

भरतपुर जिले में सारसों की संख्या में भारी कमी पर्यावरणीय असंतुलन का नतीजा है या कुछ और? इस सवाल ने पर्यावरणविद और वन्यजीव प्रेमियों को चिंतित कर दिया है। हाल ही हुई 42वीं सारस गणना के मुताबिक भरतपुर जिले में इस बार सारसों की संख्या घटकर 79 रह गई है, जबकि पिछले साल यह संख्या 143 थी। विशेषज्ञ इसे आद्र्रभूमियों के सिकुडऩे, जल स्रोतों की कमी और बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप से जोडकऱ देख रहे हैं। माना यह भी जा रहा है कि इस बार बरसात अधिक होने से सारस पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश में पलायन कर गए हैं। अगर सारसों के अनुकूल परिस्थितियां नहीं बनी तो आने वाले वर्षों में इनकी संख्या में और गिरावट आ सकती है। सारसों की कमी पर्यावरणीय असंतुलन का नतीजा या कुछ और..?
घना केवलादेव नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी व वन विभाग के संयुक्त प्रयास से 10 फरवरी को 42वीं सारस गणना शुरू हुई। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में 14 सारस मिले, जबकि पूरे भरतपुर जिले में मात्र 79 सारस ही देखे गए। सारसों की गणना के लिए जिले को 17 जोन में विभाजित कर 17 टीमों को अलग-अलग स्थानों पर तैनात किया। इसमें महाराजा सूरजमल विश्वविद्यालय के प्राणीशास्त्र और वनस्पति विज्ञान विभाग के शोधार्थी छात्र-छात्राओं, वन्यजीव प्रेमियों, नेचर गाइड्स, रिक्शा चालकों और वन विभाग के कर्मियों सहित 300 से अधिक लोगों ने भाग लिया।
सोसायटी के अध्यक्ष एडवोकेट कृष्ण कुमार बताते हैं कि इस बार सारस गणना अपे्रल की बजाए फरवरी में की गई, जिससे भी संख्या में बदलाव देखने को मिला। इस साल अच्छी बरसात के कारण कई स्थानों पर जलभराव हुआ है, जिससे सारसों को भरतपुर में सीमित रहने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई और वे पास के उत्तर प्रदेश क्षेत्र की ओर पलायन कर गए। हालांकि अप्रेल तक इनकी संख्या में इजाफा होने की संभावना है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सारसों की संख्या में गिरावट के पीछे कई कारण हो सकते हैं। भरतपुर और आसपास के क्षेत्रों में जल स्रोतों की कमी सारसों के आवास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान समेत कई आद्र्रभूमियां पानी की कमी से जूझ रही हैं, जिससे सारसों का प्रवास प्रभावित हुआ है। इस बार मानसून बेहतर रहने के कारण कई जलाशयों और आद्र्रभूमियों में पानी भरा हुआ है। इसके चलते सारसों को भरतपुर में स्थायी रूप से रहने की जरूरत नहीं पड़ी और वे पास के उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों की ओर पलायन कर गए। शहरीकरण, खेती में बदलाव और जल स्रोतों पर अतिक्रमण सारसों के प्राकृतिक आवास को नष्ट कर रहे हैं। अनियमित वर्षा और बढ़ते तापमान से आद्र्रभूमियों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है, जिससे सारसों को अनुकूल वातावरण नहीं मिल पा रहा। कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से सारसों के लिए उपलब्ध भोजन की मात्रा भी प्रभावित हुई है।
इन समस्याओं के समाधान के लिए विशेषज्ञों ने कई उपाय सुझाए हैं। गणना के समन्वयक अनंत कुमार शर्मा बताते हैं कि सारसों के संरक्षण के लिए समुदाय की सक्रिय भागीदारी बेहद जरूरी है। आद्र्रभूमियों और जल स्रोतों की रक्षा की जाए और जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाया जाए ताकि कीटनाशकों का दुष्प्रभाव कम हो सके। इसके साथ ही, जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दिया जाए। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और आसपास के क्षेत्रों में मानवीय दखल को नियंत्रित किया जाए ताकि सारस के प्राकृतिक आवास को बचाया जा सके। विशेषज्ञों के अनुसार सारस की घटती संख्या एक गंभीर चिंता का विषय है और इसके संरक्षण के लिए प्रशासन, वन विभाग और स्थानीय समुदाय को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है. सारस के प्राकृतिक आवासों की रक्षा नहीं की गई तो आने वाले वर्षों में इनकी संख्या में और गिरावट आ सकती है, जिससे यह दुर्लभ पक्षी संकट में आ सकता है। सारसों की कमी पर्यावरणीय असंतुलन का नतीजा या कुछ और..?