विधि सिंह

लखनऊ। शिक्षा विभाग के तीन अधिकारी और दिव्यांग कल्याण विभाग का एक बड़ा अधिकारी जांच में फंसने क्या लगा, एसआईटी की जांच ही थम सी गई है। निम्न वर्ग व दिव्यांग छात्रों की 100 करोड़ से अधिक की छात्रवृत्ति के फर्जीवाड़े की जांच में तीन अफसरों व रसूख वाले दो कालेजों के चेयरमैन– प्रबन्धक का नाम सामने आया था। एसआईटी ने तीनों अफसरों को नोटिस देने की तैयारी तक कर ली थी। एक नोडल अधिकारी और दो जिलों के डीआईओएस से पूछताछ भी हो गई थी लेकिन बाद में अचानक सारी कार्रवाई सुस्त होती चली गई। अफसर फंसे तो थम गई छात्रवृत्ति घोटाले की जांच

मामले में ईडी ने पिछले साल 16 अगस्त को पहली गिरफ्तारी की थी,जांच ने तेजी पकड़ी तो शासन के आदेश पर पिछले साल जेसीपी उपेन्द्र कुमार अग्रवाल के नेतृत्व में तीन सदस्यीय एसआईटी बनी थी। जांच से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक, लखनऊ और फर्रुखाबाद कालेज के दो कालेजों के नाम पर छात्रवृत्ति का लेन-देन खंगालते समय कई तरह की पोल खुली। इसमें ही पहली बार सामने आया कि इस ‘खेल’ में सरकारी अफसर भी शामिल हैं। तय हुआ कि इन्हें भी पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा।

इस बीच ही विवेचकों ने दिव्यांग छात्रवृत्ति देने वाले विभाग के नोडल अधिकारी व दो जिलों के डीआईओएस से फोन पर कई जानकारियां मांग ली। यह कदम उठते ही लोगों ने जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया। इससे इनको नोटिस ही नहीं भेजा गया। सूत्रों का कहना है कि जेसीपी उपेन्द्र कुमार बीमारी की वजह से छुट्टी पर चले गए। नये जेसीपी तो तैनात हुए लेकिन भ्रष्टाचार की बड़ी जांच थम ही गई है। दस कॉलेजों को 18 लोगों पर हुई थी एफआईआर।

पिछले साल 30 मार्च को हजरतगंज कोतवाली में 10 कॉलेजों के 18 लोगों पर एफआईआर हुई थी। इसमें कई कालेजों के प्रबन्धक, प्रिंसिपल नामजद हुए। इनमें प्रमुख थे, एसएस इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट मामपुर, ओरेगॉन एजुकेशनल सोसाइटी, विकासनगर, हाइजिया कॉलेज ऑफ फार्मेसी, हाइजिया इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, लखनऊ इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड एजुकेशन। एसआईटी गठित की गई।टीम ने कई साक्ष्य जुटाए। इसके बाद 22 लोग जेल गए। अफसर फंसे तो थम गई छात्रवृत्ति घोटाले की जांच