

वैसे तो नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में 26 मई 2025 को 11 साल पूरे कर लिए थे लेकिन अपने तीसरे कार्यकाल की शपथ उन्होंने 9 जून 2024 को ली, इसलिए उनके तीसरे कार्यकाल की सरकार की वर्षगांठ 9 जून 2025 को मनाई गई। यदि कार्यकाल की दृष्टि से देखें तो नरेंद्र दामोदर दास मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने वाले दूसरे प्रधानमंत्री हैं । वहीं कार्यकाल की दृष्टि से वें तीसरे स्थान पर हैं और उनसे ऊपर केवल जवाहरलाल नेहरू एवं इंदिरा गांधी का कार्यकाल रहा है। वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से नरेंद्र मोदी अपना तीसरा कार्यकाल भी सफलतापूर्वक पूरा करते दिखाई देते हैं. तब वह कार्यकाल की दृष्टि से अपने इसी कार्यकाल में दूसरे स्थान पर आ जाएंगे। यदि नरेंद्र मोदी का एक प्रधानमंत्री की दृष्टि से एक विवेचन किया जाए तो प्रधानमंत्री एवं सरकार के मुखिया के रूप में उनकी खूबियां और खामियां दोनों ही सामने आती हैं। जुमलों से हमलों तक ‘नरेंद्र’ के 11 साल
26 मई 2014 को पहली बार सांसद चुने के बाद ही वें प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए जैसे पहली बार विधायक चुने जाने के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे । अपने विशिष्ट अंदाज में उन्होंने संसद भवन की ड्योढ़ी पर माथा टेककर संसद में प्रवेश किया तो भावुक देश को बहुत आशाएं जगी थी । अपने पहले भाषण में भी नरेंद्र मोदी ने देश को चुनाव में ‘अच्छे दिनों’ के वादे को पूरा करने का विश्वास दिलाया । साथ ही साथ, ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा देकर सारी राजनीतिक कटुता भुलाकर देश के सर्वांगीण विकास की बात की और खुद को प्रधानमंत्री के बजाय ‘प्रधान सेवक’ की संज्ञा दी तथा कहा कि वह एक शासक नहीं बल्कि ‘चौकीदार’ के रूप में देश के हितों की रक्षा करेंगे।
नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में ही निराश नहीं किया और एक से बढ़कर एक अभिनव योजनाएं देश के सामने रखीं जिनमें जनधन योजना, उज्ज्वला योजना, अटल पेंशन योजना,महिला कल्याण व स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं के माध्यम से उन्होंने आम आदमी का दिल जीत लिया। जहां विपक्ष ने उन्हें लफ्फाज की संज्ञा दी, वही उन्होंने अपने इस कार्यकाल में नोटबंदी तथा पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करने जैसे कड़े निर्णय देकर दिखाया कि अपने संकल्प के पक्के हैं। उनकी राजनीतिक चतुराई के आगे विपक्षी पूरे कार्यकाल में एक संभ्रम की स्थिति में रहे और राहुल गांधी को तो उन्होंने इस तरह निशाने पर रखा कि वे कभी भी खुद को उनके प्रतिद्वंदी साबित नहीं कर पाए और बचकाने शब्दों ‘चौकीदार ही चोर है’ या ‘खून का सौदागर’ कहकर राहुल और उनकी मां सोनिया दोनों फंसे रहे।
ऐसा नहीं कि नरेंद्र मोदी का यह कार्यकाल एकदम सफल ही रहा. उसमें विपक्ष को आलोचना का भी पूरा मौका मिला एवं उन्हें असफलता का भी सामना करना पड़ा । उनके ‘अच्छे दिन’ और 15 लाख रुपए हर भारतीय के खाते में आने का खूब मज़ाक बना जिसे बाद में अमित शाह ने एक ‘चुनावी जुमला’ करार देकर जान छुडाई। उनका नोटबंदी से कालाधन व आतंकवाद नियंत्रण का पाशा भी उल्टा पड़ा क्योंकि दोनों ही कम नहीं हुए । इस दौरान बेरोजगारी की सर्वोच्च दर 6.28 तक पहुंच गई जो पिछले 45 वर्षों में सबसे अधिक थी। पकौड़ा तलने जैसे उनके रोजगार के भाषण मज़ाक का पात्र बने तथा हिंदुओं मुसलमानों के बीच बढ़ती खाई से मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ीं. इस कार्यकाल में उनके कई निर्णय जल्दबाजी में लिए गए साबित हुए ।
2019 में जब लोकसभा चुनावों की घोषणा की गई, राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि आएंगे तो मोदी ही पर उनकी चमक और धमक दोनों कम होगी लेकिन ‘मोदी है तो मुमकिन है’ और ‘इस बार 300 पार’ का नारा खूब चला और भारतीय जनता पार्टी को पहली बार अपने ही बलबूते पर बहुमत मिला । एनडीए की 353 में सीटों उसका हिस्सा 303 पर पहुंच गया जो एक बड़ी उपलब्धि थी।
अपने दूसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी का आत्मविश्वास आसमान छूता नज़र आया और उन्होंने कई ऐसे निर्णय लिए जिनकी कल्पना भी भारतीय राजनीति में मुश्किल थी । धारा 370 हटा दी गई, राम मंदिर का शिलापूजन हो गया, नागरिकता कानून संशोधन पास हो गया, पुलवामा में हुए हमले के बाद उन्होंने एक बार फिर पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक करने का साहस दिखाया. कृषि कानून, कोविड़ वैक्सीन, मुफ्त राशन, मोबाइल अस्पताल और ताली थाली दीप आदि ने मोदी की लोकप्रियता को और भी बढ़ाया लेकिन कोविड की दूसरी लहर में सारी व्यवस्था चरमरा गई. लाखों मौत हुईं, वैक्सीन बनाने में मानकों की अनदेखी महंगी पड़ी जो आज तक संदेह पैदा करती है । ‘आपदा में अवसर’ के नारे के बीच कुछ ऐसे फ़ायदे उठाए गए जो नैतिकता की दृष्टि से सही नहीं थे।
कृषि कानून, पर उन्हें यू टर्न लेना पड़ा. बेरोजगारी व महंगाई बेकाबू हो गई. दूसरे कार्यकाल में सरकार ने सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल विपक्षियों को घेरने और कुचलने में किया। उन पर बडबोलेपन का आरोप तो ख़ैर अब तक लगता है। यदि राहुल इस दौर में ‘आलू से सोना बनाने की मशीन’ बनाते हुए दिखाई दिए तो मोदी सरकार भी ‘गटर से गैस’ बनाने का जुमला उछालती रही और 2024 लोकसभा चुनाव के आते-आते सबका मत यही था कि इस बार मोदी सरकार नहीं लौटेगी और आई भी तो साझे की सरकार ही बनानी पड़ेगी। ख़ैर एक बार फिर वही बात ‘मोदी है तो मुमकिन है’. कुछ तो बात है नरेंद्र दामोदर दास मोदी नाम के इस शख्स में। 2024 के चुनाव में भी नरेंद्र मोदी ‘वन मैन आर्मी’ की तरह लड़े और तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भाजपा को सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में वापस लाने में कामयाब रहे भले ही सीटों की संख्या 303 से गिरकर केवल 240 रह गई।
2024 में उनके शपथ ग्रहण के साथ ही राजनीतिक पंडित एक बार फिर से बीपी सिंह की सरकार या मोरारजी सरकार जैसी फजीहत होते देख रहे थे लेकिन कम से कम पहले साल तो मोदी का जलवा कायम रहा । न पार्टी में से उन्हें कोई चुनौती मिली और न ही उनके सहयोगी दलों ने कोई बखेड़ा खड़ा किया। उल्टे हुआ यह कि नीतीश मोदी के पास लौट आए ।जैसी कि आशंका थी कि इस बार के मोदी डरे डरे से मोदी होंगे, वैसा नहीं दिखाई दिया और उन्होंने धड़ाधड़ फैसले लेने वाली अपनी शैली को अब तक बरकरार रखा है। पहलगाम हमले के बाद जिस तरह का स्टैंड उन्होंने लिया, उसकी उम्मीद पाकिस्तान को भी नहीं थी।
दृढ़ संकल्प के साथ उन्होंने पाकिस्तान को गहरी चोट और सबक दिए हैं, ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से आतंकवादी ठिकानों के साथ-साथ पाकिस्तान के अधिकांश एयर बेस भी नष्ट कर दिए गए हालांकि युद्ध विराम के बाद पाकिस्तान भी वैसा ही जश्न मनाता दिखा जैसा भारत अपनी जीत पर मना रहा है और एकाएक किए गए युद्ध विराम से मोदी सरकार को सवालों ने घेर लिया है । उन पर ट्रंप के दबाव में आने का बड़ा आरोप है और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग विपक्ष लगातार कर रहा है मगर यहां भी मोदी ने सर्वदलीय सांसद प्रतिनिधि मंडल के माध्यम से बता दिया है कि उन्हें समझना और काबू में करना आसान काम नहीं है ।
ख़ैर अभी तो 4 साल बाकी हैं । राजनीति बहुत सारी करवटें लेगी, बहुत सारे उतार चढ़ाव आएंगे. यह तो समय ही बताएगा कि 75 साल के होने जा रहे मोदी आदर्शों के नाम पर संन्यास ले लेंगे या फिर कोई नया जुमला उछाल कर अपनी सर्वोच्चता बरकरार रखेंगे। जुमलों से हमलों तक ‘नरेंद्र’ के 11 साल