

भारत में उद्योग, नवाचार और मानवीय मूल्यों की जो मजबूत परंपरा खड़ी हुई, उसकी नींव रखने वालों में सबसे अग्रणी नाम जे.आर.डी. टाटा का है। उन्होंने न सिर्फ टाटा समूह को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया, बल्कि देश को एक आधुनिक, आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत की पहली वाणिज्यिक उड़ान से लेकर उद्योग-जगत में नैतिकता की मिसाल तक—जे.आर.डी. टाटा वास्तव में भारत के उद्यम-पुरोधा थे। जे.आर.डी. टाटा की कहानी भारत में विमानन, उद्योग और परोपकार के तीव्र विकास की प्रतीक है। वे न केवल भारत के पहले लाइसेंसधारी पायलट बने, बल्कि देश को उसकी पहली वाणिज्यिक एयरलाइंस—टाटा एयरलाइंस (जो आगे चलकर एयर इंडिया बनी) —की सौगात दी। उनके नेतृत्व में टाटा समूह एक विशाल औद्योगिक साम्राज्य में बदल गया, जिसने देश की अर्थव्यवस्था, विज्ञान, तकनीक और रोजगार के नए आयाम खोले। दूरदर्शिता, अनुशासन और सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति उनकी अडिग निष्ठा ने उन्हें भारत का सबसे सम्मानित उद्योगपति और मानवतावादी बनाया।
29 नवंबर वह दिन है, जब आधुनिक भारत की बुनियाद रखने वाली औद्योगिक हस्तियों में सर्वोपरि, महान् उधोगपति तथा टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा मोटर्स, टाइटन इंडस्ट्रीज, वोल्टास और एअर इंडिया के संस्थापक जे. आर. डी. टाटा(जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा)का निधन हो गया था।वे हमारे देश के उन महान व्यक्तित्वों में से एक थे, जिन्होंने उद्योग, विमानन, विज्ञान और सामाजिक कल्याण हर क्षेत्र में देश को एक नई दिशा दी।उनको भारतीय उद्योग जगत में आधुनिकता और मानवीय मूल्यों का प्रतीक माना जाता है। भारत की पहली वाणिज्यिक एयरलाइन टाटा एयरलाइंस (आज की एयर इंडिया) की स्थापना का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। उनकी अगुवाई में टाटा समूह ने न सिर्फ व्यापारिक सफलता हासिल की, बल्कि कर्मचारियों के हित और सामाजिक विकास को भी सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उल्लेखनीय है कि जेआरडी टाटा को वर्ष 1992 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था,जो किभारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है।यह पुरस्कार उन्हें उद्योग, नागरिक उड्डयन और सामाजिक कार्यों में उनके योगदान के लिए दिया गया था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वह भारत रत्न पाने वाले पहले उद्योगपति थे।
उन्हें 1955 में पद्म भूषण भी प्रदान किया गया।उन्हें एफएआई गोल्ड एअर मेडल,यूएनओ के एविएशन सम्मान, और फ्रांस का लीजन डी’होनूर भी मिला। यहां पाठकों को बताता चलूं कि उनका जन्म 29 जुलाई 1904 को पेरिस, फ्रांस में हुआ था तथा मृत्यु 29 नवम्बर 1993 (उम्र 89 वर्ष) जिनेवा, स्विट्ज़रलैण्ड में हुई। उनके माता-पिता का नाम रतनजी दादाभाई टाटा सुजैन ‘सूनी’ ब्रियरे था तथा थेल्मा टाटा उनकी जीवनसाथी थीं।विकीपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार उनके पास फ्रांस (1904–1928) तथा भारत (1929–1993) की नागरिकता थी। पाठकों को बताता चलूं कि फ्रेंच उनकी पहली भाषा थी, और वे भारत के उन गिने-चुने उद्योगपतियों में रहे जो फ्रेंच, अंग्रेज़ी और गुजराती तीनों भाषाएँ सहजता से बोलते थे। उनके नाम में ‘दादाभाई’ शब्द उनके मामा दादाभाई नौरोजी के सम्मान में जोड़ा गया था। बहुत कम लोग जानते हैं कि वे भारतीय वायुसेना में ‘आनरेरी एयर कमोडोर’ के पद से सम्मानित किए गए थे, क्योंकि भारत की नागरिक उड्डयन नीति के निर्माण में उनका योगदान असाधारण था।जेआरडी टाटा का एक अनोखा शौक था-पत्र पढ़ना और लिखना।वे हर साल अपने कर्मचारियों के कुछ पत्र खुद पढ़ते और कई का जवाब हाथ से लिखकर देते थे। यह उनकी ‘पीपल-फर्स्ट’ सोच का आधार था।
उन्होंने टाटा समूह के भीतर महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश, कर्मियों के लिए मेडिकल सुविधाएं,कर्मचारियों के प्रॉविडेंट फंड, लाभांश का वितरण, वर्कर्स’ वेलफेयर स्कीम,वर्कर्स’ इंस्योरेंस,टाटा स्टील में 8 घंटे की शिफ्ट (भारत में पहली बार),उद्योग में जन-कल्याण मॉडल का नया खाका जैसी व्यवस्थाएँ उस समय शुरू कर दी थीं, जब भारत में इनकी कोई कानूनी बाध्यता भी नहीं थी।उन्होंने फ्रांस, जापान और भारत में शिक्षा पाई तथा उन्हें शुरुआत से ही तकनीक, विमानन और प्रबंधन में गहरी रुचि थी। सबसे दिलचस्प बात यह है कि जेआरडी टाटा कभी कॉलेज ग्रैजुएट नहीं थे, फिर भी वे विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रबंधन के इतने गहरे जानकार बने कि उन पर कई विदेशी विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधियाँ प्रदान कीं। वे भारत के पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट थे। गौरतलब है कि 1930 में भारत सरकार ने पायलट लाइसेंस जारी करने शुरू किए थे और जे.आर.डी. टाटा लाइसेंस संख्या ‘1’ के साथ भारत के पहले पायलट बने।1932 में उन्होंने भारत की पहली निजी और वाणिज्यिक एयरलाइन टाटा एअर मेल शुरू की।
इसकी पहली उड़ान कराची से मुंबई तक थी,जो स्वयं जे.आर.डी. टाटा ने उड़ाई थी।बाद में यही एयरलाइन 1946 में एअर इंडिया बनी और 1948 में सरकार ने इसे राष्ट्रीय एयरलाइन का दर्जा दिया। सरकारीकरण के बाद भी जे.आर.डी. लंबे समय तक एयर इंडिया के चेयरमैन रहे।1938 में मात्र 34 वर्ष की आयु में वे टाटा सन्स के चेयरमैन बने।उनके नेतृत्व में टाटा समूह 13 कंपनियों से बढ़कर 70 से अधिक कंपनियों का विशाल औद्योगिक परिवार बना। उनके नेतृत्व में गठित प्रमुख कंपनियों में क्रमशः टाटा मोटर्स (पहले इसे टेल्को कहा जाता था),टाटा कैमिकल्स,टाटा टी, टाटा एअरलाइंस/एअर इंडिया,टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज(टीसीएस, औपचारिक रूप से 1968 में, पर इसकी नींव उनके ही समय में रखी गई थी) आदि शामिल हैं। उनके समय में टाटा स्टील का भी विस्तार हुआ।उनकी सोच केवल लाभ कमाने तक सीमित नहीं थी, और जैसा कि ऊपर भी बता चुका हूं कि, बल्कि नेशन फर्स्ट (देश पहले) सिद्धांत उनकी हर नीति का आधार था।वे उद्योग को केवल आर्थिक मशीन नहीं बल्कि एक सामाजिक संस्था मानते थे।उनका विचार था कि ‘जब आप कोई उद्योग चलाते हैं, तो आप केवल एक कंपनी नहीं चलाते, बल्कि समाज के जीवन स्तर को भी प्रभावित करते हैं।
‘उन्होंने टाटा समूह को कारपोरेट सोशल रेस्पान्सिबिलिटी(सीएसआर) का अग्रदूत बनाया। वास्तव में वे वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के पैरोकार थे तथा वे भारत में विज्ञान और शोध के बड़े समर्थक थे।उनके नेतृत्व में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च(टीआइएफआर),टाटा मैमोरियल हास्पीटल,जो कि कैंसर इलाज में अग्रणी है, बने। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के विकास में उनका विशेष योगदान रहा है तथा एनसीपीए यानी कि नेशनल सेंटर फॉर परफोर्मिंग आर्ट्स भी उनके नेतृत्व में बना है। कहना ग़लत नहीं होगा कि वे अत्यंत सरल जीवन जीते थे-न कोई चमक-दमक, न सुरक्षा तामझाम। वे सार्वजनिक स्थानों पर लाइन में लगकर टिकट खरीदने के लिए भी जाने जाते थे, और यही सादगी उन्हें असाधारण बनाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो उनका व्यक्तिगत स्वभाव बहुत ही सरल,अत्यंत सादा जीवन, परिश्रमी और अनुशासित था।निर्णय लेते समय वे अत्यधिक दूरदर्शी थे तथा कर्मचारियों से सीधा संवाद करते थे।उनका मानना था कि ‘कर्मचारी परिवार होते हैं—मालिक नहीं, संरक्षक होते हैं।’ इस संबंध में पाठकों को बताता चलूं कि एक बार की बात है कि टाटा स्टील में एक कर्मचारी की दुर्घटना में मृत्यु हो गई। कंपनी के नियमों के अनुसार उसके परिवार को कुछ सहायता मिलनी थी।
जे.आर.डी. ने दस्तावेज़ देखे और पूछा: क्या उसके परिवार की जिंदगी इससे चल जाएगी? कहा गया- ‘शायद मुश्किल से।’ तुरंत आदेश दिया गया-‘उसकी पत्नी को स्थायी नौकरी दें और बच्चों की शिक्षा टाटा फंड से होगी।’उस महिला ने बाद में कहा-‘मेरे बच्चों का जीवन जे.आर.डी. ने बदला, उन्होंने केवल नियम नहीं—हृदय से निर्णय लिया।’ वास्तव में यह दर्शाता है कि वे मानवता के पुजारी थे। इतना ही नहीं, वे समय और गुणवत्ता के प्रति अत्यधिक सख्त थे। उनके बारे में टाटा कर्मचारियों का कहना था कि-‘जे.आर.डी. टाटा बॉस नहीं, परिवार के मुखिया की तरह थे।’वे एक ऐसे व्यक्तित्व थे जो भारत को एक खुशहाल देश बनाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने एक बार यह बात कही थी कि-‘मैं नहीं चाहता कि भारत एक आर्थिक महाशक्ति बने। मैं चाहता हूँ कि भारत एक खुशहाल देश बने।’ यह दिखाता है कि उनकी सोच किसी सामान्य जन से हटकर और अलग थी। वे कहा करते थे कि सामान्य लोगों में भोजन की भूख होती है, असामान्य लोगों में सेवा की भूख होती है।
उद्यम की सफलता के बारे में उनका विचार था कि-‘अच्छे मानवीय संबंध न केवल महान व्यक्तिगत पुरस्कार लाते हैं बल्कि किसी भी उद्यम की सफलता के लिए आवश्यक हैं।’उनका यह मानना था कि भौतिक दृष्टि से कोई भी सफलता या उपलब्धि तब तक सार्थक नहीं है जब तक कि वह देश और उसके लोगों की जरूरतों या हितों की पूर्ति न करे और निष्पक्ष और ईमानदार तरीकों से हासिल न की जाए। अंत में यही कहूंगा कि जे.आर.डी. टाटा केवल उद्योगपति ही नहीं थे, बल्कि आधुनिक भारत के निर्माण में गहरा योगदान देने वाले दूरदर्शी राष्ट्र-निर्माता थे।टाटा जैसे व्यक्तित्व से हम सभी को यह प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलता है कि विनम्रता नेतृत्व की पहली शर्त है तथा लाभ से अधिक महत्वपूर्ण नैतिकता और इंसानियत है। हमें उनसे यह भी प्रेरणा मिलती है कि उद्योग समाज का संरक्षक होता है तथा सपनों को परिस्थिति नहीं, साहस मार्ग देता है।सच तो यह है कि वे दूरदृष्टि, अनुशासन और मानवीयता के अद्भुत संगम थे, जिन्होंने उत्कृष्टता और नैतिकता की ऐसी संस्कृति खड़ी की, जो आज भी हर किसी को प्रेरणा देती है। उनका जीवन बताता है कि सही सोच, सेवा-भाव और कर्मठता मिलकर एक व्यक्ति को युग-पुरुष बना देती है। जे.आर.डी. टाटा की अविश्वसनीय कहानी..!





















