्यमंत्री के सवैंधानिक पद का अपमान है।
केजरीवाल सविंधान और कानून का सरेआम मजाक बना रहे हैं। केजरीवाल एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष होने के आधार पर सरकारी बंगला मांग रहे हैं जबकि ऐसा कोई कानून नहीं है कि किसी को सिर्फ पार्टी अध्यक्ष होने के आधार पर सरकारी बंगला दे दिया जाए। उन्होंने इसके लिए बाकायदा धरना प्रदर्शन किया है । सिर्फ परंपरा के आधार पर उन्हें बंगला दिया जा सकता है लेकिन वो सत्ताधारी पार्टी की दया पर निर्भर करता है। वो अब अपने सांसदो से बंगला खाली करवा कर उसमें जाना चाहते हैं जो कि कानून के अनुसार गलत होगा । बहाना यह बनाया जा रहा है कि बंगले में कोई नहीं रहता है इसलिए केजरीवाल उसमे जा रहे हैं। सवाल यह है कि जब बंगले की जरूरत नहीं थी तो सांसदों ने क्यों बंगले लिए और ले लिए तो खाली रखने की जगह सरकार को वापिस करने चाहिए थे ।
सरकारी नियम कहते हैं कि जिसे बंगला दिया जाता है वही उसमे रह सकता है । अगर वो किसी दूसरे व्यक्ति को अपना सरकारी निवास देता है तो उनके खिलाफ कार्यवाही होती है और सरकारी निवास वापिस करना पड़ता है। केजरीवाल जानबूझ कर कानून का उल्लघंन कर रहे हैं ताकि मोदी सरकार कोई कार्यवाही करे और उन्हें विक्टिम कार्ड खेलने का मौका मिल सके । मनीष सिसोदिया को भी एक सांसद का बंगला खाली करवाकर दे दिया गया है। दिल्ली की दुर्दशा करके केजरीवाल जिम्मेदारी अपने ही मंत्रियो पर डालना चाहते हैं और दिखाना चाहते हैं कि सरकार सिर्फ वो ही चला सकते हैं। उनके जेल जाने के कारण दिल्ली की दुर्दशा हो गई है। उन्हें याद नहीं है कि वो जेल से सरकार चला रहे थे तो सारी जिम्मेदारी उनकी ही बनती है। अगर उन्होंने अपनी अनुपस्थिति में किसी दूसरे को मुख्यमंत्री बनाया होता तो उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती । उन्हें ये भी बताना चाहिए कि जिस दिल्ली को उन्होंने पेरिस और लंदन जैसा बना दिया था वो सिर्फ 6 महीनों में ऐसी बदतर हालत में कैसे पहुंच गई है। दिल्ली की दुर्दशा पर केजरीवाल की राजनीति