डोनाल्ड ट्रंप के ‘हिंदू कार्ड’ के अंतर्राष्ट्रीय मायने

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डोनाल्ड ट्रंप के 'हिंदू कार्ड' के अंतर्राष्ट्रीय मायने
डोनाल्ड ट्रंप के 'हिंदू कार्ड' के अंतर्राष्ट्रीय मायने

अमेरिकी राष्ट्रपति उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के ‘हिंदू कार्ड’ के अंतर्राष्ट्रीय मायने। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में दक्षिण एशियाई मूल के मतदाताओं को पटाने के लिए डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन उम्मीदवार दोनों ही पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप के ‘हिंदू कार्ड’ के अंतर्राष्ट्रीय मायने

कमलेश पांडेय

 पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति व रिपब्लिकन पार्टी के पुनः उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प का यह कहना कि हम अमेरिका को फिर से मज़बूत बनाएंगे और ताकत के ज़रिए शांति वापस लाएंगे, एक ऐसी लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता है जिसकी अपेक्षा हरेक जनतांत्रिक राष्ट्राध्यक्ष से की जाती है लेकिन जब अशान्ति की जड़ में वोट बैंक हो और बर्बर जातीय, साम्प्रदायिक, क्षेत्रीय अथवा आपराधिक हिंसा पर सैन्य व सिविल प्रशासन तमाशबीनों की तरह प्रतीत हो, तब लोकतंत्र का न तो कोई औचित्य रह जाता है और न ही जनहितकारी मकसद! 

चाहे रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन हों, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग हों, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, या फिर कोई और, उनकी यही सोच होनी चाहिए कि हम फिर से अपने मुल्क को मजबूत बनाएंगे और ताकत के जरिए शांति वापस लाएंगे। यदि ऐसा हुआ तो ये सभी देश मिलकर उस शांति के लिए कार्य कर सकते हैं जिसकी आज दुनिया को सख्त जरूरत है। लोकतंत्र का तकाजा भी यही है और पूंजीवादी ताकतों की प्राथमिकता भी यही है क्योंकि बिना शांति के कारोबार विकसित होना असम्भव है। सिर्फ हथियार और सुरक्षा उपकरणों के कारोबार से किसी भी देश की जीडीपी एक सीमा के बाद नहीं बढ़ेगी।

जिस मुद्दे के संदर्भ में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने उक्त बातें कही है, उससे रूस, चीन और भारत के नेतृत्व के लिए असहमत होने का कोई कारण भी नहीं है। मसलन, ट्रंप ने अपने दीपावली संदेश में बांग्लादेशी हिंदुओं और पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर सोशल मीडिया साइट एक्स पर जो पोस्ट किया है, उसे लेकर सोशल मीडिया पर पूरी दुनिया में बहस शुरू हो गई है हालांकि, इसी बात के मूल में दुनिया की स्थायी शांति और सुव्यवस्था का मर्म भी छिपा हुआ है, जिसे समझने और समझाने की जरूरत है।

आपको पता होगा कि पांच नवंबर 2024 को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं, जिसके दृष्टिगत दक्षिण एशियाई मूल के वोटरों को रिझाने के लिए ट्रंप ने अपने  अग्रगामी, किंतु प्रासंगिक विचार प्रस्तुत किये हैं। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में दक्षिण एशियाई मूल के मतदाताओं को पटाने के लिए डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन उम्मीदवार दोनों ही पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं। लिहाजा ट्रंप के इस पोस्ट को इसी की एक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है जबकि डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस खुद की भारतीय और अफ़्रीकी जड़ों के बारे में बात करके अपनी बढ़त बनाने की कोशिश पहले ही कर चुकी हैं।

अब आते हैं मूल मुद्दे पर, वह यह कि कमला हैरिस और जो बाइडन ने अमेरिका समेत पूरी दुनिया में हिंदुओं की अनदेखी की है, यह आरोप है डोनाल्ड ट्रंप का जिन्होंने  दिवाली की शुभकामनाएं देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, ”मैं बांग्लादेश में हिंदुओं, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ बर्बर हिंसा की कड़ी निंदा करता हूँ। भीड़ उन पर हमला कर रही है, लूटपाट कर रही है जो कि पूरी तरह से अराजकता की स्थिति है।” मेरे विचार से सिर्फ बंगलादेश ही नहीं, पाकिस्तान, अफगानिस्तान समेत पूरी दुनिया में हिंदुओं का उत्पीड़न बढ़ा है।

……..और सिर्फ हिन्दू ही क्यों, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, मुस्लिमों के भी उत्पीड़न एकतरफा हो रहे हों तो वह बंद किया जाना चाहिए। कहीं दोतरफा संघर्ष हो तो उसके भी उचित हल निकाले जाएं। इसे बढ़ावा देने में लगे आतंकवादियों, नक्सलियों, संगठित अपराधियों या फिर हथियार बंद गुटों को भी प्रशासन द्वारा हतोत्साहित किया जाए, न कि तालिबानियों के समक्ष हथियार डालने जैसी निंदक अंतर्राष्ट्रीय पहल की जाए क्योंकि कोई भी लोकतंत्र तभी सफल होगा जबकि जनसामान्य के लिए शांति व सुव्यवस्था उपलब्ध रहेगी। 20वीं शताब्दी से लेकर 21वीं शताब्दी तक में राज्य प्रायोजित हिंसा या प्रशासनिक उदासीनतावश फैली हिंसा-प्रतिहिंसा की वारदातें सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा हैं और इससे निबटने के लिए पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रतिबद्धता काबिले तारीफ है। बस, उनके नजरिये को थोड़ा और विस्तार देते हुए वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः का भाव जगाना और बढ़ाना समकालीन सुलगते हुए विश्व की मांग है।

यदि आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि अपनी पोस्ट में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस और मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को घेरे में लेते हुए ट्रंप ने दो टूक शब्दों में लिखा है कि, ”मेरे कार्यकाल में ऐसा कभी नहीं हुआ होता। कमला और जो (जो बाइडन) ने अमेरिका समेत पूरी दुनिया में हिंदुओं की अनदेखी की है। वे इसराइल से लेकर यूक्रेन और हमारी अपनी दक्षिणी सीमा तक तबाही मचा चुके हैं लेकिन हम अमेरिका को फिर से मज़बूत बनाएंगे और ताकत के ज़रिए शांति वापस लाएंगे।”

ट्रंप ने आगे लिखा है कि, “हम कट्टरपंथी वामपंथियों के धर्म-विरोधी एजेंडे के ख़िलाफ़ हिंदू अमेरिकियों की भी रक्षा करेंगे। हम आपकी आज़ादी के लिए लड़ेंगे। मेरे प्रशासन के तहत, हम भारत और मेरे अच्छे दोस्त, प्रधानमंत्री मोदी के साथ अपनी महान साझेदारी को भी मज़बूत करेंगे।” उन्होंने यहां तक लिख दिया है कि, “मुझे उम्मीद है कि रोशनी का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत की ओर ले जाएगा।”

बता दें कि जुझारू छात्र प्रदर्शनों के कारण बीती 05 अगस्त 2024 को बंगलादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को सत्ता छोड़कर देश से बाहर जाना पड़ा था जिसके बाद हिंदुओं समेत अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले की ख़बरों के बीच अमेरिकी प्रशासन पर दबाव था कि वो इस पर बयान दे। लिहाजा, बांग्लादेश में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों की पीड़ा को समझने और हिंदुत्व के मूल्यों को वैश्विक मंच पर लाने के लिए अमेरिका के बहुमुखी प्रतिभाशाली नेता डोनाल्ड ट्रंप सराहना के योग्य हैं। उनके शब्द, हिंदू धर्म के सभी प्राणियों के लिए शांति, करुणा और आदर की स्पष्ट प्रतिबद्धता के प्रति सम्मान जताते हैं।

भले ही कुछ लोग कह रहे हैं कि, “संभवतया ट्रंप भारतीय अमेरिकी वोटरों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमें यह तो मानना ही पड़ेगा कि वो अमेरिका के पहले बड़े राजनेता हैं जिन्होंने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ अत्याचार पर कुछ बोला है जबकि अपनी हिंदू जड़ों के बावजूद हैरिस ने इस पर चुप्पी साधे रखी। ऐसे में यदि ट्रंप जीत जाते हैं तो बाइडन की शह पर यूनुस के खुले खेल का अंत हो सकता है। यह पीएम मोदी की भी लापरवाही है कि उस बंगलादेश में हिन्दू उत्पीड़न जारी है, जिसके निर्माण और उत्थान में भारत की भूमिका रही है. यदि भारतीय नेतृत्व सख्त चेतावनी दे और न मानने पर सैन्य कार्रवाई कर दे, तो क्या मजाल कि हिन्दू उत्पीड़न ब्रेक के बाद जारी रहे। इस मामले में योगी आदित्यनाथ के अलावा कोई मुखर नेता खुलकर नहीं बोला, खासकर हिंदूवादी दलों के नेता। ऐसे लोगों के लिए डोनाल्ड ट्रंप एक नजीर बन चुके हैं। वहीं, भारत में ट्रंप के कट्टर समर्थक हिंदू राष्ट्रवादी, जो मोदी-ट्रंप की जोड़ी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, इस ट्वीट पर सबसे अधिक न्योछावर हो रहे हैं।

कुछ सजग संगठनों ने बांग्लादेश में बर्बर हिंसा का सामना कर रहे हिंदुओं की मुश्किलों पर बात करने के लिए वैश्विक हिंदू समुदाय की ओर से पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप का धन्यवाद किया है और कहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से, न सिर्फ अमेरिकी हिंदुओं के लिए बल्कि पूरी दुनिया के हिंदुओं के लिए यह एक बेहतरीन दिवाली तोहफ़ा है। उधर बांग्लादेश से भी इस पर प्रतिक्रिया सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि “मिस्टर ट्रंप, आप बांग्लादेश की ग़लत छवि पेश कर रहे हैं। निशाना बनाकर हमला करने के दावे बिना सत्यापित प्रोपेगैंडा हैं। देश अपने सभी नागरिकों की रक्षा करता है। हिंदू वोट पर आपका ध्यान ग़लत सूचनाओं को फैलाने वाला है और अमेरिका में अराजकता का कारण बन सकता है। इधर, चुनावी विश्लेषक बता रहे हैं कि दिवाली के दिन और चुनाव से ठीक पांच दिन पहले आया ट्रंप का संदेश साफ़ है क्योंकि स्विंग स्टेट्स में भारतीय अमेरिकियों का वोट बहुत अहम है। सन 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में नौ प्रांतों में से पांच में भारतीय अमेरिकियों की संख्या जीत-हार के अंतर से अधिक थी और इन पांच में से चार प्रांत जो बाइडन के पक्ष में गए थे।

गौर करने वाली बात यह भी है कि बांग्लादेश में हिंदुओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मुद्दे को अमेरिका में रह रहे कई हिंदू संगठन सार्वजनिक मंचों पर उठाते रहे हैं। ‘स्टॉप हिन्दू जेनोसाइड’ नामक एक संगठन ने तो बांग्लादेश के ख़िलाफ़ आर्थिक बायकॉट तक की माँग की है। इस संगठन ने पिछले दिनों एक विमान की मदद से न्यूयॉर्क में एक बैनर लहराया था जिस पर बांग्लादेश की सरकार से हिंदुओं की रक्षा करने को कहा गया था। वहीं, इसकी वेबसाइट को देखने से पता चलता है कि इसका जुड़ाव विश्व हिंदू परिषद से है जो उसी संघ परिवार का हिस्सा है जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी बनी है। 

उधर, हिंदू अमेरिकन फ़ाउंडेशन भी बांग्लादेश में हिंदुओं पर कथित अत्याचार को लेकर अमेरिकी राजनीति की शख़्सियतों से समर्थन हासिल करने का अभियान चला रहा है। जिसके बारे में कहा जाता  है कि उसे भारत के हिंदूवादी संगठनों और भारत सरकार से मदद मिलती रहती है जबकि फ़ाउंडेशन इन दावों से इनकार करता आया है। इन संगठनों का मानना है कि अमेरिकी सियासत में भारतीय मूल के वोटरों की अहमियत बढ़ी है। अमेरिका के सेंसस ब्यूरो के मुताबिक़, साल 2020 में भारतीय मूल के अमेरिकियों की संख्या क़रीब 44 लाख थी। वहीं भारतीय मूल के वोटर्स की संख्या क़रीब एक फ़ीसदी के आसपास है, जो अमेरिका के चुनावी गणित के हिसाब से काफ़ी अहम है। क्योंकि स्विंग स्टेट्स कहलाने वाले अमेरिका के सात राज्यों के नतीजे जीत-हार का फ़ैसला करते हैं जहां इनकी भूमिका काफ़ी अहम हो जाती है।

ऐसे में माना जा रहा है कि पेन्सिल्वेनिया में ट्रंप और हैरिस के बीच कड़ी टक्कर है और इस ऐतिहासिक साबित होने वाले चुनाव में छोटे समूह का रुझान भी निर्णायक साबित हो सकता है। वहीं, साल 2024 के एएपीआई डाटा के वोटर सर्वे के अनुसार, भारतीय अमेरिकियों में से आधे से ज़्यादा मतदाता यानी 55 फ़ीसदी डेमोक्रेट की ओर जबकि 26 फ़ीसदी रिपब्लिकन की ओर झुकाव रखते हैं। वहीं,पिछले सप्ताह कार्नेगी एंडोमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस एंड यूगव ने एक सर्वे जारी किया था जिसके मुताबिक, 61 फ़ीसदी रजिस्टर्ड भारतीय अमेरिकी मतदाताओं की योजना हैरिस के लिए मतदान करने की है, जबकि 32 फ़ीसदी मतदाताओं की इच्छा ट्रंप के लिए मतदान करने की है। हालांकि, भारतीय अमेरिकियों का झुकाव डेमोक्रेट की तरफ़ होने के बावजूद 2020 से इनमें गिरावट देखने को मिल रही है। इसलिए ट्रम्प का ताजा बयान उनकी जीत के लिए ट्रंप कार्ड भी साबित हो सकता है।

डोनाल्ड ट्रंप के ‘हिंदू कार्ड’ के अंतर्राष्ट्रीय मायने