दस नवम्बर को मैं अस्सी साल का हो गया। यद्यपि भारतीय तिथि के अनुसार गत तीन नवम्बर को छोटी दीपावली वाले दिन मेरी ८०वीं वर्षगांठ थी। उससे एक दिन पहले दो नवम्बर को मेरी पत्रकारिता के साठ वर्ष पूरे हुए थे।विगत आठ दशकों में मैंने हर तरह के रंग देखे। बचपन में जिन्ना एवं उसकी मुसलिम लीग के भयंकर अत्याचार देखे। फिर देश को आजाद होते देखा। अपने देश को दो टुकड़ों में बंटते देखा, जिसमें आधुनिक युग में विश्व का सबसे बड़ा अमानवीय नरसंहार हुआ। देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ तो उनके मानसिक गुलामों ने देश को अंग्रेजों की मानसिक गुलामी से ग्रस्त कर दिया। अपने गौरवपूर्ण इतिहास पर गर्व करने के बजाय देशवासी षड्यंत्र का शिकार होकर देश के स्वर्णिम अतीत की महानता को भूलकर उस पर शर्म करने लगे और उससे घृणा करने लगे।
आज बचपन के वे दिन याद आ रहे हैं, जब मेरे जन्मदिन पर पूजा कराने पंडित जी आते थे। उस पूजा में मिठाई तो खाने को मिलती ही थी, एक रस्म यह कराई जाती थी कि मुझे एक टोकरे में बिठाकर टोकरा घसीटा जाता था। उस रस्म में बड़ा मजा आता था और इसलिए उसकी प्रतीक्षा रहती थी। उस दिन घर में पकवान बनते थे, जो बालबुद्धि को एहसास कराते थे कि जन्मदिन का कुछ विशेष महत्व है। बचपन के बाद जन्मदिन मनाया जाना पता नहीं कब बंद हो गया। मेरी जन्मदिन मनाने में रुचि नहीं रही तथा प्रायः मुझे तो स्मरण भी नहीं रहता था।
इलाहाबाद(प्रयागराज) में जब मैं यूइंग क्रिश्च्यन काॅलेज(ईसीसी) में पढ़ता था तो कुछ दोस्त आपस में जन्मदिन मनाया करते थे। जिसका जन्मदिन होता था, वह मित्रमंडली को सिविललाइन के ‘लकी’ रेस्तरां में पार्टी दिया करता था। पैलेस सिनेमाघर के सामने ‘नाज’ रेस्तरां था, जिसमें भी हम जाया करते थे। उस रेस्तरां के बाहर सफेद बोर्ड पर बड़े कलात्मक ढंग से लाल रंग में ‘नाज’ लिखा हुआ था। अब वह रेस्तरां वहां नहीं है। गत वर्ष मैंने ‘लकी’ में उस बेयरे को देखा, जो हमारे विद्यार्थी जीवन के समय हमारी तरह लड़का था और अब उम्रदराज हो गया है। मैंने उसका चित्र खींचा और जब अगली बार प्रयागराज गया तो फ्रेम किया हुआ वह चित्र उसे भेंट किया, जिससे वह बड़ा खुश हुआ। मैंने उसे ईनाम भी दिया।
जन्मदिन पर हम मित्रगण कभी-कभी पिकनिक मनाने अथवा नौकाविहार करने निकल जाया करते थे। उस समय हमारे जन्मदिन के आयोजन में केक या ‘हैपी बर्डथे टू यू’ नहीं चलता था, केवल कतिपय ईसाई परिवारों में उसका चलन था। इसके बजाय हमारी गायन, वादन एवं नृत्य की महफिल जमा करती थी। किशोर कुमार के हम सभी दीवाने थे।मेरे बचपन में आज की तरह ‘हैपी बर्थडे टू यू’ का रिवाज नहीं था और केवल कतिपय ईसाई परिवारों में ऐसा देखा जाता था। उस समय अन्य कोई वैसा स्वांग करता तो बड़ा हास्यास्पद प्रतीत होता। अब तो उस तरह के स्वांग अनिवार्य फैशन हो गए हैं तथा जन्मदिन ‘बर्थडे’ के रूप में परिवर्तित हो गया है। उस दिन अब पूजा नहीं होती है, बल्कि केक सजाया जाता है, जिस पर लगी मोमबत्तियां फूंक मारकर बुझाई जाती हैं, जिसके बाद छुरी से बकरे की तरह केक काटा जाता है। केक काटकर उसका जूठा टुकड़ा आपस में खायाखिलाया जाता है। तरह-तरह के गुब्बारे फोड़े जाते हैं।
अंग्रेजों की अंधी नकल करने में हम हीनता की भावना से इतना अधिक ग्रस्त हो गए हैं कि यह भी नहीं सोचते कि हम जो नकल कर रहे हैं, वह कितनी अधिक अनुचित है। भारतीय परम्परा में दीपक की लौ फूंक मारकर नहीं बुझाई जाती है, बल्कि षुभ अवसर पर दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है। ‘हैपी बर्थडे’ में तो केक पर लगी हुई मोमबत्तियों को बुझाकर भारी अपशकुन किया जाता है।पश्चिम के अंधानुकरण में हम पागल की हद तक पहुंच गए हैं। अब कुछ मंदबुद्धि लोग हनुमान जयंती, राम नवमी एवं कृष्ण जन्माष्टमी पर हनुमान जी, भगवान राम एवं भगवान कृष्ण का ‘बर्थडे’ मनाकर केक काटने की हिमाकत करने लगे हैं। आश्चर्य इस बात का है कि इस बेहूदी एवं अपशकुन वाली हरकत पर कोई आपत्ति नहीं करता है। विडम्बना है कि अब तमाम बड़े-बूढ़े भी केक काटकर अपना ‘हैपी बर्थडे’ मनाने लगे हैं। भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले अनेक नेताओं को अपना अथवा अपने बच्चों का जन्मदिन केक काटकर ‘हैपी बर्थडे टू यू’ के रूप में मनाते देखा जा रहा है। ऐसा करने पर मैं भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं को फटकार लगा चुका हूं।
कुछ लोग तर्क देते हैं कि बच्चे पष्चिमी तरीके से ‘बर्थडे’ मनाने की जिद करते हैं। धन्य हैं ऐसे लोग, जो बच्चों की गलत जिद के आगे झुककर उनमें अच्छे संस्कार डालने के बजाय बुरे संस्कार भरते हैं! बच्चों का दुलार करने का यह अर्थ नहीं कि उन्हें संस्कारहीन बनाया जाए। गलत दुलार ही संतानों को गलत संस्कार देने का सबसे बड़ा कारण होता है और वे बच्चे गलत दिशा में चले जाते हैं। आर्यन खान का उदाहरण इसका ज्वलंत उदाहरण है, जिसके पिता शाहरूख खान ने साक्षात्कार में कहा था कि वह चाहते हैं कि उनका बच्चा बड़ा होकर लड़कियों के पीछे भागे और लोग इस बात की उनसे आकर शिकायत किया करें। शाहरूख खान को अपने उस दुलार का परिणाम भोगते सबने देख लिया है।केक में अंडा मिला होता है, इसलिए केक काटकर शाकाहारी लोग भी मांसाहार ग्रहण कर लेते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि शाकाहारी केक भी बनते हैं। मैं इसकी वात्विकता नहीं जानता, किन्तु एक सज्जन ने यह अच्छी टिप्पणी की कि जिन्हें केक काटे बिना जन्मदिन का आयोजन अधूरा लगता है, वे खोये का केक बनवा लिया करें। इससे पश्चिम की नकल की उनकी हवस आसानी से पूरी हो जाएगी। लोगों का यह कथन सही है कि पश्चिम की नकल करने में हम अपना होशोहवास खो बैेठे हैं। समय की पाबंदी, अनुशासन आदि पश्चिम की जो अच्छी बातें हैं, उनका अनुसरण करने के बजाय हम उनकी खराब बातों की नकल करने की होड़ में लगे हैं।
हमारे यहां कामचोरी और घूसखोरी की इतनी बुरी लत घर कर गई है कि पूरा समाज उससे भयंकर रूप से त्रस्त है। इन बुराइयों ने संक्रामक रोग की तरह हमारे समाज को जकड़ लिया है। समय की पाबंदी न करना हमारे यहां चलन हो गया है तथा बड़ी बेशर्मी से ‘इंडियन टाइम’ का प्रयोग किया जाता है। यदि हमें पश्चिम की सही बातों का अनुसरण करना है तो अपने यहां इन शर्मनाक बुराइयों का अंत करना होगा। वैसे, तथ्य यह है कि अनुशासन, ईमानदारी, परिश्रम, समय की पाबंदी आदि भारतीय संस्कृति की ही विशेषताएं रही हैं। वास्तविकता है कि जिस समय हमारा देश सभ्यता के शिखर पर पहुंचा हुआ था, उस समय पश्चिमी देश पूरी तरह असभ्य एवं जाहिल थे। विदेशी आक्रांताओं के शिकार होकर हम अपनी अच्छाइयों को भूलते गए और आज चारित्रिक पतन के शिखर पर पहुंच गए हैं। पश्चिम का भौतिकवाद हमारी आत्मा का दमन कर रहा है।