
डॉ.सत्यवान सौरभ
इस शहर को ये क्या हो गया है, पानी नहीं, दर्द बहने लगा है। इस शहर को ये क्या हो गया है..?
जो कहा था विकास का सपना, अब तो वो भीगने लगा है।
सड़कों पे नावें चल रही हैं, नाला ही रास्ता बन गया है।
नेता कहें — “सब ठीक है यारो”, और छत से छप्पर गिर गया है।
टेंडर में सौ काम दिखाए, असली में एक भी ना हुआ है।
बच्चा किताब छोड़ के कहता —“आज तैरना ही पढ़ना हुआ है।”
वो जो बना था “स्मार्ट शहर”, आज कीचड़ में लिपटा हुआ है।
घोषणाओं की फेहरिस्त लंबी, पर हर नाली जाम मिला है।
फाइलों में पुल बन गए हैं, ज़मीं पे हर रोज़ गड्ढा खुला है।
RTI पूछे तो चुप्पी छा जाए, सवाल करने वाला गुनहगार हुआ है।
बस्ती डूबी है पांच दिन से, और मंत्री का ट्वीट भीगा हुआ है।
“सब नियंत्रण में है” – यही वाक्य, हर साल पानी में घुल गया है।
जो भी सच्चाई बोले यहाँ पर, वो या तो पागल, या साज़िशबाज़ हुआ है।
इस शहर को अब खुद से डर है, बारिश नहीं, भ्रष्टाचार बरसा हुआ है। इस शहर को ये क्या हो गया है..?