ओबीसी को कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका व निजी क्षेत्र में समानुपातिक कोटा की माँग। ईडब्ल्यूएस कोटा देने के बाद ओबीसी का कास्ट सेन्सस जरूरी।
लखनऊ। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि नरसिंह राव की सरकार ने 1991-92 में आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण कोटा देने का प्रयास किया था।जिसे मण्डल कमीशन के सम्बंध में इन्दिरा साहनी वनाम भारत सरकार मामले में 9 न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने 16 नवम्बर,1992 को 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण कोटा को संवैधानिक बताते हुए वैध ठहराते हुए निर्णय दिया, दूसरी तरफ आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत सवर्ण कोटा को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।
उन्होंने कहा कि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है,बल्कि सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण का स्पष्ट उल्लेख है।केन्द्र की भाजपा सरकार ने बिना किसी आयोग की सिफारिश के 103वां संविधान संशोधन करते हुए 48 घण्टे में ही सवर्ण जातियों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा दे दिया।उन्होंने कहा कि आश्चर्यजनक है कि 9 जजों के निर्णय को 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से वैध करार दे दिया।कहा कि जब संविधान व उच्चतम न्यायालय के निर्णय से जाते हुए 10 प्रतिशत सवर्ण कोटा देने के बाद मण्डल कमीशन के अनुसार 52 प्रतिशत ओबीसी को समानुपातिक कोटा देने व ओबीसी का कास्ट सेन्सस कराने में देरी नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी 2021 के सेन्सस को जातिगत आधार पर कराने की गृह मंत्रालय से सिफारिश किया था,लेकिन ग्रह राज्यमंत्री नित्यानन्द राय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर जातिगत जनगणना कराने से मना कर दिया।निषाद ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने को बार बार पिछड़ी जाति का बताते हैं,लेकिन इनकी सरकार में पिछड़ों के साथ हर स्तर पर सामाजिक अन्याय व हकमारी हो रही है।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल के कैबिनेट में एकमात्र ओबीसी का मंत्री है।राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग व उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग वर्षों से अध्यक्ष विहीन है,आखिर क्यों?उन्होंने मंडल आयेग की अनुशंसाओ को पूर्णतः लागू करते हुए राज्यवार विधानसभाओं में सीटें और लोकसभा में 353 सीटें आरक्षित किये जाने,अनुच्छेद-16(4) के अनुसार ओबीसी को कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका व निजी क्षेत्र के संस्थानों, उपक्रमों में समानुपातिक आरक्षण देने की मांग की है।
ओबीसी आरक्षण में असंवैधानिक क्रीमीलेयर की शर्तों में साजिशन सैलरी, कृषि आय को जोड़कर भविष्य में ओबीसी वर्ग की बहुत बड़ी आबादी को ओबीसी आरक्षण से बाहर किये जाने की सरकार की मंशा अनुरूप बी पी शर्मा रिपोर्ट पर रोक लगाते हुए असंवैधानिक क्रीमीलेयर को हटाया जाए।उन्होंने कहा कि लगातार शासकीय विभागों व सरकारी उपक्रमों के निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल बंद करने की मांग किया है।
निषाद ने कहा कि तमिलनाडु को छोड़कर देशभर में ईडब्ल्यूएस प्रक्रिया लागू होन के पश्चात 50% आरक्षण सीमा की बाध्यता समाप्त होने के बाद 54% से अधिक संख्या वाले पिछड़े वर्ग को सरकार द्वारा दिए गए 27% आरक्षण के विरूद्ध प्रस्तुत याचिकाओं में शासन का पक्ष मजबूती से नहीं रखा जा रहा है।बिहार,मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,गुजरात में पंचायतों में आरक्षण कोटा को भाजपा द्वारा ही न्यायपालिका में फँसाया गया है।
भाजपा ने दिल्ली नगर निगम चुनाव में भी आवक का कोटा शून्य कर ओबीसी प्रतिनिधित्व शून्य करने की साज़िश किया है।संविधान के अनु. 16 (4) के तहत शासकीय, अशासकीय उपक्रमों व न्यायपालिका सहित समस्त क्षेत्रों में 54% ओबीसी आरक्षण लागू कराया जाना सुनिश्चित करने की मांग किया है।ओबीसी वर्ग के पिछड़े, अतिपिछड़े कर्मचारियों-अधिकारियों, अधिवक्ताओं के साथ सामान्य वर्ग के अधिकारियों द्वारा जातिगत भेदभाव के कारण शोषण, अन्याय अत्याचार के बढ़ते मामलों पर रोक लगाने के लिये ठोस कदम रामराजी सरकार नहीं उठा रही।
हर भर्ती परीक्षा में गलत तरीका अपना कर मेधावी ओबीसी को ओवरलैपिंग के बाद भी ओबीसी में गणना कर ओबीसी के 27 प्रतिशत कोटा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।सरकार स्वामीनाथन आयोग रिपोर्ट को लागू करने में भी हीलाहवाली कर रही है।उन्होंने कोलेजियम सिस्टम के द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को समाप्त कर न्यायिक सेवा आयोग का गठन कर उसके माध्यम से परीक्षा के द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्तियां की माँग किया है।उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार में हर स्तर पर पिछड़ी जातियों की खुलेआम हकमारी की जा रही है लेकिन ओबीसी के सांसद,विधायक,मंत्री निजस्वार्थ में चुप्पी साधे हुए हैं।उन्होंने मण्डल मसीहा बीपी मण्डल,पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह व अर्जुन सिंह को भारतरत्न देने व संसद परिसर में इनकी प्रतिमा स्थापित कराने की भी माँग किया है।