रोता रोज कबीर…

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रोता रोज कबीर...
रोता रोज कबीर...
डॉ. त्यवान सौरभ

ऐसे ढोंगी संत से, करिए क्या फरियाद।
जो पूजन के नाम पर, भड़काए उन्माद॥

सौरभ बाबा बन गए, धूर्त विधर्मी लोग।
भोली जनता छल गई, ढोंगी करते भोग॥

पूजन को साधन बना, रोज़ करें व्यापार।
ढोंगी बाबा भक्त बन, बना रहे लाचार॥

कुकर्मों से हैं रंगे, रोज-रोज अखबार।
बाबाओं के देखिए, मायावी किरदार॥

चमत्कार की आस में, बाबा करे विखंड।
हुआ धर्म के नाम पर, सौरभ यह पाखंड॥

पूजन का पाखंड कर, करें पुण्य की बात।
ढोंगी बाबा से मिले, सदा यहाँ आघात॥

धर्म कर्म से छल करें, बनकर बाबा खास॥
ढोंगी होते वह सदा, नहीं करें विश्वास॥

कुछ पहुँचे है जेल में, और कुछ गुमनाम।
डेरों की सच्चाइयाँ, देख दुखी है राम॥

ढोंगी बाबा मौलवी, करते कैसे काम।
अबलाओं को लूटती, ढोंगी साध हराम॥

डेरों में इनके छुपा, असलों का भंडार॥
झूठ सभी ये कह रहे, मुक्ति मिले इस द्वार।।

इतना घातक है नही, दुश्मन का प्रवेश।
फंसकर इनके ढोंग में, तार-तार है देश॥

उतरा चोला देखकर, रोता रोज कबीर।
काले कर्मों में लगे, अब क्यों संत फ़कीर।।

ढोंगी बैठे मौज से, प्रशासन है मौन।
अंधे कट-कट है मरे, खोलें आँखें कौन।।

रावण हँसा ये देखकर, कैसे राम- रहीम।
बाबा लूटे बेटियां, बनकर नीम हकीम।।