अजय कुमार झा
देश भर में आज अपराध और महिलाओं तथा बच्चों के प्रति किये जा रहे बेहद हिंसक अपराध की घटनाओं में दिनों दिन इजाफा ही हो रहा है। ये एक तरफ समाज की शान्ति और क़ानून व्यवस्था के लिए चुनौती साबित हो रहा है तो दूसरी तरफ बार बार पुलिस की असफलता और उसकी कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है। हाल ही की दो बड़ी घटनाओं , कोलकाता और महाराष्ट्र के बदलापुर में घटी दुष्कर्म की जघन्यतम अपराधों में भी एक बार फिर पुलिस की असंवेदनशीलता पर चर्चा और विमर्श शुरू हो गया है। कब होगा सुधार:असंवेदनशील पुलिस व्यवस्था
भारतीय पुलिस व्यवस्था की बात करें तो इसकी शुरुआत हुई पुलिस अधिनियम, 1861 से यह भारत में पुलिस प्रणाली की स्थापना के लिए आधारशिला थी लेकिन इसे अब पुराना और असफल माना जाता है। इसके बाद राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) ने पुलिस सुधार के लिए कई सिफारिशें कीं लेकिन अधिकांश लागू नहीं हुईं। पुलिस अधिनियम पुलिस को और अधिक जवाबदेह, पारदर्शी और समुदाय-उन्मुख बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था। मॉडल पुलिस अधिनियम, 2006 एक मॉडल कानून है जिसे राज्यों द्वारा अपनाया जाना है जो पुलिस को और अधिक आधुनिक और प्रभावी बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। पुलिस सुधार विधेयक, 2013 पुलिस को और अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था लेकिन यह पारित नहीं हुआ।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पुलिस सुधार के लिए दिशा-निर्देश जारी किए, जिन्हें प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ के मामले में जारी किया गया था। इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य पुलिस को और अधिक जवाबदेह, पारदर्शी और लोगों के अनुकूल बनाना था। दिशा-निर्देश इस प्रकार हैं:-
राज्य पुलिस बोर्ड का गठन:
प्रत्येक राज्य में एक राज्य पुलिस बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए, जो पुलिस की नीतियों और कार्यों की देखरेख करेगा।
पुलिस आयुक्त की नियुक्ति:
पुलिस आयुक्त की नियुक्ति दो साल की निश्चित अवधि के लिए की जानी चाहिए ताकि वह राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम कर सके।
पुलिस के विभाजन: पुलिस को दो विभागों में विभाजित किया जाना चाहिए – अपराध शाखा और लॉ एंड ऑर्डर शाखा।
पुलिस शिकायत प्राधिकरण:
प्रत्येक राज्य में एक पुलिस शिकायत प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए जो पुलिस के खिलाफ शिकायतों की जांच करेगा।
पुलिस की जवाबदेही: पुलिस को और अधिक जवाबदेह बनाने के लिए, प्रत्येक पुलिस थाने में एक जवाबदेही अधिकारी की नियुक्ति की जानी चाहिए।
पुलिस की निगरानी: पुलिस की निगरानी के लिए एक निगरानी तंत्र का गठन किया जाना चाहिए, जो पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखेगा।
पर्याप्त और आधुनिक प्रशिक्षण : पुलिस के प्रशिक्षण में सुधार किया जाना चाहिए, ताकि वह और अधिक प्रभावी और लोगों के अनुकूल हो सके।इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य पुलिस को और अधिक जवाबदेह, पारदर्शी और लोगों के अनुकूल बनाना था, लेकिन उनके कार्यान्वयन में अभी भी चुनौतियां हैं।
भारतीय पुलिस और मानवाधिकार के बीच एक जटिल संबंध रहा है। पुलिस का मुख्य उद्देश्य समाज में व्यवस्था और शांति बनाए रखना है लेकिन कई बार पुलिस के कार्यों में मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। कुछ मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है।
पुलिस हिंसा: पुलिस द्वारा हिंसा का उपयोग, जैसे कि अत्यधिक बल, यातना, और गोलीबारी, मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
गिरफ्तारी और हिरासत: अवैध गिरफ्तारी, हिरासत में यातना, और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाली अन्य प्रथाएं।
लापता और फर्जी मुठभेड़: पुलिस द्वारा लापता व्यक्तियों को गायब करना और फर्जी मुठभेड़ में लोगों को मारना।
जातिगत और लैंगिक भेदभाव: पुलिस द्वारा जातिगत और लैंगिक भेदभाव का उल्लंघन करना।
पुलिस सुधार: पुलिस सुधार की आवश्यकता है ताकि वह और अधिक जवाबदेह, पारदर्शी और मानवाधिकारों का सम्मान करने वाली हो।
पुलिस मुठभेड़ की बढ़ती घटनाएं चिंताजनक हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मुठभेड़ में हुई मौतों की जांच के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिनमें मजिस्ट्रेट जांच, पीड़ितों के परिजनों को सूचना देना और स्वतंत्र जांच शामिल है। पुलिस को सख्ती से इन दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए और मुठभेड़ के दौरान मानवाधिकारों का सम्मान करना चाहिए। पुलिस को महिलाओं की सुरक्षा के लिए और अधिक संवेदनशील और प्रभावी होना चाहिए। इसके लिए पुलिस में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाने, महिला हेल्पलाइन नंबरों को और अधिक प्रभावी बनाने, और महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच में तेजी लाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, पुलिस को महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा के मामलों में और अधिक गंभीरता से लेना चाहिए और पीड़ितों को समर्थन और संरक्षण प्रदान करनी चाहिए। पुलिस को महिला अधिकारों और सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए भी काम करना चाहिए।महिला सुरक्षा के लिए पुलिस की भूमिका महत्वपूर्ण है, और पुलिस को इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।
भारत में पुलिस व्यवस्था कितनी संतोषजनक है ,ये विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि क्षेत्र, शहर या ग्रामीण क्षेत्र, और व्यक्तिगत अनुभव। कुछ क्षेत्रों में पुलिस व्यवस्था अच्छी हो सकती है जबकि अन्य क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता हो सकती है। कुछ मुद्दे जो पुलिस व्यवस्था की संतोषजनकता को प्रभावित कर सकते हैं: भ्रष्टाचार: पुलिस में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा है, जो व्यवस्था की विश्वसनीयता को कम कर सकता है।प्रशिक्षण और संसाधन: पुलिसकर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधनों की आवश्यकता होती है ताकि वे अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से कर सकें।जवाबदेही: पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शी और प्रभावी तंत्र की आवश्यकता है। जनसंख्या और संसाधनों का अनुपात: भारत में जनसंख्या का दबाव और संसाधनों की कमी पुलिस व्यवस्था को प्रभावित कर सकती है।
पुलिस अधिकारियों को पुलिस में सुधार हेतु निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए।
पारदर्शिता और जवाबदेही: पुलिस की गतिविधियों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
प्रशिक्षण और विकास: पुलिसकर्मियों को नियमित प्रशिक्षण और विकास के अवसर प्रदान करने चाहिए।
तकनीक का उपयोग: पुलिस को तकनीक का उपयोग करके अपने कार्यों में सुधार करना चाहिए।जनसंपर्क और संवाद: पुलिस को जनता के साथ संपर्क और संवाद में सुधार करना। भ्रष्टाचार का उन्मूलन: पुलिस में भ्रष्टाचार का उन्मूलन करना चाहिए।मानवाधिकारों का सम्मान: पुलिस को मानवाधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
महिला सुरक्षा: पुलिस को महिला सुरक्षा के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए।
आधुनिकीकरण: पुलिस को अपने कार्यों में आधुनिकीकरण करना चाहिए।
सामुदायिक पुलिसिंग: पुलिस को सामुदायिक पुलिसिंग को बढ़ावा देना चाहिए।
नीतियों और प्रक्रियाओं का पालन: पुलिस को नीतियों और प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए।
इन कदमों को उठाकर पुलिस अधिकारी पुलिस में सुधार कर सकते हैं और जनता के विश्वास को बढ़ा सकते हैं।
पुलिस के लिए अपराध से लड़ने में जनता की भागीदारी पर कुछ बताएं ।
सूचना देना: जनता पुलिस को अपराध की सूचना दे सकती है, जैसे कि अपराध की जगह, समय, और अपराधी की पहचान।
सीसीटीवी कैमरे लगाना: जनता अपने घरों और दुकानों में सीसीटीवी कैमरे लगा सकती है, जिससे अपराध की रिकॉर्डिंग हो सके।
पुलिस मित्र बनना: जनता पुलिस मित्र बन सकती है, जिससे वे पुलिस के साथ मिलकर अपराध को रोकने में मदद कर सकते हैं।
सामुदायिक पुलिसिंग में भाग लेना: जनता सामुदायिक पुलिसिंग में भाग ले सकती है, जिससे वे अपने क्षेत्र में अपराध को रोकने में मदद कर सकते हैं।
अपराध की रोकथाम के लिए काम करना: जनता अपराध की रोकथाम के लिए काम कर सकती है, जैसे कि युवाओं को अपराध के रास्ते से दूर रखने के लिए काम करना।
पुलिस को सहयोग देना: जनता पुलिस को सहयोग दे सकती है, जैसे कि अपराध की जांच में मदद करना या गवाही देना।इन तरीकों से, जनता पुलिस के साथ मिलकर अपराध को रोकने में मदद कर सकती है और अपने क्षेत्र को सुरक्षित बना सकती है।
पुलिस पर राजनेताओं और अन्य राजनैतिक दबाव का प्रभाव बहुत ही गंभीर हो सकता है। यह दबाव पुलिस की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है, जिससे अपराध की जांच और न्याय प्रणाली प्रभावित हो सकती है। कुछ प्रभाव हैं।
निष्पक्षता की कमी:- राजनैतिक दबाव के कारण पुलिस की निष्पक्षता कम हो सकती है, जिससे अपराध की जांच में पक्षपात हो सकता है।
दबाव में काम करना: पुलिसकर्मी राजनैतिक दबाव में काम करने के लिए मजबूर हो सकते हैं, जिससे वे अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर पाते हैं।
अपराध को बढ़ावा:- राजनैतिक दबाव के कारण पुलिस अपराध को बढ़ावा दे सकती है, जिससे समाज में अपराध बढ़ सकता है।
जनता का विश्वास कम होना:-राजनैतिक दबाव के कारण जनता का पुलिस पर विश्वास कम हो सकता है, जिससे पुलिस की विश्वसनीयता कम हो सकती है।
पुलिस की स्वतंत्रता की कमी:- राजनैतिक दबाव के कारण पुलिस की स्वतंत्रता कम हो सकती है, जिससे पुलिस अपने कार्यों को पूरा नहीं कर पाती है।इन प्रभावों को कम करने के लिए, पुलिस को अपनी निष्पक्षता और स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए कदम उठाने चाहिए।
पुलिस सुधार विधेयक 2013:- भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत एक विधेयक था जिसका उद्देश्य पुलिस प्रणाली में सुधार करना और इसे अधिक प्रभावी और जवाबदेह बनाना था। इस विधेयक में कई महत्वपूर्ण प्रावधान थे, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।
पुलिस आयोग की स्थापना:- विधेयक में पुलिस आयोग की स्थापना का प्रावधान था, जो पुलिस की नीतियों और कार्यों की देखरेख करेगा।
पुलिस की निष्पक्षता और स्वतंत्रता:– विधेयक में पुलिस की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए प्रावधान थे, जैसे कि पुलिस को राजनैतिक दबाव से मुक्त करना।
पुलिस की जवाबदेही:– विधेयक में पुलिस की जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए प्रावधान थे, जैसे कि पुलिस के कार्यों की नियमित जांच और मूल्यांकन।
पुलिस की प्रशिक्षण और विकास:- विधेयक में पुलिस की प्रशिक्षण और विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रावधान थे, जैसे कि पुलिसकर्मियों के लिए नियमित प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रम।
पुलिस की तकनीकी क्षमता:– विधेयक में पुलिस की तकनीकी क्षमता को बढ़ावा देने के लिए प्रावधान थे, जैसे कि पुलिस के लिए आधुनिक तकनीक और उपकरण प्रदान करना।विधेयक का उद्देश्य पुलिस प्रणाली को अधिक प्रभावी और जवाबदेह बनाना था, लेकिन यह विधेयक अभी तक पारित नहीं हुआ है।
भारतीय पुलिस व्यवस्था दुनिया के अन्य देशों की पुलिस व्यवस्था से काफी अलग है। भारत में पुलिस व्यवस्था अभी भी ब्रिटिश काल के भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 पर ही चलती है । इसके अलावा, भारत में पुलिस की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को लेकर कई सवाल उठते हैं, खासकर राजनैतिक दबाव और वर्ग, जाति, लिंग और धार्मिक विविधताओं के साथ संघर्ष के कारण पुलिस की विश्वसनीयता हमेशा सवालों के घेरे में आ जाती है। भारत की पुलिस व्यवस्था पर जारी की गई 2018 की रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण बिंदु शामिल थे:
पुलिसकर्मियों की कमी:- रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में पुलिसकर्मियों की कमी है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
पुलिस की निष्पक्षता:- रिपोर्ट में कहा गया था कि पुलिस की निष्पक्षता एक बड़ा मुद्दा है, खासकर राजनैतिक दबाव और वर्ग, जाति, लिंग और धार्मिक विविधताओं के साथ संघर्ष के कारण।
पुलिस की स्वतंत्रता:- रिपोर्ट में कहा गया था कि पुलिस की स्वतंत्रता एक बड़ा मुद्दा है, खासकर राजनैतिक दबाव के कारण।
पुलिस की तकनीकी क्षमता:- रिपोर्ट में कहा गया था कि पुलिस की तकनीकी क्षमता में सुधार की आवश्यकता है, खासकर अपराध की जांच और नियंत्रण में।
पुलिस की जवाबदेही:– रिपोर्ट में कहा गया था कि पुलिस की जवाबदेही एक बड़ा मुद्दा है, खासकर जनता के प्रति।
पुलिस की सामुदायिक भागीदारी:- रिपोर्ट में कहा गया था कि पुलिस की सामुदायिक भागीदारी में सुधार की आवश्यकता है, खासकर अपराध की रोकथाम में।
पुलिस की प्रशिक्षण और विकास:- रिपोर्ट में कहा गया था कि पुलिस की प्रशिक्षण और विकास में सुधार की आवश्यकता है, खासकर अपराध की जांच और नियंत्रण में।इन बिंदुओं को संबोधित करने के लिए, रिपोर्ट में कई सिफारिशें की गईं जैसे कि पुलिस सुधार, पुलिस की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को बढ़ावा देना, पुलिस की तकनीकी क्षमता में सुधार करना, और पुलिस की जवाबदेही और सामुदायिक भागीदारी में सुधार करना। कब होगा सुधार:असंवेदनशील पुलिस व्यवस्था