अखंड अमेरिका के सपने और मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के जज्बे को समझिए। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिज्ञ बताते हैं कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यूँ ही कुछ नहीं कहते, बल्कि उसके पीछे एक रणनीतिक सोच होती है। अखंड अमेरिका के सपने…
कमलेश पांडेय
महाराजा वह नहीं होता जो अपनी सीमाओं के भीतर रहकर शासन करे बल्कि महाराजा या चक्रवर्ती सम्राट वह होता है जो अपनी सीमाओं का निरंतर विस्तार करता रहे। भारतीय अश्वमेध यज्ञ की अवधारणा का पवित्र उद्देश्य भी तो यही था। हालांकि, समसामयिक लोकतांत्रिक विश्व में भौगोलिक सीमाएं बढ़ाना उतना आसान नहीं है, जितना पहले था क्योंकि तब युद्ध जीतकर साम्राज्य विस्तार संभव था लेकिन अब भी जनमत सर्वे,पारस्परिक रजामंदी या फिर पूंजीवादी दांवपेचों को अपनाकर साम्राज्य विस्तार किया जा सकता है।
देखा जाए तो 1789 की फ्रांसीसी क्रांति के बावजूद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के आर्थिक साम्राज्यवाद (1947 तक) से हम लोग बहुत कुछ सीख सकते हैं। उसी का परिवर्तित स्वरूप पूंजीवादी अमेरिका की नई आर्थिक नीतियां और ग्लोबल विलेज की सोच है जिसे भूमंडलीकरण या वैश्वीकरण कहा जाता है। कहना न होगा कि अपनी इन्हीं क्रांतिकारी नीतियों से संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी साम्यवादी/समाजवादी सोवियत संघ को तो परास्त करके खंड-खंड कर दिया लेकिन जब चीन, रूस और भारत ने भी कुछ संशोधनों के साथ पूंजीवादी राजपथ पर फर्राटे भरना शुरू किया तो अमेरिका को अपनी ही युगान्तकारी सोच में बदलाव लाने की गुंजाइश बनानी पड़ी।
बहरहाल, अखंड अमेरिका की नई अवधारणा और मेक अमेरिका ग्रेट अगेन जैसी सकारात्मक पहल का फलाफल क्या निकलेगा, यह तो नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ही बता सकते हैं लेकिन यदि इसी राह पर भारतीय उपमहाद्वीप (अखंड भारत), यूरोपीय संघ, सोवियत संघ के तमाम देश, चीनी पृष्ठभूमि के सभी देश, अफ्रीकी मूल के सभी देश, ऑस्ट्रेलिया, जापान के नेतृत्व में पूर्वी एशियाई देश, इजरायल के नेतृत्व में अरब देश यदि एकजूट होने की पहल तेज कर दी तो लोकतांत्रिक स्वरूप में भी नव आर्थिक साम्राज्यवाद को बल मिलेगा।
वहीं, इससे ब्रिक्स देशों यानी ब्राजील, रूस, चीन, भारत आदि की नई परिकल्पना को भी आघात पहुंच सकता है। हां, यदि डिजिटल दुनिया और एआई जैसी 21वीं सदी की तकनीकी को अपनाने में जो देश या उनका गुट पिछड़ेगा, उसे अमेरिकी, चीनी, रूसी, भारतीय, जापानी आर्थिक साम्राज्यवादी सोच के समक्ष नतमस्तक होना पड़ेगा। यदि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यह नई परिकल्पना साकार होती है तो जनतांत्रिक दुनिया और आर्थिक साम्राज्यवाद का एक नया स्वरूप सामने आ सकता है जिसकी बुनावट अमेरिका के शुरू हो चुकी है।
अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिज्ञ बताते हैं कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यूँ ही कुछ नहीं कहते, बल्कि उसके पीछे एक रणनीतिक सोच होती है। अपनी इसी सोच के बल पर पहले उन्होंने कारोबारी श्रेष्ठता हासिल की, फिर अमेरिका के राष्ट्रपति बने, फिर चुनाव हारने के बाद भी चुप नहीं बैठे, बल्कि अमेरिकी श्रेष्ठता को पुनर्स्थापित करने का संकल्प लिए वह दूसरी बार फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बने। इस दौरान जिस जो बाइडेन से उन्होंने मात खाई थी, एक बार पुनः उन्हें सियासी मात दी। ततपश्चात अखंड अमेरिका के सपने को साकार करने के लिए जिस तरह से पहले कनाडा, फिर पनामा नहर, उसके बाद ग्रीन लैंड और अब मेक्सिको की खाड़ी की चाहत उन्होंने जताई है, उससे स्पष्ट है कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका को पुनः भौगोलिक रूप से ‘महान’ बनाने की योजना बना रहे हैं।
तभी तो उनकी महत्वाकांक्षाएं सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण और प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण ग्रीनलैंड को खरीदने, चीनी और रूसी संयुक्त स्वार्थों की पूर्ति का साधन बन रहे पनामा नहर पर अमेरिकी कंट्रोल फिर से वापस लेने, एक और नया पाकिस्तान बनने को आतुर कनाडा को अमेरिका में शामिल करने और मेक्सिको की खाड़ी का नाम बदलकर अमेरिका खाड़ी करने और इसके लिए सेना उतारने तक के ख्वाब उन्होंने संजोए हैं. यदि ये सब पूरे हो गए तो वाकई अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा देश बन जाएगा। वैसे तो पहले भी ट्रंप ऐसी मांगें उठाते रहे हैं लेकिन अब अमेरिकी राष्ट्रपति पद संभालने जा रहे ट्रंप की ये बातें मजाक से कुछ ज़्यादा हकीकत समझी जा रही हैं। क्योंकि मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के सपने को पूरे करने के लिए ये अमोघ शस्त्र की मानिंद हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कहा है कि सभी जगह मौजूद रूसी और चीनी जहाजों की निगरानी के लिए यह द्वीप (ग्रीनलैंड) बेहद जरूरी है क्योंकि जब मैं फ्री वर्ल्ड की रक्षा की बात कर रहा हूं, तो दुनिया के इस सबसे बड़े द्वीप की अमेरिका को बेहद जरूरत है। चर्चा है कि ट्रंप की सत्ता हस्तांतरण टीम में शामिल रणनीतिक लोग भी इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि ग्रीनलैंड का अधिग्रहण कैसे हो सकता है। इस द्वीप के प्राकृतिक संसाधन ट्रंप को लुभा रहे हैं। उधर,
ग्रीनलैंड के पीएम म्यूट इगा (Mute B. Egede) ने भी दो टूक कहा है कि, ‘ग्रीनलैंड हमारा है और वह बिकाऊ नहीं है।’ बता दें कि ग्रीनलैंड डेनमार्क का स्वायत्त क्षेत्र है हालांकि, राष्ट्रपति के रूप में पहले कार्यकाल में 2019 में भी ट्रंप ने आर्कटिक सागर के इस रणनीतिक महत्व वाले द्वीप को खरीदने की इच्छा जताई थी। वहीं, पिछले महीने ट्रंप ने डेनमार्क में अमेरिकी दूत को नामित करते हुए ग्रीनलैंड को खरीदने का मुद्दा उठाया जिसे खारिज किया गया लेकिन ये बात सबको पता है कि आजतक अमेरिका जो चाहता है, उसे हासिल करके ही रहता है। भले ही अभी उसे चीनी-रूसी चुनौती मिल रही है लेकिन इसकी काट भी वह ढूंढ लेगा।
वहीं, डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि हम ‘गल्फ ऑफ मेक्सिको’ का नाम बदलकर ‘गल्फ ऑफ अमेरिका’ करने जा रहे हैं। यह कितना अच्छा नाम है। यही नाम सही भी है। ट्रंप का कहना है कि इस इलाके में अमेरिका की ज्यादा मौजूदगी है। वह इस इलाके में सबसे ज्यादा एक्टिविटी करता है, इसलिए यह जगह अमेरिका की है और बहुत जल्द ही किसी तारीख को गल्फ का नाम बदलने की घोषणा की जाएगी। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि वह गल्फ ऑफ मेक्सिको का नाम कैसे बदलेंगे। बता दें कि गल्फ ऑफ मैक्सिको को अक्सर अमेरिका का ‘तीसरा तट’ कहा जाता है क्योकि यह खाड़ी अमेरिका के 5 राज्यों से सटी हुई है।
वहीं, डोनाल्ड ट्रंप का आरोप है कि पनामा नहर के इस्तेमाल के लिए पनामा अमेरिका से बहुत अधिक दाम वसूल रहा है इसलिए उसे वापस लेना बेहद जरूरी है। उनका आरोप यह भी है कि पनामा नहर पर चीनी सैनिकों का नियंत्रण है और वे अवैध रूप से इसका संचालन कर रहे हैं। चूंकि चीन, रूस का रणनीतिक पार्टनर बन चुका है, इसलिए अमेरिका इसे अपने रणनीतिक हितों के लिए खतरा मानता है। वहीं पनामा के राष्ट्रपति जोसे राउल मुलिनो इन दावों को ‘बेतुका’ बताया है। उन्होंने कहा कि पनामा नहर का एक वर्ग मीटर भी अमेरिका को नहीं सौंपेंगे। इस पर ट्रंप ने सोशल मीडिया पर नहर के ऊपर लहराते हुए अमेरिकी झंडे की तस्वीर पोस्ट की, जिसका शीर्षक था- Welcom to the United States Canal! बता दें कि अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाली इस नहर का नियंत्रण 1977 तक अमेरिका के ही पास था लेकिन 1999 से इसका नियंत्रण पूरी तरह से पनामा के पास चला गया था। ट्रंप इसे रणनीतिक गलती मानते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने गत मंगलवार को अमेरिका का नया नक्शा सोशल मीडिया पर शेयर किया जिसमें कनाडा को अमेरिका के 51वें राज्य के रूप में दिखाया गया। बता दें कि इससे कुछ घंटों पहले ही ट्रंप ने कहा था कि कनाडा को अमेरिका में मिलाने के लिए आर्थिक बल (टैक्स) का प्रयोग करने से भी हिचकेंगे नहीं। उन्होंने यहां तक कहा कि, आप (कनाडा) दोनों देशों के बीच खींची गई आर्टिफिशल लाइन से छुटकारा पा लें। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बेहतर होगा जबकि कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने गत बुधवार को ही कहा कि विलय की कोई गुजाइश नहीं है। वहीं, उनकी विदेश मंत्री मेलानी जोली ने कहा कि हमारा देश कनाडा ऐसी धमकियों से डर कर पीछे नहीं हटेगा।
समझा जाता है कि अमेरिका के पड़ोस में बसा कनाडा हाल के वर्षों में जिस तरह से खालिस्तानी और इस्लामिक आतंकवादियों का नया ठिकाना बनता जा रहा है, उससे कनाडा के दूसरा पाकिस्तान बनने की चर्चा पूरे विश्व में हो रही है। अमेरिका में नववर्ष पर हुए आतंकी हमले के तार भी कनाडा से जुड़े बताए जाते हैं। उधर अमेरिका के रणनीतिक पार्टनर भारत से भी कनाडा के रिश्ते खराब हो चुके हैं। इसलिए डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा के बारे में नया बयान देकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है हालांकि, कनाडा के नेताओं को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आई है कि उनका देश अमेरिका का हिस्सा बन जाए। यही वजह है कि ट्रंप की पोस्ट पर कनाडा के पीएम और अधिकारियों ने तीखी प्रतिक्रियाएं दी हैं।
जानकार बताते हैं कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा के नेताओं को नाराज कर दिया है। ऐसा इसलिए कि ट्रंप ने एक नक्शा शेयर किया है जिसमें कनाडा को अमेरिका के हिस्से के तौर पर दिखाया गया है हालांकि, कनाडा के पीएम और दूसरे नेताओं ने ट्रंप की इस सोच को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। कनाडा के निवर्तमान प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने डोनाल्ड ट्रंप को जवाब देते हुए कहा है कि उनका देश कभी भी अमेरिका का हिस्सा नहीं हो सकता है। वहीं, ट्रंप के आक्रामक रुख से कनाडा और अमेरिका के संबंधों में तनाव पैदा हो गया है।
जस्टिन ट्रूडो ने मंगलवार को एक्स पर लिखा कि ट्रूडो कनाडा के अमेरिका का हिस्सा बनने का सवाल ही नहीं उठता है, इसकी बिल्कुल कोई संभावना नहीं है। ट्रूडो ने अमेरिका और कनाडा के बीच सुरक्षा और व्यापारिक संबंधों की अहमियत पर जोर देते हुए माना कि दोनों देशों के बीच गहरे रिश्ते हैं लेकिन विलय जैसी बात करना ठीक नहीं है। वहीं, कनाडाई विदेश मंत्री मेलानी जोली का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप की समझ कनाडा के बारे में कम है। जोली ने कहा, ‘ट्रंप को कनाडा की अर्थव्यवस्था और लोगों की ताकत का अंदाजा नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था और लोग बेहद मजबूत हैं। हम धमकियों के आगे कभी नहीं झुकेंगे। कनाडा ने हमेशा अमेरिका के साथ अच्छे संबंधों की चाहत रखी है लेकिन संप्रभुता से कभी भी कोई समझौता नहीं होगा।’
डोनाल्ड ट्रंप के बयान और उस पर कनाडाई नेताओं की प्रतिक्रिया से दोनों देशों में तनाव बढ़ सकता है क्योंकि ट्रंप ने कनाडा से आयात पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी दी है जिससे कनाडा की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। वहीं, कनाडा के अधिकारी भी इस टैरिफ का जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक्सपर्ट दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध (ट्रेड वॉर) की आशंका जता रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के समय से ही डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा को लेकर कड़े बयान दिए हैं। उन्होंने कई बार कनाडा पर टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उनका साफ कहना है कि वह कनाडा को अमेरिका में मिलाने के लिए आर्थिक दबाव डालेंगे क्योंकि कनाडा अपने निर्यात का 75 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका को भेजता है। ऐसे में कनाडा पर टैरिफ से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है। वहीं, ट्रंप का कहना है कि आर्थिक ताकत के जरिए वह कनाडा को अमेरिका में मिला लेंगे। यदि ऐसा होता है तो यह भारत के लिए अच्छा होगा।
वहीं, यदि इसी राह पर भारतीय उपमहाद्वीप (अखंड भारत), यूरोपीय संघ, सोवियत संघ के तमाम देश, चीनी पृष्ठभूमि के सभी देश, अफ्रीकी मूल के सभी देश, ऑस्ट्रेलिया, जापान के नेतृत्व में पूर्वी एशियाई देश, इजरायल के नेतृत्व में अरब देश एकजुट होने लगे तो लोकतांत्रिक स्वरूप में भी नव आर्थिक साम्राज्यवाद को बल मिलेगा। भारतीय नेतृत्व को तो अखंड भारत के सपने को पूरा करने के लिए अविलम्ब कदम उठाने चाहिए। इस दिशा में नया अमेरिका भी उसका मददगार हो सकता है, बशर्ते कि कूटनीतिक पहल चतुराई से हो। अमेरिका को यह समझाया जाए कि दक्षिण-पूर्व एशिया में चीनी-पाकिस्तानी मिली भगत को इसी से हतोत्साहित किया जा सकता है। वहीं, रूस को भी भरोसे में लेकर भारत चुटकी में अपनी पुरानी सीमाओं को प्राप्त कर सकता है। इस हेतु देश में भी नई चेतना पैदा करने की जरूरत है।
अखंड अमेरिका के सपने और मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के जज्बे को प्रदर्शित करने वाले अमेरिकी वयोवृद्ध राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से हमारे बुजुर्ग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बुजुर्ग आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को भी प्रेरणा लेनी चाहिए और अखंड भारत के सपने को पूरा करने हेतु सार्थक पहल करनी चाहिए। अभी नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर। अखंड अमेरिका के सपने…
—– लेखक-वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक