कांग्रेस हरियाणा में गफलत और गुटबाजी में मारी गयी

66
कांग्रेस हरियाणा में गफलत और गुटबाजी में मारी गयी
कांग्रेस हरियाणा में गफलत और गुटबाजी में मारी गयी

जयसिंह रावत

सूत न कपास और जुलाहों में लट्ठम लट्ठा वाली कहावत एक बार फिर कांग्रेसियों ने हरियाणा में दुहरा कर अपनी जीत की संभावनाओं पर खुद ही पानी फेर दिया। लगभग ऐसा ही नवम्बर 2023 में हुये राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव में भी हुआ था। हरियाणा की ही तरह उन राज्यों के मठाधीशों के भरोसे रही कांग्रेस अति आत्मविश्वास के चलते चुनाव हार गयी। गत लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद लग रहा था कि मरणासन्न पड़ी कांग्रेस भाजपा जैसे अति शक्तिशाली प्रतिद्वन्दी से लड़ने के लिये खड़ी होने जा रही है लेकिन हरियाणा चुनाव ने कांग्रेसियों की सफलता की उड़ान को झटका दे दिया। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का असली मुकाबला कांग्रेस ही कर सकती है लेकिन कांग्रेसी गुटबाजी और गलतफहमियों के चलते खुद ही अपी संभावनाओं पर पलीता लगा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में चुनाव सर्वेक्षकों के ओपीनियन और एग्जिट पोलों ने जिस तरह भाजपा को गफलत में रखा, उसी तरह चुनावी भविष्यवाणियों की गफलत ने इस बार  हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबो दी। कांग्रेस हरियाणा में गफलत और गुटबाजी में मारी गयी

फिर हुए  फेल  चुनावी ज्योतिषी

 हरियाणा चुनाव नतीजों को लेकर देश के लगभग एक दर्जन चुनावी ज्योतिषियों (पोलस्टरों) ने ओपिनियन पोलों से लेकर एक्जिट पोलों तक कांग्रेस के स्पष्ट बहुमत से लेकर आंधी तूफान जैसी जीत का पूर्वानुमान लगाया था। देश के 10 प्रमुख पोलस्टरों में से किसी ने भी कांग्रेस को 50 से कम सीटें नहीं दीं थीं जबकि भाजपा को केवल दो ने 30 का आंकड़ा पार करने की भविष्यवाणी की थी। इसके विपरीत भाजपा को हरियाणा में 48 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत मिल गया और कांग्रेस 37 सीटों पर ही अटक गयी। इस चुनाव के एक्जिट पोलों में दैनिक भास्कर ने 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस को 44-54 सीटें और भाजपा को 15-29 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। इसी तरह सी-वोटर-इंडिया टुडे पोल ने कांग्रेस को 50-58 सीटें और भाजपा को 20-28 सीटें दी हैं जबकि रिपब्लिक भारत- मैट्रिज पोल ने कांग्रेस को 55 से लेकर 62 सीटें और रेड माइक- दतांश एग्जिट पोल ने कांग्रेस को 50-55 सीटें और भाजपा को 20-25 सीटें दी थी। इसी तरह धु्रव रिसर्च ने कांग्रेस को 50-64 और भाजपा को 22-32 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। पीपुल्स पल्स एग्जिट पोल ने हरियाणा में कांग्रेस को 49-60 सीटें और भाजपा को 20-32 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था।

ज्योतिषियों ने लोकसभा चुनाव में भाजपा को रखा था गफलत में

गत लोकसभा चुनाव में भी पोलस्टरों ने भाजपा को इसी तरह गफलत में रखा था। लोकसभा चुनावों से पहले, कम से कम 12 एग्जिट पोल ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की भारी जीत का पूर्वानुमान लगाया था जिसमें से कुछ ने गठबंधन को 400 सीटों का आंकड़ा पार करने का अनुमान लगाया था। हालांकि वास्तविक परिणाम काफी अलग निकले। एनडीए महज 293 सीटें हासिल कर पाया जो पूर्वानुमान से काफी कम थीं। विशेष रूप से, भाजपा केवल 240 सीटें जीतकर साधारण बहुमत से भी चूक गई। 2019 में उसके पास 303 सीटें थीं जो 63 सीटों की गिरावट थी। इसके विपरीत, कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने 235 सीटें जीतीं। इस तरह एक्जिट पालों की विश्वसनीयता को फिर बट्टा लग गया।

गलतफहमियों  के सागर में डूबी कांग्रेस 

लोकसभा चुनावों में शून्य से बढ़ कर भाजपा के बराबर 5 सीटें हथियाने से कांग्रेस हरियाणा में विधानसभा चुनाव में भी गदगद दिखाई दी। तब कांग्रेस के वोट शेयर में भी लगभग 15 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। चुनाव अभियान में कांग्रेस ने किसान, जवान (अग्निपथ) और पहलवान के मुद्दों पर अपना अभियान फोकस कर रखा था लेकिन आंतरिक मुद्दों को अनदेखा कर उसने भाजपा को जीतने में मदद कर दी हालाँकि, ये मुद्दे अधिकांश मतदाताओं को प्रभावित करने में विफल रहे और कांग्रेस के लिए वोटों में तब्दील नहीं हुए। एक दशक से सत्ता से दूर, कांग्रेस ने हरियाणा में अपनी जीत को दीवार पर लिखी इबारत समझ लिया था जिसे फर्जी ओपिनियन पोलों ने पुख्ता कर दिया। कांग्रेस का दृढ़ विश्वास था कि जीत निश्चित है। राज्य में  गत लोकसभा चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन ने कांग्रेस की उम्मीदों को हवा दे दी थी हालांकि सच्चाई कांग्रेस और पोलस्टरों की धारणा से विपरीत निकली और भाजपा लगातार तीसरी बार सत्ता में आ गयी। कांग्रेस के लिए यह एक बहुत बड़ा अवसर था जो उसने गंवा दिया। यह हार उसे महाराष्ट्र और झारखंड में आने वाले चुनावों में परेशान कर सकती है।

जाट वोटरों  के भरोसे नहीं लगी नैया पार 

कांग्रेस ने भाजपा से कुछ नहीं सीखा जबकि भाजपा को मिल रही सफलताओं से सीखने के लिये उसके पास काफी कुछ था। भाजपा हरियाणा में जाट और गैर जाट वोट बैंक में सन्तुलन बनाये रखती है जबकि कांग्रेस ने इस बार जाट मतदाताओं पर अत्यधिक निर्भरता चुनी। वहां जाट समुदाय मतदाताओं का लगभग 27 प्रतिशत हिस्सा ही है। हालांकि कांग्रेस जाट-बहुल सीटों में से भी अधिकांश सीटें जीतने में कामयाब नहीं हुई। पार्टी ने कैथल, बरोदा, जुलाना, टोहाना, ऐलनाबाद, महम, गढ़ी सांपला-किलोई और बादली में जीत दर्ज की, लेकिन पानीपत ग्रामीण, सोनीपत, गोहाना, बाढड़ा, झज्जर, उचाना कलां और नारनौंद जैसी सीटें भाजपा के खाते में गईं, जबकि डबवाली इनेलो के खाते में गई।

हुड्डा की मनमानी भी  पड़ी महंगी

कांग्रेस की सूबेदारों पर निर्भरता की जो मजबूरियां मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में थीं, वहीं हरियाणा में भी आड़े आयीं। भूपेश बधेल, अशोक गहलोत और कमलनाथ की तरह भूपेन्द्र हुड्डा ने भी पार्टी आला कमान को दरकिनार कर चुनाव की कमान पूरी तरह अपने हाथ में रखी जिस कारण कुमारी शैलजा और सुरजेवाला जैसे नेता पार्टी की जीत के प्रति उदासीन हो गये।  भाजपा से वापस कांग्रेस में लौटे चौधरी वीरेन्द्र सिंह को तो हुड्डा ने दूध की मक्खी की तरह अलग ही रखा। आला कमान के जोर देने पर भी हुड्डा  ने आम आदमी पार्टी से चुनावी तालमेल नहीं होने दिया। ऐसा ही रुख अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के लिये, कमलनाथ ने सपा के लिये तथा बघेल ने टीएस सिंहदेव को दूर रख कर कांग्रेस का भट्ठा बिठाया था। राज्य में पार्टी द्वारा मैदान में उतारे गए 90 उम्मीदवारों में से 72 उम्मीदवार हुड्डा द्वारा चुने गए थे और वे सभी उनके वफादार माने जाते थे। टिकट न मिलने से नाराज कई उम्मीदवारों ने हाईकमान से शिकायत की और आखिरकार इस्तीफा दे दिया। हुड्डा के कहने पर मैदान में उतारे गए 72 उम्मीदवारों में से 28 मौजूदा विधायक थे। इन 28 में से 15 चुनाव हार गए। अंत में कांग्रेस और भाजपा के बीच जीत का अंतर (11) मौजूदा विधायकों की संख्या से भी कम रहा जिन्होंने अपनी सीटें खो दीं।

बंटाधार करने में  शैलजा भी पीछे नहीं रहीं

हरियाणा में अपनी राज्य इकाई के भीतर असंतोष और अंदरूनी कलह के खुले प्रदर्शन ने कांग्रेस को चुनावी रूप से  काफी नुकसान पहुंचाया है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के नेतृत्व वाले दो प्रमुख गुटों ने न केवल कांग्रेस को एक विभाजित इकाई के रूप में चित्रित किया बल्कि इसने भाजपा को उनके खिलाफ इसका इस्तेमाल करने का मौका भी दिया। मुख्यमंत्री पद पर दावा करने वाली शैलजा के बार-बार बयानों ने इस पुरानी पार्टी के लिए मामले को और खराब कर दिया क्योंकि भाजपा ने इसका इस्तेमाल कांग्रेस पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाने के लिए किया। नेतृत्व के मुद्दे पर हाईकमान के अनिर्णय ने भी मतदाताओं के एक वर्ग को भ्रमित किया क्योंकि भाजपा ने पिछले चुनावों के विपरीत नायब सैनी, एक ओबीसी को अपने सीएम चेहरे के रूप में लेकर चुनाव लड़ा। इसने भगवा पार्टी को गैर-जाट ओबीसी का समर्थन जुटाने का भी मौका दिया। कांग्रेस हरियाणा में गफलत और गुटबाजी में मारी गयी