आजादी का जश्न…

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आजादी का जश्न...
आजादी का जश्न...

आजादी हमारी विरासत है, और आजादी हमारा गौरव है।हम अपनी स्वतंत्रता की महानता के लिए एकजुट हैं।भगवा, सफेद और हरा और आजादी हमेशा के लिए।आजादी का जश्न मनाएं और एकता को अपनाएं।हम स्वतंत्रता और न्याय के साथ एक होकर खड़े होते हैं।एक भारतीय होने पर गर्व है, हमारे इतिहास को अपनाते हुए।स्वतंत्रता की भूमि, वीरों की जन्मभूमि।आजादी में हम दहाड़ते हैं। एक साथ, हम ऊंची उड़ान भरते हैं।पुराने का सम्मान करते हुए भविष्य को अपनाएं।

देशभर में इस बार भारत 15 अगस्त 2024 के दिन अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। देशभर में आजादी का जश्न पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। भारत को आधिकारिक रूप से 15 अगस्त 1947 के दिन आजादी मिली थी। हर साल देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राजधानी में लाल किले की प्राचीर से ध्वजारोहण करते हैं। इसके बाद देश के नागरिकों को संबोधित करते हैं। इस दिन को देशभक्ति के जुलूस, सांस्कृतिक कार्यक्रम और स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी कार्यालयों और अन्य स्थानों पर ध्वजारोहण समारोहों के साथ मनाया जाता है। इस दिन स्कूलों, कॉलेजों और दफ्तरों में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस उत्सव को भारत के सभी धर्म के लोग मिलकर एक साथ मनाते हैं। लोगों के जश्न मनाने का तरीका अलग-अलग हो सकता है। कुछ लोग तिरंगे के रंग के कपड़े पहनते हैं। महिलाएं बिंदी, चूड़ी जूलरी भी तिंरगे के रंग की पहनती है। कुछ लोग डांस करते हैं तो कुछ भाषण देते हैं। लोग अपने घरों, दफ्तर और सार्वजनिक स्थान पर ध्वजारोहण करते करते हैं, मिठाई बांटते हैं और खुशी-खुशी जश्न मनाते हैं। 15 अगस्त, 1947 को भले ही देश आजाद हुआ। लेकिन इस आजादी के लिए हमारे कई स्वतंत्रता सेनानियों की अपने प्राणों की आहुति भी दी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण में स्थानीय जनता का दबाव बढ़ने लगा। भारत में ब्रिटिश शासन के ताबूत में आखिरी कील 1946 के रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह के रूप में लगी। इसी के बाद अंग्रेजों को पता लग गया कि वे स्थानीय सशस्त्र बलों पर नियंत्रण खो रहे हैं। हालात बदल चुके थे ऐसे में ब्रिटिश संसद ने भारत को सत्ता हस्तांतरित करने का आदेश जारी कर दिया। 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पेश किया गया। इसके बाद 18 जुलाई, 1947 को शाही संस्तुति मिलने पर यह विधेयक अधिनियम बना। इस अधिनियम में भारत-पाकिस्तान का विभाजन, रियासतों को दोनों में से किए एक देश के साथ रहने के अधिकार सहित कई प्रावधान थे। आजादी का जश्न…

स्वतंत्रता दिवस तिथि और थीम

15 अगस्त 1947 के दिन ही भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली थी। 78वां स्वतंत्रता दिवस गुरुवार 15 अगस्त को मनाया जाएगा। इस साल की थीम ‘विकसित भारत’ रखी गई है। यह साल 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदलने के सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप है। 2047 में भारत की आजादी के 100 साल पूरे होंगे। भारत सरकार का लक्ष्य भी आजादी के 100 साल पूरे होने तक देश को विकसित राष्ट्र बनाना है।

क्या आप जानते हैं कि ध्वजारोहण और झंडा फहराने में क्या अंतर है….?

ध्वजारोहण और झंडा फहराना दो अलग-अलग कार्यक्रम होते हैं। ये दोनों कार्यक्रम 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन होते हैं। बता दें कि पंडित ज्वाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर 15 अगस्त 1947 के दिन ध्वजारोहण किया था। वहीं 26 जनवरी को राष्ट्रपति की ओर से झंडा फहराया जाता है। दोनों कार्यक्रमों का आयोजन लाल किले की प्राचीर और राज पथ पर आयोजित किया जाता है। इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि ध्वजारोहण और झंडा फहराने में क्या अंतर होता है।

15 अगस्त के दिन ध्वजारोहण

15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के दिन ध्वजारोहण का कार्यक्रम होता है। 15 अगस्त 1947 स्वतंत्रता दिवस के दिन पहली बार झंडा लाल किले की प्राचीर पर ब्रिटिश झंडे को नीचे उतार पहली बार चढ़ाकर ध्वजारोहण किया गया था। बता दें कि राष्ट्रीय ध्वज को जब स्तंभ पर नीचे से ऊपर की तरफ चढ़ाया जाता है तो यह ध्वजारोहण कहलाता है। तबसे 15 अगस्त के दिन लाल किले की प्राचीर पर ध्वजारोहण होता है। जबकि 26 जनवरी राष्ट्रपति भवन के पास कर्तव्य पथ पर परेड से पहले झंडा फहराया जाता है। फ्लैग पोल पर पहले से ही तिरंगा ऊपर लगाकर बंधा हुआ होता है। इसके साथ अधिकतर फूलों की पंखुड़ियां भी लगी होती हैं। जब तिरंगा फहराया जाता है तो पुष्प वर्षा होती है।

कहानी 19 साल के एक गुमनाम देशभक्त की, जिन्हें भगत सिंह मानते थे अपना ‘गुरु’,शहीद करतार सिंह को भगत सिंह व अन्य कई अपना गुरु मानते थे।

स्वतंत्रता दिवस भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण दिन है। 15 अगस्त, 1947 को करीब 200 सालों के ब्रिटिश शासन को समाप्त करते हुए, देश को आज़ादी मिली। यह सभी भारतीयों के लिए बेहद गर्व का दिन है क्योंकि हम उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनकी अटूट देशभक्ति ने ब्रिटिश साम्राज्य को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। आज भी हम महात्मा गांधी, चंद्र शेखर आज़ाद,भगत सिंह,सुभाष चंद्र बोस, लाला लाजपत राय और कई अन्य प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानते हैं, पर ऐसे कई गुमनाम नायक हैं जिन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। ऐसे ही एक गुमनाम देशभक्त हैं करतार सिंह सराभा, जिन्होंने 19 साल की छोटी उम्र में अपने प्राणों की आहुति दे दी। करतार सिंह सराभा भगत सिंह समेत कई स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा बने, और भगत सिंह तो इन्हें अपना “गुरु” व आदर्श मानते थे। लाहौर षडयंत्र मामले में सराभा और 27 अन्य क्रांतिकारियों पर आरोप लगाया गया और उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी की सजा दे दी गई।

भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार

शहीद करतार सिंह का जन्म 24 मई,1896 को लुधियाना के सराभा नगर में एक जाट सिख परिवार में हुआ था। करतार सिंह ने अपने पिता को बचपन में ही खो दिया था और उनका पालन-पोषण उनके दादा ने किया था। करतार ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल से और मैट्रिक की पढ़ाई मिशन हाईस्कूल से पूरी की। 16 साल की उम्र में, उनके दादाजी ने उन्हें कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में केमेस्ट्री की पढ़ाई करने के लिए भेज दिया। सैन फ्रांसिस्को पहुंचने पर एक घटना ने करतार सिंह पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार देखा, वहां उन्हें (भारतीयों को) “गुलाम” कहा जाता था और उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता था। वह बर्कले में भारतीय छात्रों के नालंदा क्लब में शामिल हो गए और भारतीय अप्रवासियों, विशेषकर श्रमिकों के साथ दुर्व्यवहार से कोध्रित हो गए और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

गदर आंदोलन के प्रमुख सदस्य

पढ़ाई के दौरान वह गदर आंदोलन के प्रमुख सदस्य बने, जिसका उद्देश्य देश को ब्रिटिश शासन से आजाद कराना था। गदर पार्टी का गठन 21 अप्रैल, 1913 को ओरेगॉन में किया गया था, जिसके प्रभारी करतार सिंह गदर अखबार के पंजाबी संस्करण के प्रभारी थे। अखबार ने ब्रिटिश अत्याचारों को उजागर किया और प्रवासी भारतीयों में क्रांतिकारी विचारों को बढ़ावा दिया। बाद में, करतार सिंह भारत लौट आए और अन्य युवा क्रांतिकारियों के साथ मिलकर कोलकाता में जतिन मुखर्जी से मिले। मुखर्जी ने उन्हें रासबिहारी बोस से जोड़ा और उन्होंने पंजाब में क्रांति की योजना बनाई। अंग्रेजों को उनकी योजनाओं के बारे में पता लगने के बाद करतार सिंह के पीछे पड़ गए। इस दौरान अंग्रेजों ने कई गदरवादियों को गिरफ्तार किया इसके बावजूद उन्होंने अपने प्रयास जारी रखे।

गद्दार साथी की वजह से हुए गिरफ्तारी

21 फरवरी 1915 को करतार सिंह और वरिष्ठ नेताओं ने छावनियों पर हमला करने का प्लान बनाया, लेकिन एक उनके ही एक गद्दार साथी ने अंग्रेजों को पहले ही इसकी जानकारी दे दी, जिसके बाद कई गिरफ्तारियां हुईं। करतार सिंह कैद से बच निकले, पर 2 मार्च, 1915 को भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए उकसाने की कोशिश करते हुए गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें लाहौर षडयंत्र मामले में अन्य गदरवादियों के साथ मुकदमे का सामना करना पड़ा। सलाह दिए जाने के बावजूद, 19 वर्षीय शहीद ने मुकदमे के दौरान अपना बचाव करने का फैसला नहीं किया। जज ने कहा कि सिंह को अपने द्वारा किए गए कार्यों पर बहुत गर्व था और उसने कोई पछतावा नहीं दिखाया, उसे “सभी विद्रोहियों में सबसे खतरनाक” माना जाए। इसके बाद उन्हें मृत्यु तक फांसी की सज़ा सुना दी गई। 16 नवंबर, 1915 को करतार सिंह सराभा एक मुस्कान,आंखों में चमक और अपने द्वारा रचित देशभक्ति के गीत गाते हुए फांसी पर चढ़ गए। आजादी का

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