डिफ्रेंशिएटेड केयर से कम होगी टीबी मृत्यु दर

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डिफ्रेंशिएटेड केयर से कम होगी टीबी मृत्यु दर
डिफ्रेंशिएटेड केयर से कम होगी टीबी मृत्यु दर

डिफ्रेंशिएटेड केयर से कम होगी टीबी मृत्यु दर। उत्तर प्रदेश समेत हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख व उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण। डिफ्रेंशिएटेड टीबी केयर व ड्रग रेजिस्टेंट टीबी की नई गाइडलाइंस को प्रभावी तरीके से लागू करने के निर्देश। डिफ्रेंशिएटेड केयर से कम होगी टीबी मृत्यु दर

लखनऊ। डिफ्रेंशिएटेड टीबी केयर ( विभेदित टीबी देखभाल) पर उत्तर भारत के सात राज्यों के अधिकारियों का लखनऊ में दो दिन प्रशिक्षण चला। केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग की उपमहानिदेशक डॉ. उर्वशी बी. सिंह ने कहा कि गंभीर टीबी केसों की तुंरत पहचान करना, उन्हें जरूरी आंतरिक एवं वाह्य रोगी सेवाओं से जोड़ना, उपचार परिणामों में सुधार करना और टीबी से संबंधित मृत्यु दर को कम करना हम सबका लक्ष्य है। इस प्रशिक्षण के बाद सभी राज्य क्षय रोग अधिकारी (एसटीओ) अपने प्रदेश में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) स्तर तक प्रशिक्षण देंगे जिससे ग्रामीण स्तर तक इस ट्रेनिंग का लाभ पहुंच सके।

डॉ. उर्वशी शुक्रवार को दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन अवसर पर अधिकारियों को संबोधित कर रहीं थीं। उन्होंने कहा कि विभेदित टीबी देखभाल की नई गाइडलाइंस जारी हो चुकी हैं। सभी संबंधित अधिकारी उसे आत्मसात करें और उसके अनुसार प्रत्येक मरीज की देखभाल करवाएं। उपमहानिदेशक ने कहा कि ड्रग रेजिस्टेंट टीबी की भी नई गाइडलाइन जारी हुई है। उसको भी जिलास्तर तक प्रभावी तरीके से लागू किया जाए।

इससे पहले प्रशिक्षण कार्यशाला में टीबी चैंपियन को फिर से सक्रिय करने व उनका इन्सेंटिव बढ़ाने की बात उठी। सेंट्रल टीबी डिवीजन के संयुक्त आयुक्त डॉ. संजय मट्टू ने कहा कि गतिविधि आधारित मानदेय पर रखने पर विचार किया जा सकता है। कार्यशाला में प्राइवेट सेक्टर में विभेदित टीबी देखभाल को प्रमोट करने की बात भी कही गई। इससे कार्यक्रम की पहुंच बढ़ेगी और टीबी मरीजों की जल्दी पहचान होगी।

राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ शैलेंद्र भटनागर ने कहा कि उत्तर प्रदेश में मेडिकल कालेजों का सक्रियता और बढ़ने व सीचओ और फैमली केयर गिवर का प्रशिक्षण होने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि विभेदित टीबी देखभाल के दिशा-निर्देशों में मरीजों की जोखिम प्रोफ़ाइल के आधार पर व्यक्तिगत देखभाल शामिल है। इसमें मरीज़ की ज़रूरत के अनुसार गुणवत्तापूर्ण देखभाल प्रदान करना, पोषण सहायता देना और नियमित अनुवर्ती कार्रवाई सुनिश्चित करना शामिल है, ताकि टीबी से होने वाली मृत्यु दर को कम किया जा सके। उच्च-जोखिम वाले मरीजों की पहचान के लिए जोखिम मूल्यांकन किया जाता है और उन्हें विशेष देखभाल के लिए रेफर किया जाता है।

कार्यशाला के अंत में केजीएमयू के रेस्पेरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ सूर्याकांत व हरियाणा के राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ राजेश राजू को सम्मानित किया गया। कार्यशाला में राष्ट्रीय टीबी टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन डॉ अशोक भारद्वाज व वाइस चैयरमैन डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी मौजूद रहे। इस दो दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला में हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड तथा उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। डिफ्रेंशिएटेड केयर से कम होगी टीबी मृत्यु दर