लखनऊ। देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर इंडियन ओवरसीज कांग्रेस उत्तर प्रदेश इकाई की ओर से 18 अगस्त, गुरुवार को वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं महंगाई की राजनीति के विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया है। इंडियन ओवरसीज कांग्रेस उत्तर प्रदेश के चेयरमैन कैप्टन बंशीधर मिश्र ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सेमिनार गुरुवार को उत्तर प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में शाम पांच बजे आयोजित किया गया है। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में वीरेन्द्र वशिष्ठ जी राष्ट्रीय सचिव इण्डियन ओवरसीज कांग्रेस, नुरिमा शर्मा कोऑर्डिनेटर इण्डियन ओवरसीज कांग्रेस जर्मनी एवं डॉ0 आनन्द शुक्ला कोऑर्डिनेटर इण्डियन ओवरसीज अफ्रीका होंगें।
कैप्टन वंशीधर मिश्र ने कहा कि सैकड़ों वर्षों तक ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़े भारत को हमारे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, कांग्रेस पार्टी, महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, अशफ़ाकउल्लाह खान, राम प्रसाद बिस्मिल जैसे अनगिनत सेनानियों ने आज़ाद कराया। आज़ादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह अहसास हमारे रोंगटे खड़े कर देता है कि हम भारतीय सैकड़ों वर्षों तक दासता की ज़ंजीरों में जकड़े थे।
मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि कांग्रेस ने एक सुनहरे भारत की जो परिकल्पना की थी, उस पर अब जुमलेबाज़ी की हवा लगने लगी है। वैश्विक स्तर पर हम भारत को आज़ादी के बाद किस मुक़ाम तक ले जाने में सफल रहे और पिछले सात-आठ वर्षों में हम कहाँ आ गए हैं। दुनिया के बहुत देशों में मेरा निरंतर आना जाना है और मैंने महसूस किया कि विदेशों में भी यहाँ के नेतृत्व की निरंतर प्रचार की भूख ने बुनियादी मुद्दों को पीछे कर दिया है।
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने वादा किया था कि वो 2025 तक भारत की जीडीपी को 5 ट्रिलियन (5 लाख करोड़) डॉलर की बना देंगे लेकिन ठोस धरातल पर कारगर नीति न होने से उनका जुमला अब पाइपलाइन में ही अटका नज़र आ रहा है क्योंकि कोविड के कुप्रबंधन ने वैश्विक स्तर पर हमें कमजोर किया है। झूठे दावों और विज्ञापनों के सहारे अपने हाथों अपनी पीठ भले थपथपा लें लेकिन मुद्रास्फीति के बाद देश की अर्थव्यवस्था तीन लाख करोड़ डॉलर ही पहुँच पाएगी। हालाँकि, केवल कोविड ही इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है। नरेंद्र मोदी ने जब प्रधानमंत्री का पद संभाला था, उस समय भारत की जीडीपी उच्च स्तर यानी 7-8ः पर थी, जो 2019-20 की चौथी तिमाही के दौरान दशक के सबसे कम स्तर यानी 3.1ः पर आ गई। साल 2016 में नोटबंदी ने 86ः से अधिक नक़द को चलन से बाहर कर दिया और नए टैक्स नियम गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स (जीएसटी) ने व्यापार को तगड़ी मार पहुँचाई। इन सबने अगली बड़ी समस्याओं को जन्म दिया।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ‘‘मेक इन इंडिया’’ पहल की शुरुआत की थी, तो यह दावा किया जा रहा था कि लाल फ़ीताशाही को समाप्त करके और निर्यात केंद्रों से निवेश आकर्षित करके भारत वैश्विक उत्पादन का पावरहाउस बन जाएगा।
लक्ष्य था कि मैन्युफ़ैक्चरिंग को जीडीपी का 25ः हिस्सा बनाया जाएगा, लेकिन उनके नेतृत्व के आठ सालों में इसका शेयर 15ः पर अटक गया है। सेंटर फ़ॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस के अनुसार, इस सेक्टर की सबसे बुरी हालत हुई है और तक़रीबन एक दशक में निर्यात 300 अरब डॉलर पर लटक गया है। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के दौरान भारत बांग्लादेश जैसे छोटे प्रतिद्वंद्वी से भी तेज़ी से मार्केट शेयर हार चुका है। बांग्लादेश ने तेज़ी से वृद्धि दर्ज की है और ख़ासकर निर्यात के मामले में जो उसके श्रम प्रधान वस्त्र उद्योग पर टिका हुआ है।भारत जैसी अर्थव्यवस्था को महज इससे खुश होने की जरूरत नहीं है. इस तेज विकास दर के बावजूद जी-20 समूह में भारत अभी भी सबसे गरीब देश है और मौजूदा स्थिति में उसके लिए आसान है कि वह अमीर-गरीब देश के इस अंतर को खत्म कर ले। दिसम्बर २०२२ से दिसंबर २०२३ तक भारत में जी-२० देशों की बैठक आयोजित होगी और मेरी शुभकामना है कि सरकार ठोस काम करे लेकिन यह उम्मीद करना बेमानी है। वजह साफ़ है कि उनकी नीति सिर्फ़ वोट की फसल उगाने की है और बुनियादी मसलों के हल करने से उनका कोई वास्ता नहीं है।