हाल ही में एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के हवाले से यह खबर आई है कि भारत में वर्ष 2035 तक हर दिन 12000 कारें बिकेंगी। यह अपने-आप में एक बहुत बड़ी व आश्चर्यजनक बात है, क्यों कि यह एक ओर भारत के विकास को दर्शाएगा वहीं दूसरी ओर भारत की ऊर्जा मांग के साथ ही पर्यावरणीय प्रदूषण को भी इंगित करेगा। कारें चाहे डीजल की हों या पेट्रोल की, कहीं न कहीं प्रदूषण का कारण तो होतीं ही हैं। यह बात अलग है कि डीजल से चलने वाली कारें पेट्रोल की तुलना में कहीं अधिक प्रदूषण को फैलातीं हैं। वास्तव में डीजल से चलने वाली कारें खास तौर नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर में प्रदूषण फैलातीं हैं वहीं दूसरी ओर पेट्रोल कारें कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड का अधिक उत्सर्जन करती हैं, लेकिन इनका दूसरी प्रदूषण फैलाने वाली गैसों का लेवल डीजल से कहीं कम होता है। जानकारी के मुताबिक सीएनजी (कंप्रेस्ड नेचुरल गैस)से चलने वाली कारें सबसे कम प्रदूषण फैलाती हैं और इन्हें एनवायरमेंट के हिसाब से बेहतर ऑप्शन माना जाता है। वैसे एक नयी स्टडी में यह बात भी सामने आई है कि सीएनजी वाहन हमारी सोच से भी ज्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं। बहरहाल,आज वैसे भी जमाना इलैक्ट्रिक व्हीकल का है, ऐसे में वर्ष 2035 तक भारत मे प्रतिदिन 12000 कारों का बिकना पर्यावरणीय लिहाज से ठीक नहीं होगा, भले ही यह भारत के विकास के पैमाने की ओर इंगित करता हो। वैश्विक स्तर पर भारत बनेगा विकास का इंजन
उल्लेखनीय है कि भारत में वर्ष 2035 तक तेल-गैस से लेकर कोयला, बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा तक सभी प्रकार की ऊर्जा की मांग में वृद्धि होने का अनुमान है। हालांकि इसका फायदा यह होगा कि भारत वैश्विक स्तर पर ऊर्जा मांग के लिए विकास का इंजन बन जाएगा। जानकारी देना चाहूंगा कि भारत वर्ष 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। पाठकों को बताता चलूं कि दिग्गज अमेरिकी रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल की एक रिपोर्ट में ये अनुमान लगाया गया है। रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के 6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अगले 10 साल में कच्चे तेल की मांग लगभग 20 लाख बैरल प्रतिदिन बढ़ जाएगी और यह दुनिया में तेल की मांग में वृद्धि का मुख्य स्रोत बन जाएगा। वास्तव में यहां यह भी जानना जरूरी है कि कच्चे तेल की मांग बढ़ने से किसी देश की अर्थव्यवस्था भी कहीं न कहीं प्रभावित होती है। दरअसल तेल की ऊंची कीमतों से रोजगार सृजन और निवेश को बढ़ावा मिलता है और तेल कंपनियों के लिए उच्च लागत वाले शेल तेल भंडार का दोहन करना आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो जाता है। तेल की बढ़ी हुई कीमतें व्यवसायों और उपभोक्ताओं को उच्च परिवहन और विनिर्माण लागतों से भी कहीं न कहीं प्रभावित करती ही हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत की कुल ऊर्जा खपत का लगभग 30% तेल से पूरा होता है।
आइईए के अनुसार, 2035 तक भारत में कुल ऊर्जा मांग में लगभग 35% की वृद्धि होने की संभावना है। बहरहाल, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने यह बात कही है कि अगले दशक में भारत में प्रतिदिन 12,000 से अधिक कारें बिकेंगी और इसके एयर कंडीशनर (एसी) पूरे मेक्सिको की बिजली खपत से भी अधिक बिजली की खपत करेंगे। आइईए के अनुसार, वर्ष 2035 तक लोहा और इस्पात उत्पादन 70% बढ़ने के रास्ते पर है। सीमेंट उत्पादन में लगभग 55% की वृद्धि तय है और एयर कंडीशनर की संख्या 4.5 गुना से अधिक बढ़ने का अनुमान है। देश में अगले 10 साल में तेल की मांग बढ़कर 71 लाख बैरल प्रतिदिन (बीपीडी) हो जाने का अनुमान है, जो अभी 52 लाख बीपीडी है। पेट्रोलियम रिफाइनरियों की क्षमता 58 लाख बीपीडी से बढ़कर 71 लाख बीपीडी हो जाएगी। प्राकृतिक गैस की मांग 2050 में 64 अरब घनमीटर से बढ़कर 172 अरब घनमीटर हो जाएगी। हालांकि, कोयला उत्पादन अभी के 72.1 करोड़ टन से घटकर 2050 में 64.5 करोड़ टन रह जाने का अनुमान है।
वास्तव में भविष्य की स्थितियों को देखते हुए भारत के समक्ष ऊर्जा के मोर्चे पर कई चुनौतियां हैं। इसमें व्यापक स्तर पर खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन की पहुंच सुनिश्चित करना, जीवाश्म ईंधन (कोयला, कच्चा तेल आदि) आयात निर्भरता को कम करना, बिजली क्षेत्र की विश्वसनीयता को बढ़ावा देना और बिजली वितरण कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन को बेहतर बनाना, वायु प्रदूषण के उच्चस्तर निपटना व जलवायु परिवर्तन के कारण भीषण गर्मी और बाढ़ के प्रभावों का प्रबंधन शामिल है। आज के समय में ऊर्जा की मांग रिकॉर्ड ऊंचाई पर है, भारत भी लगातार इस दिशा में लगातार बढ़ रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि ऊर्जा वर्तमान में सबसे अधिक विनियमित संसाधनों में से एक है और विनियमन के अपने लाभ हैं, लेकिन हमें प्रदूषण से निपटने के साथ साथ ही जलवायु परिवर्तन की ओर भी ध्यान देना होगा। हमें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि ऊर्जा विकास के लिए बहुत जरूरी है लेकिन ऊर्जा उधोग से अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसें उत्सर्जित होती हैं।
कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए हमें अनुकूलित ऊर्जा विकल्पों पर भी विचार करना होगा जैसे कि पवन और सौर ऊर्जा। यह बात ठीक है कि ऊर्जा किसी भी देश के विकास का असली व मुख्य इंजन होती है। वास्तव में किसी देश में प्रति व्यक्ति होने वाली ऊर्जा की खपत वहाँ के जीवन स्तर का भी सूचक होती है। ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि आर्थिक विकास का भी ऊर्जा उपयोग के साथ मज़बूत संबंध होता है। इसलिये भारत जैसी तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये ऊर्जा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में आज के समय में आत्मनिर्भरता बहुत ज़रूरी है। आज ऊर्जा उधोग से कहीं न कहीं पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याओं का जन्म हो रहा है। ऐसे में सवाल है कि बढ़ती जनसंख्या और ऊर्जा आपूर्ति के बीच कैसे संतुलन बनाया जाए? वास्तव में नवीकरणीय ऊर्जा ही बेहतर निदान है।
आज बायोमास संसाधनों के उपयोग से बिजली उत्पादन किया जा सकता है।मेथनॉल को बढ़ावा दिया जा सकता है। कृषि-अपशिष्ट से जैव-सीएनजी उत्पादन किया जा सकता है। वैकल्पिक ईंधन जैसे हाइड्रोजन आधारित ईंधन, जेट्रोफा तेल और शेल गैस भी महत्वपूर्ण और अहम् भूमिका निभा सकते हैं। आज दुनिया की आबादी लगभग 760 करोड़ है जो कि वर्ष 2050 तक 900 करोड़ तक पहुँच सकती है। इस बढ़ती आबादी की विभिन्न ज़रुरतों को पूरा करने के लिये संसाधनों की तेज़ी से खपत हो रही है। संभावित तौर पर सभी गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत निकट भविष्य में समाप्त हो जाएंगे, इसलिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत और स्वच्छ ईंधन की खोज एक महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है। वास्तव में इन सभी के मद्देनजर हमारे नीति निर्माताओं और सरकारों के साथ-साथ आम नागरिकों को इस धरती पर पर्यावरण और विभिन्न संसाधनों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करना होगा। तभी हम अपने भारत को सच्चे अर्थों में प्रगति व उन्नयन के पथ की ओर अग्रसर कर पायेंगे। ऊर्जा के बढ़ते प्रयोग के बीच हमें धरती की जलवायु, पर्यावरण का विशेष ध्यान रखना होगा। वैश्विक स्तर पर भारत बनेगा विकास का इंजन