

स्वास्थ्य सेवा पर खर्च, खासकर जेब से होने वाला खर्च, कई परिवारों को गरीबी रेखा के नीचे ढकेल देता है, क्योंकि यह खर्च आय का एक बड़ा हिस्सा होता है। आम लोगों की अन्य बुनियादी ज़रूरतों पर खर्च कम हो जाता है। भारत सरकार द्वारा शुरू की गई जन औषधि योजना निजी दवा उद्योग द्वारा दवाओं के अनुचित मूल्य निर्धारण के खिलाफ एक शक्तिशाली हस्तक्षेप है, ताकि जेनेरिक दवाओं को सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराया जा सके। भारत की हाशिए की आबादी कई ब्रांडेड दवाओं को वहन करने में सक्षम नहीं है; इसलिए, आबादी के सर्वोत्तम हित में भारतीयों को सस्ती जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने की तत्काल आवश्यकता है। गरीबों के लिए वरदान है प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि
भारत को दुनिया भर के देशों को सस्ती जेनेरिक दवाइयों की आपूर्ति के लिए जाना जाता है। इन दिनों जन औषधि का शोर है। आखिर जन औषधि क्या हैं? और एक ऐसे कदम पर इतना हंगामा क्यों है? जो केवल गरीबों की मदद करेगा? यह मनमोहन सिंह सरकार द्वारा 2008 में जनता को सस्ती जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने की योजना है, जो देश में सस्ती स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करने का एक तरीका है। बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा दवाओं के शिकारी मूल्य निर्धारण का मतलब था कि जीवन रक्षक दवाएं भारत के लाखों ज़रूरतमंदों की पहुँच से बाहर थीं। जब नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार सत्ता में आई, तो इस योजना को प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के रूप में फिर से पेश किया गया। नवंबर 2016 में, इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना कर दिया गया।
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना से आम लोगों को ढ़ेर सारी उम्मीदें हैं। गरीबों के लिए यह योजना वरदान सावित हो रहा है। जैसे-जैसे इस जनसरोकारी परियोजना की लोगों को जानकारी मिल रही है,जनता की आकांक्षाएं बढ़ती जा रही है। परिणामस्वरूप जिस अनुपात में इसकी मांग में इजाफा हुआ है,उस अनुपात में दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित कराना बीपीपीआई अधिकरियों के लिए बड़ी चुनौती है।जन औषधि योजना देश के प्रत्येक व्यक्ति को सबसे अच्छा और सस्ता उपचार प्रदान करने की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के तहत देशभर में 15000 से अधिक जन औषधि केंद्र हैं। इन केंद्रों पर सस्ती कीमत पर दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। इन केंद्रों पर सभी तरह की बीमारियों को कवर करने वाली 2000 तरह की दवाइयां और 300 सर्जिकल उपकरण शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर 25,000 केंद्र खोलने का लक्ष्य है। इस वर्ष इन केंद्रों के माध्यम से दवाओं की बिक्री का लक्ष्य 2,000 करोड़ रुपये है जिसमें से 1,500 करोड़ रुपये से अधिक की बिक्री पहले ही की जा चुकी है। खास बात यह है कि यह दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 50 से 90 फीसदी तक सस्ती होती है। उदाहरण के लिए, कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली एक दवा जो बाजार में लगभग साढ़े छह हजार रुपये की हैं, वहीं दवा जनऔषधि केन्द्रों पर सिर्फ 800 रुपये में उपलब्ध है।
कोरोना काल में इस परियोजना का महत्व सबसे अधिक देखने को मिला है।इस महामारी की दूसरी लहर के दौरान दवा दुकानों में कृत्रिम अभाव की स्थिति उत्पन्न कर दवाओं को दोगुने-तीगुने दामों पर बेचा जा रहा था।उस समय प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र लोगों के लिए वरदान साबित हुआ। वास्तव में जन औषधि केंद्रों ने सस्ती दर पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवा उपलब्ध कराने के प्रधानमंत्री मोदी के सपने को साकार किया है। आज इस परियोजना के कारण देश के कोने-कोने में लोगों तक सस्ती दवा की आसान पहुंच सुनिश्चित हुई है। आज इस परियोजना के कारण देश के कोने-कोने में लोगों तक सस्ती दवा की आसान पहुंच सुनिश्चित हुई है। इन औषधि केंद्रों पर मिलने वाली दवाएं जेनरिक होती हैं यानि की दवाओं में प्रयोग होने वाली बेसिक सॉल्ट का प्रयोग कर दवाएं तैयार की जाती हैं। जेनरिक होने के कारण दवाएं सस्ती होती हैं लेकिन उतनी ही कारगर होती हैं, जितनी ब्रांडेड दवाएं होती हैं। लोगों के बीच यह धारणा गलत है कि जेनरिक दवाओं की गुणवत्ता कम होती है।
पीएमबीजेपी के तहत आपूर्ति की जाने वाली दवाइयों को विश्व स्वास्थ्य संगठन- गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (डब्ल्यूएचओ-जीएमपी) प्रमाणित आपूर्तिकर्ताओं से ही खरीदा जाता है,ताकि उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। गोदामों में पहुंचने के बाद दवाओं के प्रत्येक बैच का परीक्षण ‘राष्ट्रीय परीक्षण और अंशांकन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड’ (एनएबीएल) द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में किया जाता है। गुणवत्ता परीक्षण पास करने के बाद ही दवाओं को जन औषधि केंद्रों (जेएके) में भेजा जाता है। गुणवत्ता मापदंडों को पूरा न करने वाले किसी भी बैच को आपूर्तिकर्ता को वापस कर दिया जाता है। जेएके के माध्यम से केवल गुणवत्तापूर्ण दवाओं की आपूर्ति की जाती है।
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना की कार्यान्वयन एजेंसी, फार्मास्यूटिकल्स एवं मेडिकल डिवाइसेस ब्यूरो ऑफ इंडिया (पीएमबीआई) विभिन्न माध्यम से पीएमबीजेपी की विशेषताओं और जन औषधि जेनेरिक दवाओं के लाभों के बारे में जागरूकता फैला रही है। इसके अलावा, फार्मास्यूटिकल्स एवं मेडिकल डिवाइसेस ब्यूरो ऑफ इंडिया (पीएमबीआई) नियमित रूप से जन औषधि जेनेरिक दवाओं के लाभों के बारे में जनता को शिक्षित कर रहा है। पीएमबीआई हर साल 7 मार्च को जन औषधि दिवस का आयोजन करके देश के नागरिकों को जन औषधि जेनेरिक दवाओं के लाभों के बारे में शिक्षित कर रहा है। इस बार जन औषधि दिवस के दिन देश में दो सौ नए केन्द्र का शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे। पीएमबीजेपी योजना के बारे में उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव, राष्ट्रीय एकता दिवस सप्ताह आदि जैसे विभिन्न समारोहों के दौरान कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन किया जाता है।
केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा के अनुसार जन औषधि केंद्रों के माध्यम से बेची जाने वाली दवाओं और अन्य वस्तुओं की बिक्री 2014 के 7.29 करोड़ रुपये से बढ़कर जुलाई 2024 तक 1470 करोड़ रुपये हो गई है। जन औषधि केंद्रों (जेएके) की संख्या 2014 के 80 से बढ़कर 31 जुलाई 2024 तक 13113 हो गई है, जो इस योजना की लोकप्रियता को दर्शाता है। पिछले 10 वर्षों में, जेएके के माध्यम से 5,600 करोड़ रुपये की दवाओं की बिक्री की गई है, जिससे उपभोक्ताओं को अनुमानित 30,000 करोड़ रुपये की बचत हुई है। 31 जुलाई 2024 तक आकांक्षी जिलों में 912 जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं, जिनमें पिछड़े और अनुसूचित जाति/जनजाति बहुल क्षेत्र भी शामिल हैं।

भारतीय औषधि एवं चिकित्सा उपकरण ब्यूरो के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रवि दधीच के अनुसार प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) योजना – जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव अभियानों में बड़े पैमाने पर प्रचार किया है। प्रधानमंत्री के मिशन को मूर्त रूप देने के लिए सरकार ने अब प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी (पीएसीएस) के साथ सहयोग करके दूर-दराज के क्षेत्रों में अपनी पहुंच बढ़ाने का फैसला किया है। पीएसीएस ग्रामीण भारत में पहले से ही स्थापित ऋण निकाय हैं।उनके मुताबिक हमारे द्वारा खरीदी गई सभी दवाइयों की गुणवत्ता जांच एनएबीएल मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में की जाती है। जांचे गए 1,000 नमूनों में से, हमें केवल एक दवा के साथ परख, विघटन आदि के मामले में समस्या का सामना करना पड़ा। इसका मतलब है कि हमारी गैर-मानक गुणवत्ता (एनएसक्यू) की दर नगण्य है, जो लगभग 0.0001 प्रतिशत है।”
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस योजना के तहत एंटासिड कॉम्बो पैंटोप्राजोल और डोमपेरिडोन सबसे अधिक बिकने वाली दवाएं हैं, जिनकी एक महीने में 12 लाख से अधिक स्ट्रिप्स की बिक्री हुई है।एंटासिड कॉम्बो के बाद हाई ब्लड प्रेशर की दवा टेल्मिसर्टन का नंबर आता है, जिसकी एक महीने में 10.40 लाख से ज़्यादा स्ट्रिप्स बिकती हैं। शीर्ष पांच की सूची में एंटासिड पैंटोप्राज़ोल (प्रति महीने 9 लाख स्ट्रिप्स), उच्च रक्तचाप की दवा एम्लोडिपिन (8.70 स्ट्रिप्स) और मधुमेह रोधी दवा मेटफ़ॉर्मिन हाइड्रोक्लोराइड (8.36 स्ट्रिप्स) भी शामिल हैं।
“एंटासिड कॉम्बो पैंटोप्राजोल और डोमपेरिडोन के ब्रांडेड संस्करण की कीमत 120 रुपये है, जबकि जन औषधि केन्दों पर इसकी कीमत दस गुना कम 12 रुपये है। यह प्रवृत्ति अन्य सभी दवाओं के लिए समान है, जिसमें लोकप्रिय उच्च रक्तचाप की दवा टेल्मिसर्टन भी शामिल है, जो ब्रांडेड संस्करण में 80 रुपये से अधिक में बेची जाती है, जबकि हम इसे 12 रुपये में बेचते हैं।” इस योजना के लिए सबसे बड़ा राजस्व स्रोत मधुमेह रोधी दवाएं हैं, जिनमें से 20 प्रतिशत से अधिक राजस्व इसी श्रेणी से आता है, इसके बाद हृदय संबंधी दवाएं (19.54 प्रतिशत), शल्य चिकित्सा और चिकित्सा उपभोग्य वस्तुएं (7.18 प्रतिशत), जठरांत्र संबंधी (8.65 प्रतिशत) और एंटीबायोटिक्स (6.34 प्रतिशत) का स्थान आता है।
भारतीय औषधि एवं चिकित्सा उपकरण ब्यूरो के बिहार के प्रभारी कुमार पाठक के अनुसार “जन औषधि केंद्रों पर प्रतिदिन औसतन 10-12 लाख लोगों के आने से हम हर साल 5,000 करोड़ रुपये से 7,000 करोड़ रुपये तक बचा रहे हैं और पिछले 10 वर्षों में 28,000 करोड़ रुपये की बचत हुई है।” उनके अनुसार बिहार में 750 से अधिक केन्द्र काम कर रहे हैं। सदर अस्पताल मुंगेर के जनऔषधि केन्द्र के संचालक राकेश कुमार के अनुसार महिलाओं के लिए 1 रुपये में सेनेटरी नैपकिन भी इन केंद्रों पर मिल रहे हैं। 21 करोड़ से ज्यादा सेनेटरी नैपकिन की बिक्री ये दिखाती है कि जन औषधि केंद्र कितनी बड़ी संख्या में महिलाओं का जीवन आसान कर रहे हैं। इन सेनेटरी नैपकिन की गुणवत्ता अच्छी है। इसके अतिरिक्त जो दवाएं है गुणवत्तापूर्ण हैं।अधिकांश चिकित्सक और उपभोक्ता उनकी प्रभावशीलता, गुणवत्ता तथा सुरक्षा के बारे में संदिग्ध रहते हैं।
मुंगेर सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ.रमण और डॉ असीम कुमार का मानना है कि जन औषधि की दवाएं कारगार होती है। ब्रांडेड दवाओं की तरह वह भी काम करती है। फर्क इतना है कि ब्रांडेड दवाओं की मार्केटिंग ज्यादा होती है। इसलिए लोगों को लगता है कि वह दवा ज्यादा कारगार है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। जेनरिक दवाएं भी उसी तरह काम करती है,जैसे ब्रांडेड दवाएं। पीएमबी का मकसद जनसाधारण को गुणवत्तापूर्ण जेनरिक दवाएं सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराना,स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च को कम करना,जेनरिक दवाओं के प्रयोग को बढ़ावा देना, योजना के तहत बेची जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और जन औषधि केंद्रों की स्थापना के माध्यम से लोगों के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। गरीबों के लिए वरदान है प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि