
100 साल में एक भी दलित, पिछड़ा, आदिवासी क्यों नहीं बना प्रमुख। आरएसएस के शताब्दी समारोह पर नेता का हमला।आरएसएस मुख्यालय पर 52 साल तक क्या नहीं फहराया गया तिरंगा।……संजय सिंह
राकेश यादव
लखनऊ। आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश के प्रभारी व राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूरे होने पर एक बयान जारी करते हुए संगठन से कई तीखे और सीधे सवाल किए। उन्होंने कहा कि आरएसएस में ‘राष्ट्रीय’ शब्द लगा होने के बावजूद, यह संगठन देश की 85 प्रतिशत आबादी (दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों) का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं करता है।
सांसद संजय सिंह ने सीधा सवाल पूछा कि 100 सालों के इतिहास में एक भी दलित, पिछड़ा या आदिवासी आरएसएस का प्रमुख क्यों नहीं बना? इसके अतिरिक्त, उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि आज तक एक भी महिला को भी संघ का प्रमुख क्यों नहीं बनाया गया।
आप सांसद ने इन तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि आरएसएस एक दकियानूसी, संकुचित सोच वाला संगठन है, जो संविधान, आरक्षण, दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के खिलाफ है।
उन्होंने आरएसएस पर मनुवादी व्यवस्था और जातीय भेदभाव तथा छुआछूत की व्यवस्था में विश्वास रखने का आरोप लगाया और कहा कि यह संगठन बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी और उनके संविधान के खिलाफ है। उन्होंने जनता से ऐसे संगठनों से सावधान रहने की अपील की।
आजादी के आंदोलन में आरएसएस की भूमिका पर सवाल
आप यूपी प्रभारी व सांसद संजय सिंह ने आरएसएस के आजादी के आंदोलन में योगदान पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस सच्चाई को देश की जनता को जानना बहुत जरूरी है। उन्होंने खुलासा करते हुए कहा कि जब देश अंग्रेजों का गुलाम था, तब आरएसएस ने अंग्रेजों का साथ दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आरएसएस के लोग हिंदुस्तानियों को अंग्रेजों की सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित कर रहे थे।
संजय सिंह ने शोध का हवाला देते हुए कहा कि आरएसएस ही वह संगठन था जिसने आजादी के आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों की मुखबिरी की और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का विरोध तक किया। उन्होंने कहा कि यह वही लोग थे जिन्होंने भारत की आन-बान-शान तिरंगे झंडे का विरोध किया था। उन्होंने इस सच को इतिहास का ऐसा काला अध्याय बताया जिसका आरएसएस कभी विरोध नहीं कर सकती है।