भारत वैदिक काल से ही सांस्कृतिक राष्ट्र है

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भारत वैदिक काल से ही सांस्कृतिक राष्ट्र है
भारत वैदिक काल से ही सांस्कृतिक राष्ट्र है
हृदयनारायण दीक्षित
हृदयनारायण दीक्षित

 आज काशी तमिल संगमम का आयोजन हो रहा है। काशी गदगद है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस समागम में नमो घाट पर 1400 तमिल भाषी विशिष्टजनों से भेंट करेंगे और उपस्थित महानुभावों को सम्बोधित करेंगे। अनेक दक्षिण भारतीय विद्वानों के लिए काशी वैदिक ज्ञान परम्परा का मुख्य केन्द्र रहा है। वेद, वेदांग और संस्कृत सहित ज्ञान दर्शन परम्परा का मुख्य क्षेत्र काशी भी रहा है। देश की विश्व वरेण्य संस्कृति का प्राचीन केन्द्र रहा है। संस्कृति के कारण हम प्राचीन राष्ट्र हैं। अनेक भाषाएं हैं। अनेक बोलियां हैं और तमाम क्षेत्रों में अलग अलग घरेलू रीति रिवाज भी हैं। तमाम विविधताओं के बावजूद भारत की सांस्कृतिक एकता बहुत गहरी है। लेकिन राष्ट्र को अखण्ड सत्ता न मानने वाले इक्का दुक्का राजनैतिक समूह राष्ट्रीय एकता पर प्रहार करते हैं। लोकसभा में हाल ही में एक माननीय सांसद ने उत्तर दक्षिण की विभाजक बातें कही। सदन की कार्यवाही से आपत्तिजनक अंश हटा दिए गए हैं। लेकिन समाचार माध्यमों में यह बातें प्रमुखता से छपी व प्रसारित हुई। भारत वैदिक काल से ही सांस्कृतिक राष्ट्र है। इसे उत्तर दक्षिण और पूरब पश्चिम के कृत्रिम खांचों में देखना अनुचित है।
वैदिक संस्कृति दर्शन का विकास सप्तसिन्धु में हुआ और इसे भारत के जन गण मन ने अपनी जीवन पद्धति का आधार माना। भारत एक छंदबद्ध कविता है। काव्य के प्रवाह में दिशाओं का कोई मतलब नहीं होता। भारत एक सुव्यवस्थित संगीत जैसी शास्त्रीय रचना है। इसमें सभी राग और रागिनियाँ हैं। ऋग्वेद में मंत्र को ऋचा बताया गया है। ऋषि के अनुसार ऋचाएं परमव्योम में रहती हैं और जाग्रत बोध वाले लोगों के हृदय में प्रवेश करने की अभिलाषा करती हैं। भारत परमव्योम आकाश से उतरी एक ऋचा है। विश्व लोककल्याण में तपरत् एक सार्वभौम जीवन दृष्टि है। भारत एक अनुराग है सृष्टि के सभी तत्वों के प्रति। विश्व कल्याण से प्रतिबद्ध एक प्रीति है। समस्त मानवता का सुख स्वस्ति और आनंद भारत का ध्येय है। भारत वैदिक काल से ही सांस्कृतिक राष्ट्र है


भारतीय संस्कृति और दर्शन के विकास में देश के सभी क्षेत्रों का कर्मतप जुड़ा है। उत्तर दक्षिण की बातें व्यर्थ हैं। सुब्रमण्य भारती प्रख्यात तमिल कवि थे। 1982 में उनकी जन्म शताब्दी थी। इस कार्यक्रम की आयोजन समिति ने भारती की कविताएं और गद्य नाम से कुछ रचनाओं का हिन्दी अनुवाद छपवाया था। इस संकलन की पहली कविता वन्दे मातरम् है। भारती इस कविता में कहते हैं, ‘‘पराधीन जीवन पर लज्जित सारा भारत एक साथ है/हम सब यह संकल्प करेंगे/कभी नहीं परतंत्र रहेंगे/हम वन्दे मातरम् कहेंगे।‘‘ भौगोलिक दृष्टि से भारती दक्षिण के थे। पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भारती के हृदय में वन्दे मातरम् है। भारती की कविताओं में सप्तसिन्धु भी है और भूगोल की दृष्टि से यह उत्तर पश्चिम में है।


तमिल कवि के सामने समूचा भारत रहता है। भारती के मन में गंगा के मैदान लहकते हैं। एक कविता में कहते हैं, ‘‘खूब उपजता गेहूँ गंगा के कछार में/ताम्बूल सरस कावेरी के कगार में।‘‘ भारती के मन में उत्तर की गंगा बहती है और दक्षिण की कावेरी भी। काशी की ज्ञान परम्परा के प्रति भी उनका रागात्मक लगाव है। वे धुर दक्षिण के कांचीपुरम में बैठकर काशी के विद्वानों का संवाद सुनने के लिए एक यंत्र की कल्पना करते हैं, ‘‘ऐसे यंत्र बनेंगे/कांचीपुरम में बैठकर/काशी के विद्वतजन का संवाद सुनेंगे।‘‘ भारती उपनिषदों के प्रेम में हैं और वेदों के भी। कहते हैं, ‘‘मुख में वेदों का वास/हाथ में तीक्ष्ण असि शोभित मंगलकारी।‘‘ वे दर्शन के तल पर अद्वैतवादी जान पड़ते हैं। उनकी कविता और गद्य में योग साधना भी है। क्या अद्वैत दर्शन के विश्वसिद्ध व्याख्याता आचार्य शंकर को भी हम केवल दक्षिण का मान सकते हैं? वे जन्म स्थान के आधार पर भले ही दक्षिण के हों लेकिन वे भारतीय दर्शन के अद्भुत व्याख्याता हैं।


शंकराचार्य ने देश के चारों बड़े हिस्सों में चार धामों की स्थापना की। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पश्चिम में द्वारका व पूरब में जगन्नाथ। रामानुजाचार्य ने दर्शन और भक्ति को नई ऊंचाइयां दीं। वे भी भौगोलिक दृष्टि से दक्षिण के थे। इसी परम्परा प्रभाव में रामानंद ने भक्ति दर्शन को लोकप्रिय बनाया। रामकथा की प्रारंभिक घटनाएं उत्तर के क्षेत्र की हैं। तमिल कवि कम्ब ने रामकथा लिखी। तमिल में उनकी रामायण राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई। डॉ० राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन को सारी दुनिया में पहुँचाया। वे संविधान सभा के सदस्य थे। उपराष्ट्रपति थे। वे अद्भुत मेधावी थे। जन्म स्थान की दृष्टि से दक्षिण के थे। लेकिन अपने कर्मतप के आधार पर उन्होंने सारे भारत को एक देखने समझने और मानने का दर्शन दिया।


उत्तर दक्षिण की बहस बेकार है। देश के राष्ट्रपति रहे ए० पी० जे० अब्दुल कलाम भी दक्षिण के थे। उनकी दृष्टि में सारा भारत एक था। उन्होंने लाखों करोड़ों युवाओं को प्रेरित किया। श्री राजगोपालाचारी बेजोड़ प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने ढेर सारा साहित्य सृजन किया है और दक्षिण में बैठकर श्रीराम पर पुस्तक लिखी। डॉ० लोहिया ने श्रीराम को उत्तर दक्षिण की एकता का देवता बताया है। श्रीराम उत्तर के और उनके परम भक्त हनुमान दक्षिण भारत में कर्नाटक के। यहाँ उत्तर और दक्षिण बेमतलब हो गए हैं। भाजपा को गाय से जोड़कर अश्लील शब्दों से लांछित करने का लज्जाजनक उपदेश दिया गया। भाजपा के अब तक कुल 11 राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए। उनमें से वेंकैया नायडू, जे० कृष्णमूर्ति, बंगारू लक्ष्मण, कुशाभाऊ ठाकरे, नितिन गडकरी, लालकृष्ण आडवाणी व अमित शाह जी गैर हिन्दी भाषी राज्यों से थे। अमित शाह राजभाषा हिन्दी को लेकर सजग हैं।


संस्कृति के मुख्य घटक साहित्य, भाषा और कलाएं हैं। साहित्य सृजन के क्षेत्र में देश के सभी हिस्सों के महानुभावों का साझा है। कला के क्षेत्र में सिनेमा की चर्चा के बिना बात पूरी नहीं होती। मणि रत्नम, प्रियदर्शन, रामगोपाल वर्मा, राजामौली आदि प्रख्यात सिने निर्देशक हैं और दुनिया के तमाम देशों में भारतीय कला को प्रतिनिधित्व देते हैं। संगीत के क्षेत्र में ऑस्कर पुरुस्कार पाने वाले ए० आर० रहमान किसी एक क्षेत्र के नहीं कहे जा सकते। बहुचर्चित फिल्म ‘स्लम डॉग मिलियनएयर‘ के गीत ‘जय हो‘ का संगीत ए० आर० रहमान ने दिया था। पुरुस्कार सभी सर्जक भारतवासी हैं। भारत के हैं और सब मिलकर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले हैं।


दिशाएं वास्तविकता नहीं होती। हम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बैठे हैं। यहाँ से मुंबई दक्षिण पश्चिम में है। हम चेन्नई में बैठकर देखें तो मुंबई की दिशा उत्तर पश्चिम हो जाएगी। दिशाओं के विवेचन में मुख्य बात है कि हम कहाँ बैठें हैं। दिशाएं पहले चार ही थीं। बाद में दस हो गईं। ऋग्वेद में दस की संख्या का उपयोग सोम कूटने पर हुआ है। ऋषि कहते हैं कि हम दसों उँगलियों से सोम कूटते हैं। हम सभी दिशाओं से ज्ञान प्राप्ति की कामना करते हैं आदि। भारत माँ हैं। हम सबका गोत्र भारत। हमारी, हम सबकी जाति भारत। क्षेत्र लिंग के आधार पर भेद व्यर्थ हैं। दिशा के आधार पर विभाजन और विवेचन का कोई मतलब नहीं। भारत उत्तर पश्चिम और उत्तर दक्षिण का योग नहीं है। यह कुछ भूक्षेत्रों का जोड़ भी नहीं है। यह हमारे सबके लिए उपास्य है। भारत की उपासना और समृद्धि हम सबका कर्तव्य है। भारत वैदिक काल से ही सांस्कृतिक राष्ट्र है