मणिपुर समस्या खत्म होने की उम्मीद जगी

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मणिपुर समस्या खत्म होने की उम्मीद जगी
मणिपुर समस्या खत्म होने की उम्मीद जगी

राजेश कुमार पासी

2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी तो उसके सामने कानून व्यवस्था की दृष्टि से तीन महत्वपूर्ण समस्याएं थी। जम्मू-कश्मीर और पूरे भारत में फैला हुआ आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या थी। आतंकवादी भारत के किसी भी  क्षेत्र में आतंकवादी हमले करने की क्षमता रखते थे लेकिन मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद उन्हें जम्मू-कश्मीर तक सीमित कर दिया है। जम्मू-कश्मीर में भी आतंकवाद अंतिम सांसे ले रहा है । दूसरी सबसे बड़ी समस्या लगभग 100 जिलों में फैला हुआ नक्सलवाद था, जिसे मोदी सरकार ने 15-20 जिलों तक सीमित कर दिया है । अब मोदी सरकार नक्सलवाद पर अंतिम प्रहार करने जा रही है और उसका लक्ष्य मार्च, 2026 तक नक्सलवाद का समूल नाश कर देना है । तीसरी बड़ी समस्या उत्तर-पूर्वी राज्यों में फैला हुआ अलगाववाद, आतंकवाद और विभिन्न हथियारबंद गुटों का आपसी संघर्ष था। मणिपुर समस्या खत्म होने की उम्मीद जगी

मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों में शांति स्थापित कर दी थी । ज्यादातर हथियारबंद गुट हथियार छोड़ कर मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं लेकिन पिछले 17 महीनों से मणिपुर की हिंसा भारत सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुकी है । इस हिंसा में 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग पचास हजार से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा है । इसके अलावा हजारों करोड़ रुपये की आर्थिक हानि हो चुकी है । इस हिंसा ने मणिपुर राज्य और इसके आसपास के इलाकों में चल रही आर्थिक गतिविधियों को रोक दिया है। इसे मोदी सरकार की बड़ी असफलता माना जा रहा था।  मणिपुर हिंसा से भारत की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी बदनामी हो रही है । मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर है । सुप्रीम कोर्ट ने भी मणिपुर हिंसा का संज्ञान लिया था क्योंकि वहां दो महिलाओं की नग्न परेड की गई थी और उसका वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गया था। देखा जाये तो मणिपुर हिंसा ने मोदी सरकार की बहुत फजीहत कराई है । 

 17 महीने से चल रही मणिपुर हिंसा को खत्म करने की केंद्र सरकार की कोशिशें रंग लाती दिखाई दे रही हैं । इस कोशिश के तहत पहली बार दिल्ली में मैतेई, कुकी और नगा समुदायों के 20 विधायकों ने बैठक की है। यह बैठक  गृह मंत्रालय द्वारा बुलाई गई थी। बैठक में गृह मंत्रालय के वार्ताकार ए. के.मिश्रा, बीजेपी सांसद संबित पात्रा और अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए। मणिपुर कांग्रेस ने इस बैठक का स्वागत किया है लेकिन साथ ही कहा है कि गृह मंत्रालय को ऐसी बैठक बहुत पहले बुलानी चाहिए थी। गृह मंत्रालय ने कहा है कि विधानसभा में कुकी,मैतेई और नगा समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले निर्वाचित सदस्यों के एक समूह ने राज्य में वर्तमान परिदृश्य पर चर्चा करने के लिए मुलाकात की है। सभी ने सर्वसम्मति से राज्य के सभी समुदाय के लोगों से हिंसा का रास्ता छोड़कर शान्ति के रास्ते पर चलने की अपील करने का संकल्प लिया है ताकि निर्दोष लोगों की जा बचाई जा सके।

  इस बैठक के विधायकों को लाने में भाजपा सांसद संबित पात्रा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिछले डेढ़ साल से 10 कुकी विधायकों में से एक ने भी मैतेई बहुल इंफाल घाटी और राजधानी में कदम नहीं रखा है और इस दौरान किसी भी विधानसभा सत्र में हिस्सा नहीं लिया है।  सभी समुदायों के विधायकों ने बैठक में अपने-अपने समुदाय के विचारों, शिकायतों और तकलीफों को सामने रखा है। इतनी जल्दी इस समस्या पर सर्वसम्मति से कोई हल निकलने वाला नहीं है लेकिन इसे एक अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है। उम्मीद है कि जल्दी ही ऐसी और बैठकें होंगी जिससे मणिपुर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो सकेगा। इस बैठक की सबसे बड़ी सफलता यही है कि सभी समुदायों को एक छत के नीचे लाया गया है।

       मणिपुर की चर्चा बहुत होती है लेकिन ज्यादातर लोगों को मणिपुर समस्या की जटिलता का अंदाजा नहीं है। मणिपुर में तीन समुदाय रहते हैं जिसमें से मैतेई कीआबादी 53%, कुकी की आबादी 25% और नगा की आबादी 15% है । मैतेई समुदाय हिन्दू धर्म को मानता है जबकि दूसरी तरफ कूकी और नगा धर्म परिवर्तन करके ईसाई बन चुके हैं । यही समस्या का दूसरा पहलू है कि ईसाई संगठन इस मामले में दखल दे रहे हैं ।   मैतेई और नगा समुदाय मणिपुर के मूल निवासी हैं जबकि कुकी समुदाय को म्यांमार से लाकर बसाया गया था। नगा समुदाय का कुकी समुदाय से इस बात का विवाद है कि वो नगाओं के इलाकों पर कब्जा करते जा रहे हैं और पर्वतीय क्षेत्रों में नगा कम होते जा रहे हैं। मैतेई समुदाय की समस्या यह है कि उसे सिर्फ घाटी तक सीमित कर दिया गया है और घाटी में मणिपुर का सिर्फ 10% हिस्सा आता है। मणिपुर के शेष बचे 90% इलाके में मैतेई नहीं रह सकते क्योंकि वो सारा पहाड़ी इलाका है। सविंधान के आर्टिक्ल 371 सी के तहत मणिपुर की कुकी और नगा पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधायें मिली हुई हैं। समस्या यह है कि मैतेई समुदाय यहां नहीं बस सकता लेकिन दूसरे दोनों सुमदाय मैतेई के इलाके में आकर बस सकते हैं। इसलिए मैतेई समुदाय जनजाति का दर्जा देने की मांग कर  रहा है। इसके लिए वो हाई कोर्ट में गया था और हाई कोर्ट ने 20 अप्रैल, 2023 को इस समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की मांग स्वीकार कर ली ।

इस फैसले के विरोध में कुकी और नगा समुदाय ने आपस में हाथ मिला लिया और मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के फैसले का विरोध करने लगे । मैतेई समुदाय का कहना है कि उन्हें आज़ादी से पहले जनजाति का दर्जा प्राप्त था लेकिन सरकार ने आज़ादी के बाद इनसे यह दर्जा छीन लिया । कुकी और नगा मैतेई को जनजाति का दर्जा देने के फैसले का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ऐसा होने पर घाटी के साथ-साथ पहाड़ी इलाकों में भी मैतेई समुदाय हावी हो जाएगा। अभी भी मणिपुर की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 पर मैतेई समुदाय का प्रभाव है, इसलिए सत्ता इस समुदाय के हाथ में रहती है। मैतेई समुदाय की बड़ी समस्या यह है कि उनका इलाका सिमटता जा रहा है क्योंकि उनके इलाके में कूकी और नगा बस रहे हैं जबकि वो उनके इलाकों में बस नहीं सकते ।

            मैतेई समुदाय का आरोप है कि नगा और कुकी पहाड़ों में अफीम की खेती करके हथियार जमा कर रहे हैं जिससे उनके समुदाय को खतरा है। वास्तव में इस समस्या को बढ़ाने में चीन, बांग्लादेश और म्यामांर में बैठे कुछ संगठनों का बड़ा हाथ है जो कुकी और नगा समुदाय को हथियार और प्रशिक्षण देकर मणिपुर में आग लगा रहे हैं। हाई कोर्ट के फैसले के बाद 28 अप्रैल 2023 को द इंडिजेन्स ट्राइबल लीडर्स फोरम ने बंद बुलाया था जिसने बाद में हिंसक रूप ले लिया।  3 मई और 4 मई 2023 को हुई हिंसक घटनाओं ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। वार्ता में कुकी विधायकों ने तीन मांग रखी हैं । वो चाहते हैं कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. वीरेंद्र सिंह को हटा दिया जाए जबकि मैतेई चाहते हैं कि उन्हें न हटाया जाए। कुकी चाहते हैं कि उनके इलाकों का अलग प्रशासन हो। उनकी तीसरी मांग  है कि हथियारबंद ग्रुप्स को गैरकानूनी घोषित किया जाए। नगा चाहते हैं कि नए बने 7 जिलों को खत्म किया जाए क्योंकि वो इन जिलों में अल्पसंख्यक बन गए हैं। मैतेई समुदाय अपने लिए जनजाति का दर्जा चाहता है। देखना होगा कि सरकार किसकी मांग पूरी करती है और किसकी नहीं करती है।

इस समस्या का सर्वसम्मति से हल निकालना आसान होने वाला नहीं है लेकिन तीनों समुदायों का बातचीत की टेबल पर आ जाना बड़ी बात है । आपसी बातचीत से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है. उम्मीद है कि इस समस्या का भी हो जाएगा। इस बातचीत का सबसे बड़ा फायदा यह है कि मणिपुर में चल रही हिंसक घटनाओं में कमी आ सकती है।  देश का विपक्ष मणिपुर समस्या को लेकर शोर मचाता रहता है. उसे भी आगे बढ़कर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि निर्दोष लोगों की जान बचाई जा सके। मणिपुर समस्या खत्म होने की उम्मीद जगी