परिवहन निगम का निजीकरण करना चाहती है सरकार

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माघ मेले में अतिरिक्त बसों का होगा संचालन
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प्रदेश सरकार निगम को निजी हाथों में देना चाहती है। इसलिए लगातार इस तरह के निर्णय लिये जा रहे हैं जिससे की यूपी रोडवेज को धीरे-धीरे खत्म कर उसे पूरी तरह निजी हाथों में दिया जाए। परिवहन निगम का निजीकरण करना चाहती है सरकार

ब्यूरो निष्पक्ष दस्तक

उत्तर प्रदेश में जिस तरह से अन्य राज्य का दखल बढ़ रहा है यह चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश वालों की अंदर ही अंदर नाराजगी झलक रही है। उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम निजीकरण के कगार पर कुछ राज तो है जो छुपा हुआ है। लोकसभा चुनाव से पहले कर्मचारियों को नाराज करना यह संकेत दे रहा है। उत्तर प्रदेश रोडवेज वर्कशॉप को प्राइवेट कंपनियों को दे दिया गया है। जबकि प्रधानमंत्री पीएम विश्वकर्म योजना शुरू किया था। रोजगार के लिए और वर्कशॉप में 80 % विश्वकर्मा वर्ग के ही लोग नौकरी करते हैं।


उत्तर प्रदेश रोडवेज 40% भी कमाता है तो न घाटे में होता है और न ही मुनाफे में और 50% से ऊपर कमाता है तो मुनाफे में होता है। रोडवेज के 6 महीने कमाई से पुलिस और अध्यापकों का वेतन दिया जाता है और 6 महीने कमाई से रोडवेज कर्मचारियों का वेतन बांटा जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम का जो एचडी मुनाफे के लिए काम करता है।उसको तुरंत हटा दिया जाता है। जबकि रोडवेज घाटे में नहीं है। परिवहन निगम में जो खेल होता आ रहा है वह रुकने का नाम नहीं ले रहा है। प्राइवेट और सरकारी बसों का तुलनात्मक देखिए। प्राइवेट बसें सरकारी बसों की अपेक्षा सस्ती होती हैं टिकाऊ भी होती हैं।

जबकि रोडवेज की बसें सबसे महंगी और टिकाऊ नहीं होती हैं। यह सब कमीशन खोरी का खेल चल रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब कंपनियां कपड़े पर ऑफर देती हैं बसों पर ऑफर देती हैं तो ऑफर की बसें रोडवेज में कहां चली जाती हैं। प्राइवेट कंपनियां कहती है कि आप हमसे 100 बस खरीदेंगे पांच फ्री देंगे, फ्री वाली बस रोडवेज में तो नहीं आ सकते हैं। लेकिन उन पांच बसों के भुगतान दूसरे रूप में हो जाता है।

प्राइवेट बसों की अपेक्षा सरकारी बसें जल्दी कबाड़ा हो जाती हैं। प्राइवेट बसों का किराया भी कम आरामदायक और अच्छी सुविधा देता है। उसके बावजूद भी फायदे में रहता है,तो रोडवेज ज्यादा कमा कर कैसे घाटे में हो जाता है। इतने बड़े उद्योग को क्यों नौकरशाह चौपट करने में लगे हैं। तेल में भी खेल,रोडवेज में 2 साल तक एक लंबा खेल चला है। कौशांबी और गोरखपुर में प्राइवेट पेट्रोल पंपों से तेल भरे गए हैं। जब रोडवेज के पास अपना डीजल डिपो है तो प्राइवेट से क्यों भराया गया। नौकरशाह इसलिए तो नहीं राज्य परिवहन निगम को बर्बाद करने में लगे हैं कि बड़े ठेकेदारों से मोटी रकम मिल जाती है,और इधर कर्मचारियों से एक-एक दो-दो रुपए लेना पड़ता है।

उत्तर प्रदेश में परिवहन निगम के कुल 20 रीजन है इनमें से एक रीजन में पहले से ही निजीकरण की व्यवस्था लागू है। अब 19 रीजन के एक-एक डिपो में बसों की मरम्मत की जिम्मेदारी आउटसोर्स के हवाले होगी। यानी अब संबंधित डिपो की बसों का मेंटेनेंस परिवहन निगम के कर्मचारियों के बजाय प्राइवेट कर्मचारी करेंगे। राजीव त्यागी ने बताया कि 2007 में पहली बार रोडवेज को निजी हाथों में सौंपने का सपना पूरा नहीं होने दिया गया। इस बार भी परिवहन निगम की निजीकरण की मंशा पूरी होने नहीं दी जाएगी।

योगी सरकार ने पुराने नियम को बदलते हुए 75 प्रतिशत बसें निजी क्षेत्र की और सरकारी बसें 25 प्रतिशत चलाने का फैसला किया था। पुराने नियम के अनुसार उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में 75 प्रतिशत सरकारी बसें और 25 प्रतिशत निजी क्षेत्र की बसें चलती रही हैं। हालांकि सरकार को इस संबंध में विशेषज्ञों से राय ली जानी चाहिए थी। लेकिन सरकार ने मनमानी करते हुए निर्णय ले लिया। इसी तरह अब उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के 19 बस डिपो की जिम्मेदारी निजी फर्म के हवाले की जा रहा है। इसमें मेरठ का सोहराब गेट डिपो भी शामिल है। परिवहन निगम का निजीकरण करना चाहती है सरकार