सनातन संस्कृति के अनुरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी माताजी का अंतिम संस्कार किया। अर्थी को कंधा दिया, शव वाहन में बैठे और चिता से निकलने वाली ऊर्जा भी ग्रहण की।
एस. पी. मित्तल
नरेंद्र मोदी आज जिस पद पर आसीन है, उसे दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। देश में प्रधानमंत्री का पद सबसे बड़ा होता है। यदि प्रधानमंत्री के परिवार में कोई कार्यक्रम हो तो बड़े बड़े लोग शामिल होने के लिए उत्सुक रहते हैं। लेकिन मोदी ने 30 दिसंबर को सादगी के साथ अपनी 100 वर्षीय माताजी हीराबेन का अंतिम संस्कार गुजरात के गांधी नगर स्थित सार्वजनिक श्मशान स्थल पर कर दिया। 30 दिसंबर को बहुत से राज्यपाल, मुख्यमंत्री और बड़े अफसर जब सुबह 9 बजे सो कर उठे होंगे, तब मोदी अपनी माताजी का अंतिम संस्कार कर रहे थे। हीराबेन का निधन 30 दिसंबर सुबह तीन बजे हुआ। सात बजे मोदी ने ट्वीटर पर खुद सूचना दी और तुरंत दिल्ली से गांधी नगर पहुंच गए। गांधी नगर के घर से जब शव यात्रा निकली तो मोदी ने स्वयं कंधा दिया और उस वाहन में बैठे जिसमें शव रखा गया था।
सनातन संस्कृति में माना जाता है कि शरीर से आत्मा निकलने के बाद शरीर तभी पंचतत्व में विलीन होता है, जब शरीर को अग्नि को समर्पित किया जाए। अंतिम संस्कार में मोदी ने सनातन संस्कृति का पूरी तरह पालन किया। जब श्मशान स्थल पर हीराबेन के शरीर से आग की लपटें निकल रही थीं, तब भी मोदी सामने खड़े थे। मोदी शायद उस ऊर्जा को ग्रहण कर रहे थे जो एक मां के शरीर से निकल रही थी। खुद मोदी ने कई बार भावुक होकर अपनी मां हीराबेन की तकलीफों के बारे में बताया है। हीराबेन ने दूसरों के घरों में बर्तन साफ कर परिवार को पाला। कहा जा सकता है कि हीराबेन का जीवन संघर्षपूर्ण रहा। इसमें कोई दो राय नहीं कि देशा की मौजूदा विपरीत परिस्थितियों में भी मोदी सफलतापूर्वक प्रधानमंत्री के पद पर काम कर रहे हैं। लेकिन मोदी ने भारत की सनातन संस्कृति का हमेशा ख्याल रखा है। यह हर भारतीय के लिए गर्व की बात होनी चाहिए।
सरकारी कार्यक्रमों में भी भाग लिया