बिहार में चला योगी का सिक्का,अखिलेश साबित हुए खोटा सिक्का

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स्वदेश कुमार 

यह चुनावी नतीजे एक साफ संदेश दे गए—बिहार की सियासत में इस बार योगी आदित्यनाथ का असर ज़बरदस्त चला, जबकि अखिलेश यादव की रणनीति और प्रचार शैली वहाँ वोटरों को प्रभावित नहीं कर सकी। परिणामों ने यह भी दिखाया कि आक्रामक हिंदुत्व, संगठन की मजबूती और जमीनी नेटवर्क वहाँ निर्णायक साबित हुआ, जबकि अखिलेश का नैरेटिव स्थानीय समीकरणों में फिट नहीं बैठ पाया। कुल मिलाकर, बिहार की राजनीति में “योगी का सिक्का चला” और अखिलेश की कोशिशें “खोटा सिक्का” साबित हुईं। बिहार में चला योगी का सिक्का,अखिलेश साबित हुए खोटा सिक्का।

बिहार/लखनऊ। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की जोड़ी ने साफ तौर पर अपना दबदबा दिखाया जबकि अखिलेश यादव की कोशिशें महागठबंधन के पक्ष में खास असर नहीं दिखा सकीं। चुनाव के नतीजों में एनडीए गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया, जबकि महागठबंधन अपेक्षित सफलता से बहुत पीछे रहा। यह चुनाव बिहार की राजनीति में भाजपा-जेडीयू के गठबंधन की मजबूती और विपक्ष की कमजोरी का परिचायक रहा।

चुनाव परिणामों के अनुसार, एनडीए को लगभग 124 से 146 सीटों पर बढ़त मिली है, जबकि महागठबंधन के पक्ष में मात्र 73 से 77 सीटें ही रहीं। यह स्पष्ट हुई कि बिहार में भाजपा और जेडीयू के बीच गठबंधन ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। एनडीए की रणनीति रही कि विकास, कानून-व्यवस्था और हिंदुत्व जैसे मुद्दों को सामने रखा जाए, जिसने आम मतदाताओं में गहरा प्रभाव डाला। इसके विपरीत, महागठबंधन, जिसमें राजद, कांग्रेस और लेफ्ट शामिल थे, ने अपेक्षित सीटें नहीं जीत पाई और उनकी लोकप्रियता सीमित रही।

योगी आदित्यनाथ ने चुनाव प्रचार के दौरान बिहार के लगभग 43 विधानसभा क्षेत्रों में 31 रैलियां और 1 रोड शो किया, जहां उन्होंने एनडीए उम्मीदवारों की मजबूती के लिए वोट मांगे। उनकी जनसभाएं दरभंगा, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, बेगूसराय, पूर्णिया जैसे महत्वपूर्ण जिलों में हुईं, जहां उनकी लोकप्रियता के चलते अधिकांश क्षेत्र एनडीए के पक्ष में रहे। योगी के प्रचार क्षेत्रों में भाजपा और जेडीयू उम्मीदवारों ने दमदार जीत हासिल की, जो उनके प्रभाव और कड़ी मेहनत का परिणाम था।

अखिलेश यादव ने महागठबंधन के लिए छह बड़ी जनसभाएं की और पूर्वी बिहार के जिलों जैसे पूर्णिया, कटिहार, बक्सर, सिवान, कैमूर और पटना में प्रचार किया। हालांकि उनकी ये कोशिशें महागठबंधन के पक्ष में फायदा नहीं पहुंचा सकीं। प्रचार के बावजूद महागठबंधन उम्मीदवारों को उनमें से अधिकांश सीटों पर या तो हार का सामना करना पड़ा या उनके मत करीब रहा, लेकिन जीत नहीं मिली।

एनडीए की सफलता का एक कारण यह भी था कि उन्होंने जाति, सामाजिक समीकरणों और स्थानीय मुद्दों पर बेहतर समन्वय किया। मोदी-योगी की जोड़ी ने प्रदेश में विकास कार्यों, कानून व्यवस्था सुधारों, और सामाजिक न्याय के संदेश के साथ एक मजबूत चुनाव अभियान चलाया। इसने मतदाताओं के बीच एक नकारात्मक मत भी लगाया जो महागठबंधन के खिलाफ गया। इसके अलावा, स्थानीय नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं ने बूथ स्तर पर भी कड़ी मेहनत की, जिससे वोट बैंक सक्रिय हुआ।

चुनाव में प्रमुख सीटों पर हुए नतीजों में दरभंगा, भागलपुर, पटना, बोचाहा, पूर्णिया जैसी सीटों पर योगी के प्रचार क्षेत्र में भाजपा और जेडीयू के पक्ष में जीत मिली जबकि अखिलेश के प्रचार क्षेत्रों जैसे बक्सर, सिवान, कटिहार में भी एनडीए ने बेहतर प्रदर्शन किया। परिणामस्वरूप एनडीए गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला जो सरकार बनाने के लिए पर्याप्त है।

इस तरह बिहार चुनाव 2025 में मोदी-योगी की जोड़ी ने अपने प्रचार-प्रसार के दम पर चुनावी मंथन में एनडीए गठबंधन को विजय दिलाई, जबकि अखिलेश यादव और उनका महागठबंधन कमजोर पड़ा। यह चुनाव बिहार की राजनीति में एनडीए के प्रभाव और विपक्ष की चुनौतियों का संकेत है। आने वाले समय में बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी इस चुनाव के परिणामों का गहरा प्रभाव देखने को मिलेगा।