हर अंत एक नई शुरुआत

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हर अंत एक नई शुरुआत
हर अंत एक नई शुरुआत
 विजय गर्ग
विजय गर्ग

हमारे इस जीवन का एक बड़ा हिस्सा स्वप्नों में ही समाया हुआ है, जो एक यात्रा है और हम इसमें एक भटके हुए यायावर हैं । हम अपनी आंखों में अपने सपनों की तलाश करते हैं, सजाते हैं, लेकिन कई बार वह तलाश कभी पूरी नहीं होती। जीवन में कोई एक मंजिल तय नहीं हो पाती और आंखें दूसरी मंजिल के सपने देखने लगती हैं । यह प्रकृति की एक जटिल संरचना है, एक अबूझ चक्र है, लेकिन शायद यही जीवन है। कहा जाता है कि वे आंखें ही क्या,जो सपने न देखें। दरअसल, यह कुछ आधी-अधूरी बात लगती है, क्योंकि सपने केवल नहीं देखने का मामला नहीं हैं, बल्कि इनका दायरा बहुत बड़ा है और जीवन रहने तक यह असीम है। प्रचलित और प्रत्यक्ष परिभाषा में आंखों को जिस रूप में देखा जाता है, उसके मुताबिक सोचें तो सपने इन आंखों पर निर्भर नहीं हैं। हर अंत एक नई शुरुआत

जो लोग दृष्टिबाधित होते हैं, सपने वे भी देखते हैं और इस अर्थ में स्वप्न एक सजीला शब्द है, जिसमें कितना कुछ निहित है! सच यह है कि सपनों का तंत्र विचार से जुड़ा होता है, इसलिए जो भी मनुष्य जीवित है, वह सपने देखता है। यह संभव है कि वास्तविक जीवन में उपजी जरूरतें कई बार सपने बन रह रह जाएं। मगर इच्छाओं में बदल जाने वाले सपने कई बार जीवन का अहसास कराते हैं। समय के साथ मनुष्य के समाज का स्वरूप ठहरा नहीं रहा है, बल्कि विकसित हुआ है। उसमें सपनों को दुनिया में व्यक्ति के भीतर जिजीविषा भरने का एक श्रेष्ठ माध्यम माना गया है। शायद इसलिए कि जो इच्छाएं वास्तविक जीवन में पूरी होनी संभव नहीं होती, उन्हें कई बार सपनों में पूरा होते देख लिया जाता है। इसे आभासी सुख की तरह माना जा सकता है, लेकिन इन सपनों का महत्त्व इस रूप में देखा जाता रहा है कि ये जीवन यात्रा में कमजोर क्षणों में ऊर्जा भरने के काम आते हैं। नींद के सपनों को छोड़ दिया जाए तो खुली आंखों से देखे जाने वाले सपनों ने संसार का जीवन बदल दिया है।

कई लोग इस मुश्किल से दो-चार होते हैं कि उन्हें स्वप्न सोने नहीं देते, लेकिन दूसरी ओर नींद आती है, तो सपने भी आते हैं। समस्या तब खड़ी होती है, जब कोई ऐसा सपना आंखों में तैरने लगे, जिनके बारे में पता होता है कि उसके पूरा होने की कोई उम्मीद नहीं होती । तपती रेत की तरह जीवन और उसमें मृगमरीचिका की तरह के सपनों के रेगिस्तान के हम सभी पथिक हैं। शायद कभी सपने टूट कर बिखर जाएं तो संभव है, आंखें कुछ समय के लिए पथरा जाएं, यानी सोचने-समझने की प्रक्रिया में थोड़ी स्तब्धता आ जाए, लेकिन संसार में वीतरागी बन कर जीवन यात्रा पूरी नहीं होती। स्वप्नों के आकाश में सूनी आंखों में चमकते तारे उतरते हैं, मानो गहन अंधकार में कोई जुगनू का प्रकाश हुआ हो। जीवन में ऐसा भी समय आता है जब नकारात्मकता का बोध हावी हो जाता है।उस दौर में स्वप्नों की भी चाह नहीं रहती, जीवन उदासीन-सा लगता है, लेकिन फिर एक अपरिचित उम्मीद स्वप्न किरण की तरह मन के सूने द्वार पर दस्तक देती है और जीवन ज्योति फिर से जीवित हो उठती है । जीवन की पीड़ा में सपने मरुस्थल में जल के मानिंद होते हैं। हम उसी मृगतृष्णा में ताउम्र चलते रहते हैं । यही जीवन चक्र है।

जीवन गतिशील है, वह कभी ठहरता नहीं । ठहरना इसकी प्रकृति में है भी नहीं। स्वप्न पूरे हों या न हों, स्वप्नों का आकाश हमेशा आंखों में जीवित रहना चाहिए, जिसमें ब्रह्मांड की तमाम आकाशगंगाओं का समावेश हो। कभी मनुष्य जीवन के दंशों से थका हारा स्वप्नों की चाह खो बैठता है और मृत्यु का आलिंगन करना चाहता है, तो ऐसा किसी बड़े स्वप्न के टूटने से भी हो सकता है। ऐसे समय में धैर्य रखने की जरूरत सबसे ज्यादा होती है। स्वप्नों के टूटने से जीवन की कश्ती डगमगा सकती है, लेकिन फिर धैर्य का मांझी नए स्वप्न दिखाता है, जिसमें हकीकत का स्पर्श होता है। संभव है कि कभी किसी बड़े आघात से जीवन की बगिया मुरझाने लगे, लेकिन अपने मन में आस का दीप सदैव ही प्रज्वलित रखना चाहिए, ताकि जरा भी निराशा मन को न घेरे। स्वप्न कभी अधूरे रह जा सकते हैं, क्योंकि संसार का संचालन केवल हमारे हाथों में नहीं है। हम अपने लिए जिम्मेदार हो सकते हैं और हमारी सीमा भी हो सकती है। मुमकिन है कि कभी अंधियारा इतना गहन हो कि दीप न दिखाई दे, लेकिन आस की जीवन- ज्योति जलानी ही चाहिए।

हरिवंश राय ‘बच्चन’ की पंक्तियां हैं- ‘जो बीत गई, सो बात गई /सूखे पत्तों पर कब मधुबन शोक मानता है।’ यह सच भी है कि एक तारा अगर टूट जाए तो इससे फलक सूना नहीं हो जाता। इसी तरह किसी स्वप्न के टूटने से जीवन रुक नहीं जाता। उम्मीदों का आकाश सदैव बाहें पसारे खड़ा रहता है । बस जरूरत होती है हौसले को बनाए रखने की। जीवन में खत्म होने जैसा कुछ नहीं होता है। हर अंत एक नई शुरुआत है। एक मंजिल हासिल न हो, तो नए रास्ते खुलते हैं । बस जीवन से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। स्वप्नों की चाह ही जीवन है । जीवन का कोई पड़ाव हो, सपने सजते रहने चाहिए। जो बुजुर्ग अपने जीवन के अंतिम चरण में होते हैं, वे भी सपने देखते हैं। सच यह है कि सपने जीवन के आभामंडल के इंद्रधनुषी रंग हैं, जो हमें भावनात्मक ऊर्जा तो देते ही हैं, साथ ही जीने की वजह भी बनते हैं। हर अंत एक नई शुरुआत