मैटरनिटी बेनिफिट अवश्य दिया जाना चाहिए, भले ही लाभ की अवधि संविदा रोजगार की अवधि से अधिक हो जाए-सुप्रीम कोर्ट मैटरनिटी बेनिफिट अवश्य दिया जाना चाहिए-सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (17 अगस्त) को कहा कि मैटरनिटी बेनिफिट दिया जाना चाहिए, भले ही लाभ की अवधि संविदात्मक रोजगार की अवधि से अधिक हो। मैटरनिटी बेनिफिट संविदात्मक रोजगार की अवधि से आगे बढ़ सकते हैं। अदालत ने नियोक्ता को मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट, 1961 की धारा 5 और 8 के अनुसार उपलब्ध मैटरनिटी बेनिफिट का भुगतान करने का निर्देश दिया और भुगतान 3 महीने के भीतर किया जाना है। अदालत ने रेखांकित किया कि क़ानून स्वयं रोजगार की अवधि से परे लाभों की निरंतरता की कल्पना करता है, यह दावा करते हुए कि एक्ट की धारा 5 के तहत निर्धारित मेडिकल बेनिफिट की पात्रता रोजगार की अवधि की सीमा से परे है।
अदालत ने कहा,
“मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट, 1961 की धारा 12(2(ए)) उस कर्मचारी के लिए भी हकदारी पर विचार करती है, जिसे प्रेग्नेंसी के दौरान बर्खास्त/मुक्त कर दिया जाता है। इस प्रकार, कानून में ही रोजगार की अवधि से अधिक अवधि के लिए लाभ देने का प्रावधान है। क़ानून में जो विचार किया गया कि वह मेडिकल बेनिफिट का अधिकार है, जो एक्ट की धारा 5 के तहत शर्तों की पूर्ति से प्राप्त होता है और लाभ रोजगार की अवधि से आगे भी जा सकता है और यह रोजगार की अवधि के साथ समाप्त नहीं होता है।
अदालत ने पिछले फैसलों का भी हवाला दिया, जिन्होंने मैटरनिटी बेनिफिट बढ़ाने के सिद्धांत को बरकरार रखा और कहा कि एक्ट की धारा 27 अन्य कानूनों और समझौतों को खत्म कर देती है। कोर्ट ने कहा कि एमसीडी बनाम महिला कर्मचारी मामले में 2 जजों की बेंच ने मातृत्व लाभ दिया। दीपिका सिंह बनाम कैट के मामले में भी यही दृश्य परिलक्षित होता है।
कोर्ट ने कहा
“अनुपात के प्रकाश में और हमारी राय में धारा 27 की अधिभावी प्रकृति के संबंध में हाईकोर्ट ने यह मानकर कानून में गलती की कि अपीलकर्ता 11 दिनों से अधिक मैटरनिटी बेनिफिट की हकदार नहीं है।”
जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस एसवीएन भट्टी की 3-न्यायाधीशों की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक संविदात्मक समझौते की समाप्ति का हवाला देते हुए मैटरनिटी बेनिफिट को केवल 11 दिन की अवधि तक सीमित कर दिया गया।
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित एडवोकेट सौरव गुप्ता ने तर्क दिया कि एक बार अपीलकर्ता एक्ट की धारा 5(2) के तहत शर्त पूरी कर लेता है तो संविदा कर्मचारी पूर्ण लाभ का हकदार होगा, जैसा कि इसमें विचार किया गया। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि अपीलकर्ता पिछले 1 वर्ष के दौरान 180 दिनों से अधिक काम करने की आवश्यकता को भी पूरा करता है।
उन्होंने एक्ट की धारा 5(3) का इस्तेमाल किया, जो मैटरनिटी लीव के लिए अधिकतम 26 सप्ताह की अवधि निर्धारित करती है। एक्ट के व्यापक दायरे पर जोर देते हुए उसने तर्क दिया कि यह नवजात बच्चों तक भी अपनी सुरक्षा बढ़ाता है, रोजगार अवधि के बाद भी सहायता प्रदान करने के विधायी इरादे को रेखांकित करता है।
उन्होंने एक्ट की धारा 27 का उल्लेख किया और दृढ़ता से कहा कि यह प्रावधान समझौतों पर हावी है और क़ानून के तहत अर्जित अधिकारों को बरकरार रखा जाना चाहिए, भले ही रोजगार अनुबंध समाप्त हो जाए।
बेंच द्वारा ऑप्ट-आउट क्लॉज का सवाल उठाया गया, जिससे अपीलकर्ता को यह स्पष्ट करना पड़ा कि नियोक्ताओं के पास अतिरिक्त लाभ देने का विशेषाधिकार है, लेकिन मौजूदा अधिकारों को संरक्षित किया जाना चाहिए।
अदालत ने मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट की योजना को समझने की कोशिश की, विशेष रूप से महिला को उपलब्ध उपाय ने उसके उचित लाभ से वंचित कर दिया। खंडपीठ ने एक्ट की धारा 17 का हवाला दिया, जिसमें निरीक्षक की भूमिका का खुलासा किया गया, लेकिन यह भी कहा कि “आश्चर्य की बात है कि इसमें यह उल्लेख नहीं है कि निर्धारित प्राधिकारी कौन है।”
अपीलकर्ता ने जवाब दिया कि आमतौर पर रिट याचिकाएं हाईकोर्ट के समक्ष दायर की जाती हैं। इस मामले में वे कैट और फिर दिल्ली हाईकोर्ट गए। आगे बढ़ते हुए अपीलकर्ता ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए संसदीय चर्चाओं का हवाला दिया
जस्टिस बोस ने हस्तक्षेप किया और कहा,
“हम एक्ट के पीछे के महत्व और प्रेरणा पर पहले से ही आपके साथ हैं।” फिर अपीलकर्ता ने एमसीडी दिल्ली बनाम महिला श्रमिक मामले का हवाला दिया, जिसने दैनिक वेतन भोगी मजदूरों को मैटरनिटी बेनिफिट दिया। उसने तर्क दिया कि “इस एक्ट में मैटरनिटी बेनिफिट का दावा करने के लिए केवल पूर्व-आवश्यकता दी गई।”
अदालत के समक्ष निर्धारण का मुख्य मुद्दा यह है कि क्या मैटरनिटी बेनिफिट संविदा कर्मचारियों पर लागू होंगे यदि लाभ की अवधि संविदा अवधि से अधिक हो जाती है?
प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट रचिता गर्ग ने तर्क दिया कि एक बार अनुबंध की अवधि समाप्त हो जाने के बाद उसे एक्ट, 1961 का लाभ देकर इसका काल्पनिक विस्तार नहीं किया जा सकता। वह जिस भी लाभ की हकदार होगी वह अनुबंध अवधि के भीतर होना चाहिए और वह उस अवधि से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है।
जस्टिस संजय कुमार ने उनसे पूछा
“एस पर कोई चर्चा नहीं हुई है। 12(2(ए) बिल्कुल? आप उस प्रावधान से कैसे छुटकारा पा सकते हैं? बर्खास्तगी व्यापक शब्द है, यहां तक कि बर्खास्तगी भी रोजगार की समाप्ति के बाद भी सभी लाभ प्राप्त करने से वंचित नहीं होगी। यहां केवल उसका कार्यकाल समाप्त हो गया है और वह बहुत बेहतर स्थिति में है।”
प्रतिवादी ने जवाब दिया
“अगर हम लाभ देते हैं तो वे हमारे पास आएंगे और कहेंगे कि अनुबंध बढ़ा दिया गया।” बेंच ने टिप्पणी की, “वह ऐसा भी नहीं मांग रहे हैं। इस मामले में ऐसा कोई रास्ता नहीं है, जिससे आप वैधानिक योजना से छुटकारा पा सकें।”
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता एनसीटी, दिल्ली द्वारा संचालित जनकपुरी अस्पताल में अनुबंध के आधार पर पैथोलॉजी डॉक्टर के रूप में शामिल हुई। उसका अनुबंध हर साल अधिकतम 3 साल तक के लिए नवीनीकरण के अधीन था। 24 मई को उसने एक्ट, 1961 की धारा 5 के संदर्भ में 1 जून 2017 से मैटरनिटी लीव के लिए आवेदन किया। हालांकि, नियोक्ता ने इस आधार पर केवल 11 जून तक लाभ प्रदान किया कि 3 साल की अनुबंध अवधि समाप्त होने के बाद वह उक्त क़ानून के तहत किसी भी लाभ से वंचित हो गई।अपीलकर्ता ने कैट और दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष उक्त कार्रवाई को असफल रूप से चुनौती दी। मैटरनिटी बेनिफिट अवश्य दिया जाना चाहिए-सुप्रीम कोर्ट
केस टाइटल: कविता यादव बनाम सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय