डॉ. घनश्याम बादल
कृष्ण भारतीय संस्कृति के ऐसे नायक हैं जो शैशवावस्था से लेकर अंतिम अवस्था तक सदैव चर्चा में रहे और विविध लीलाओं से विश्व को आकृष्ट करते रहे। समस्त ब्रह्मांड को अपने मुंह में दिखाकर अपनी पालनहार माता यशोदा को ही नहीं अपितु पूरे ब्रह्मांड को मोहने का काम कृष्ण करते हैं । कृष्ण को ईश्वर कहें या मानव, सुधारक कहें या दंडाधिकारी, हर रूप में वें लोक से जुड़ते हैं । एक ग्वाले के रूप में देखें या माखनचोर के रूप में, बाल लीला में हों या द्वारिकाधीश के रूप में, कृष्ण हर वक्त , हर पल लोक कल्याण में रत मिलते हैं । कर्मयोगी,धर्मरक्षक लोकनायक कृष्ण
बखान से परे कृष्ण :
कृष्ण में इतना वैविध्य है कि बखान करना संभव नहीं । उनका जन्म ही अपने आप में दिव्य है. वें जन्मते ही चमत्कार करने लगते हैं । बाल्यावस्था में ही इतना कुछ कर जाते हैं कि विश्वास करना मुश्किल होता है । उनकी लीलाएं अपरंपार की श्रेणी में रखी जा सकती हैं । मिथक उन्हे भगवान विष्णु का पूर्णावतार मानते हैं जो धरा पर धर्म की ग्लानि रोकने, अधर्म का अभ्युथान करने , धर्म की संस्थापना करने , दुष्टों का संहार करने के लिए अवतरित हुए । कृष्ण अपने गीता के उपदेश में स्वयं को ‘यदा यदा हि धर्मस्य गलार्निभवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य विनाशाय च दुष्कृताम, संभावम्यहम् युगे युगे’ कहकर खुद को भगवान घोषित कर देते हैं और उनके कार्यों को देखते हुए इसे झूठ लाना संभव नहीं है। तो कृष्ण ऐसी विभूति हैं जो मानव होने के बावजूद भगवान का दर्जा पा गए हैं
मुक्तिदाता, भक्त वत्सल व दुष्टहंता :
कृष्णभक्त मानते हैं वें राम, कृष्ण, नरसिंह, वराह, शूकर, परशुराम या दूसरे और रूपों में हर युग में अवतरित होते रहे हैं और भक्तों की रक्षा व दुष्टों का नाश करते हैं । द्वापर में वें कृष्ण के रूप में पूतना, शकटासुर वृषभासुर, कंस, शिशुपाल, जरासंध, व दुर्योधन आदि की मृत्यु का माध्यम बनते हैं। वें पांडवों, द्रोपदी, कुंती, विदुर, सुदामा जैसे भक्तों की रक्षा करते हैं । वें स्वयं ही नहीं दूसरों को भी माध्यम बनाकर यह नेक काम करते हें उदाहरण के लिए जब वचनबद्ध होने के नाते भीष्म को अधर्मी दुर्योधन के पक्ष में खड़ा होना पड़ता है तो वें युक्तिपूर्वक उनके वध के लिए शिखंडी को उनकी मुक्ति का माध्यम बना आगे कर देते हैं ।
मोह जगाते, मोह भगाते कृष्ण :
कृष्ण कभी स्वयं मोह का कारण बनते हैं तो कभी मोहजाल को काटने का माध्यम बनते हैं । गोकुल में रहकर वें गोपियों व ग्वालों को ऐसे मोहपाश में बांध लेते हैं कि उनके बगैर वें जीने की कल्पना तक नहीं कर पाते और कृष्ण के मथुरा जाने पर या तो वहीं जाकर बसने को उद्यत हो जाते हैं या कृष्ण को वापस लाने का हर प्रयास करते हैं जब उन्हे समझाने के कृष्ण उद्धव को भेजते हैं तो वें सपष्ट ‘‘ उधौ मन नहिं हुतो दस बीस , एक हुतौ गयौ स्याम संग अब कौ आराधै ईस ’’ कहकर उनका मुंह बंद कर देते हैं । पर जब महाभारत के युद्ध में अर्जुन मोह ग्रस्त होते हैं तो वह अठारह दिन उनके मोह को भंग करने के लिए गीता का उपदेश देकर अर्जुन मोह को पाश से बाहर निकल लाते हैं । कह सकते हैं कि कृष्ण मोह जाल बुनते भी हैं और मोह भंग करने की कला में भी निष्णात हैं ।
कर्मयोगी कृष्ण :
महाभारत के समय कृष्ण कर्म, अकर्म व विकर्म के भेद का पाठ पढाते हुए फल की आसक्ति से दूर रहते हुए ‘ कर्मण्येवाधिकारमस्ते मा फलेषु कदाचन ….’ द्वारा कर्म करने की प्रेरणा देते हैं, अज्ञान व अकर्मण्यता से बचने की राह दिखाते हैं अतः कह सकते हैं कि द्वापर में भी वें ऐसा उपदेश देते हैं जो आज भी भी उपयोगी है। बेशक कृष्ण युगदृष्टा हैं ।
मित्र और प्रेम के पर्याय :
कृष्ण को जानना बड़े बड़े ज्ञाानियों के बस की बात भी नहीं रही , वें ज्ञानयोग की बजाय सरल प्रेम से समझ में आते हैं तभी तो अनपढ़ गोपियां व ग्वाले उन्हे जान जाते हैं मगर योगी नहीं । सच कहा जाए तो कृष्ण प्रेम के ढाई अक्षर से ही वश में होते हैं । ज्ञानियों को छका देने वाले कृष्ण को अनपढ़ प्रेमासक्त गोपियां ‘छछिया भरी छाछ’ पर नाच नचाती हैं । कृष्ण कलुषित मन वालों के छप्पनभोग छोड़ कर साफ मन वालों के साग भात से खुश होते हैं । द्वारिकाधीश होकर भी सुदामा केा चरण प्रक्षालन करते हैं मित्र का मान रखना कोई कृष्ण से सीखे ।
लोकरक्षक कृष्ण :
कृष्ण मानव व ईश्वर दोनों रुप में लुभाते हैं उनका हर कार्य जन कल्याण के लिए व दमितों, त्रस्तों के हितार्थ ही होता हैं महाभारत के युद्ध में वें साम ,दाम, दंड ,भेद सब अस्त्र शस्त्र अपने प्रियों की जीत के लिये आजमाते हैं । वहां वें न उचित देखते हैं और न अनुचित न झूठ से कतराते हैं न छल से, न अपनी प्रतिज्ञा तोड़ने में पीछे हटते हैं, न प्रेम के लिए अपहरण करने से डरते हैं न ही अपनी बहन सुभद्रा का अपहरण करने की सलाह अर्जुन को देने से कतराते हैं । वें स्वयं महायोद्धा हैं पर परिस्थिति के अनुसार रणछोड़ बनने भी सकुचाते नहीं । कृष्ण का हर समय त्रस्तों के पक्ष में खड़े होना उनके लोकरक्षक होने का प्रमाण है ।
प्रबंधन विशेषज्ञ :
आज के हिसाब से देखें तो कृष्ण मैनेजमेंट गुरु हैं, सी ई ओ हैं, डायरेक्टर हैं और इन सबसे बढ़कर व्यवहारिक हैं । वें अवसर को कैसे भुनाया जाए इस बात को सिखाने वाले कुशल शिक्षक हैं, वे मास्टर माइंड, पॉजिटिव सोच के लीडर कहे जा सकते हैं । वें अपने बलबूते पर न केवल द्वारिका का निर्माण करते हैं अपितु पांडवों से भी इंद्रप्रस्थ बसवाकर इंपोसिबल को पॉसिबल करने वाले उत्प्रेरक कहे जा सकते हैं ।
पूर्ण पुरुष पुरातन कृष्ण :
वें सबकी आजा़दी के हिमायती हैं ,अन्याय के खिलाफ समातामूलक समाज की स्थापना के संवाहक हैं । वें शत्रु के किले में जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले साहसी नायक हैं जो अपनों को संकट में देख , सारी प्रतिज्ञाएं भूल सुदर्शन चक्र उठाने में ज़रा भी नहीं हिचकते वें उदार भी हैं और ‘शठे शाठ्यं समाचरेत ’ का इस्तेमाल करने में भी गुरेज नहीं करते । इन सब गुणों को देखते हुए कृष्ण को पूर्ण पुरुष पुरातन की संज्ञा मिली है । कृष्ण वास्तव में एक आकर्षण हैं जो केवल द्वापर तक सीमित नहीं अपितु कलयुग में भी बहु उपयोगी सिद्ध होते हैं । कृष्ण के सिद्धांतों का पालन करके आसानी से एक सफल एवं वर्चस्व भरा जीवन जीया जा सकता है। कर्मयोगी,धर्मरक्षक लोकनायक कृष्ण