“असफलता-रचनात्मक आयाम का द्वार”

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"असफलता-रचनात्मक आयाम का द्वार"
"असफलता-रचनात्मक आयाम का द्वार"

एस.कुमार तिवारी (पुलिस उपाधीक्षक) अयोध्या

अयोध्या। सफलता की चमक भला किसे आकृष्ट नही करती, पर जरूरी नही कि ये सभी के हिस्से में आये ही,और एक बार में ही आये। अनवरत निष्ठापूर्ण कर्म ही साधन है। ये सत्य है कि दुनिया इसकी चमक में ही आपको पहचानती है,जानती है,मानती है और आपके बेदाग व मुक्कमल होने की तीमारदारी भी करने लगती है। एक पुरानी कहावत है कि,” सफलता सारे कलंक धो डालती है”। यह बेशक आपकी काबिलियत का प्रमाण है। आपके परिश्रम का प्रतिफल है,आपकी योग्यता का आईना है। और दुनिया मे आपकी बादशाहत कायम करने का आधार भी। जितनी बड़ी सफलता,उतनी बड़ी सल्तनत। इतिहास भी असफल लोगों का नही लिखा जाता, जो असफल हुए वो कहीं गहरे दफ्न हो गये। न तो किसी चन्द्रवरदाई  ने उनका प्रशस्तिगान लिखा और न ही किसी जेम्स प्रिंसेप ने उन्हें पढ़ने की कोशिश की। और इस असफलता की पीड़ा तथा लोक उपेक्षा जनित कुंठा ने ऐसे योद्धाओं को किसी ऐसे बरमूडा त्रिकोण में समाधि दे दी। जहां जाने का तो रास्ता था पर वापस कुछ भी नही आने का न कृतित्व न व्यक्तित्व।


आज के लोकतंत्र को भी मैं इसलिए बेमानी मानता हूं कि वह सफलता के अल्पमत से संचालित है। असफलता का बहुमत कहीं उसके प्रतिपक्षी के रूप में भी नही दिखाई देता। तो फिर किस मुंह से आप उसे बहुमत का शासन कह सकते हैं। कई दिनों से मेरे मन मे यह प्रश्न कौंध रहा था कि, क्या असफलता सचमुच अनाथ है..? क्या जीत के जश्न के आगे उसका कोई मोल नही…? क्या वास्तव में ये हमारे किये-कराए पर पानी फेर देगी…? क्या मैं इस कारण मुंह छिपाता फिरूँ कि मैं सफलता की दहलीज नही लांघ सका ..? और इसलिए मैं नगण्य, धूल-धूसरित हो चला हूँ…? तब उसका क्या होगा जो संघर्ष मैंने भूखे-प्यासे रहकर किया है, जो रातें मैने लड़ते हुए गुजारी हैं।जिन पलों में उत्तेजित स्वेद ग्रन्थियों ने मुक्त स्वेद कण धरती के दामन पर बिखरे हैं, मेरे कदमों के वे अनन्त निशान जो अभी भी मिट्टी पर छपे हैं। तप्त उच्छ्वासों के वे बादल जो इन्ही हवाओं में कहीं घुले हैं, मेरे वे जज्बात जिनके सहारे मैं वर्षो तक जीता आया हूँ….? क्या दुनिया की नजरों में उनका कोई मोल नही…?

क्या मेरे सपनों को संसार मरीचिका मानकर तिरस्कृत कर देगा..? झुठला देगा मेरे अनन्त स्वेद कणों को, मेरे तप्त उच्छ्वासों को, मेरे पद चिन्हों को………नही ! नही !…ये असम्भव है, आप मेरे साथ अन्याय नही कर सकते। मुझे कोई शिकवा नही है कि आप सफलता को सम्मान दें,उसका महिमामंडन करें, उसके आगे नतमस्तक हो जाएं……. पर आप मुझे भुला नही पाएंगे,कदापि नही। क्योंकि मैंने असफलता की ठोकरों से ही चलना सीखा है। असफलता के इन्ही क्षणों में ही तो मुझे खुद के भीतर झांकने का अवसर मिला है। यहीं खड़े होकर ही तो मैंने अपने आपको बार-बार निहारा है, बार-बार पढ़ा है, गढ़ा है। यहीं तो मैंने सीखा है कि हमें क्या करना है और क्या नही। अपनी कमियों को खोजने का अपने बाजुओं की जोर-आजमाइश का भला इससे अच्छा मुकाम क्या हो सकता है। आपको याद है न, महान वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडीशन के शब्द…..जब उन्होंने कहा था कि, मैंने बारह सौ ऐसे तरीकों को खोजा है जिससे बल्ब नही बनाया जा सकता और अभी तक केवल एक तरीका ऐसा खोज पाया हूँ जिससे बल्ब बनाया जा सकता है।

इसीलिए मैं कहता हूं कि असफलता हमे बहुत कुछ सिखाती है, सफलता से कई गुना ज्यादा। सफलता के फल-फूल मद-मोह,लोभ,अहंकार, आत्मश्लाघा,आत्ममुग्धता,आत्मप्रवंचना होते हैं, इसीलिए वह दीर्घजीवी नही होती, मनोविकारों के दीमक उसे जल्द ही चट कर जाते हैं। संसार मे ऐसे विरले ही मनुष्य होते हैं जो इन विकारों से स्वयं को मुक्त रख पाते हैं। पर असफलता आपको स्वतः ही इन विकारों से मुक्त कर निर्मल बना देती है, यदि कहीं कुछ उच्छिष्ट रह भी गया तो बार-बार होने वाला पुनर्मूल्यांकन और सुधारों की सीढ़ी उसे भी उन्मूलित कर डालती है। इसके द्वार पर खड़े होकर आपका अनुभव और ज्ञान निरन्तर पुष्ट होने लगता है……इसीलिए ये निराशा का नही, कुंठा का नही, बल्कि सुधार का अवसर है… आत्मसुधार का।

यदि हम अपने अतीत पर नज़र डालेंगे, तो पाएंगे कि आज हम जो कुछ भी हैं वो अतीत में हमारे द्वारा किए गए प्रयासों का ही नतीजा है। जी हां, सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। भाग्य कुछ समय के लिए भले ही आपका साथ दे, लेकिन सफलता की लंबी पारी खेलने के लिए आपको कड़ी मेहनत करनी ही होगी। यही सफलता का सबसे बड़ा आयाम है। आप अपनी सफलता से कितने लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं – जीवन में सफलता का यह महत्वपूर्ण आयाम होना चाहिए । यह गुण आपको सफल इंसान से महान इंसान बनाता है।आपकी सफलता आपको और आपके देश को तब तक सम्मान दिलाती है जब तक आप जीवित हैं। लेकिन अगर आपने बहुत से लोगों को प्रेरित किया है तो आप मरणोपरांत भी देश, समाज और कर्मक्षेत्र के लिए योगदान देते हैं और महान कहलाते हैं।स्वर्गीय अब्दुल कलाम जी इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। उन्होंने अपने प्रेरक जीवन से वैज्ञानिकों और विज्ञान में कमाल कर रहे युवा पीढी की ऐसी पौध तैयार की है जो विज्ञान के क्षेत्र में विश्व भर में भारत का लोहा मनवा रहें हैं।

स्वयं को अपमानित महसूस करने का कोई कारण नही है। लोक निंदा की इस समय पड़ने वाली बौछारें व्यर्थ साबित हो सकती हैं। जबकि हम असफलता के रचनात्मक आयामों की ओर बढ़ चलें। आप यकीन मानिए, मैं ऐसे बहुतेरे भाग्यशाली लोगों को जानता हूँ जो जल्दी ही सफलता की दहलीज लांघ गए, उन्हें असफलता की भट्टी में पकने का अवसर नही मिला, परिणामतः उनके सफलता की चमक जुम्मा-जुम्मा आठ दिन भी नही टिक सकी। पर इसके विपरीत जो असफलता की भट्टी से होकर निकले और कुछ देर बाद सफल हुए, वे संसार के इस कुरुक्षेत्र में अधिक मजबूत योद्धा साबित हुए। उनकी सफलता किसी भाग्य की मोहताज न होकर उनके आजानबाहु से जन्मी थी। इसलिए याद रखिये, कि सफलता आपके लिए केवल एक विकल्प देती है। पर असफलता सौ विकल्पों की जननी है, थोड़ी तीखी है, पर आपका उपचार भी वही करेगी। किसी अनुभवशील ने कहा था कि, ‘बेटा ! कामयाब नही, काबिल बनो..काबिल ! कामयाबी तो झक मारकर तुम्हारे पीछे आएगी। तो फिर उठिए, तोडिये अपनी जड़ता को, हटाइये इस तन्द्रा को और असफलता के रचनात्मक आयामों से जुड़े लाभों को आत्मसात करिये। फिर देखिए सफलता भी आपके चरण चूमेगी और दुनिया भी आपके कदमों में होगी।