जाति जनगणना:एससी-एसटी समाज के लिए घातक है

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एससी-एसटी समाज के लिए घातक है जाति जनगणना 
एससी-एसटी समाज के लिए घातक है जाति जनगणना 

राजेश कुमार पासी

पिछले कुछ सालों से राहुल गांधी लगातार जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं । बिहार सरकार ने जाति जनगणना करवाई थी और उसकी रिपोर्ट भी जारी की क्योंकि जेडीयू सहित पूरा विपक्ष जाति जनगणना के पक्ष में है । वैसे अभी तक सिर्फ बिहार ने जाति जनगणना करवाई है जबकि कर्नाटक में दस साल पहले ही जाति जनगणना हो चुकी है लेकिन कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अभी तक रिपोर्ट जारी नहीं की है। बड़ा सवाल यह है कि 2011 में यूपीए सरकार ने जाति जनगणना की तरह ही सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण किया था लेकिन उसकी रिपोर्ट क्यों नहीं जारी  की गई। दस साल से मोदी सरकार भी सत्ता में है, उसने भी वो रिपोर्ट जारी नहीं की है। कमाल की बात यह है कि राहुल गांधी जाति जनगणना की बात करते हैं लेकिन उस रिपोर्ट को जारी करने की मांग कभी नहीं करते । यही बड़ा सवाल है कि जो सर्वेक्षण 2011 में किया गया उनकी रिपोर्ट क्यों नहीं जारी की गई। जाति जनगणना:एससी-एसटी समाज के लिए घातक है

  एक सच हमें पता होना चाहिए कि ये सर्वेक्षण कांग्रेस की सरकार में किया गया, इसलिए वो रिपोर्ट कांग्रेस के पास है। दूसरी तरफ भाजपा दस साल सरकार चला रही है, उसके पास भी वो रिपोर्ट है। समस्या दूसरे विपक्षी दलों की है जो इस सर्वेक्षण के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। वास्तव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां जानती हैं कि उस रिपोर्ट को जारी करने से क्या समस्याएं खड़ी हो सकती हैं, इसलिए दोनों पार्टियां इस मामले पर चुप हैं। राहुल गांधी जानते हैं कि जाति जनगणना से क्या हासिल होने वाला है क्योंकि उनके पास सर्वेक्षण से मिले आंकड़े मौजूद हैं। उन्होंने जाति जनगणना से मिलने वाले आंकड़ों को अपनी पार्टी के हित में इस्तेमाल करने की पूरी तैयारी कर ली है । सवाल यह है कि क्या दूसरे दलों ने ऐसी तैयारी की हुई है। इस पर विपक्ष के दूसरे दलों ने बिल्कुल भी विचार नहीं किया है। वो सिर्फ जाति जनगणना के बाद आरक्षण बढ़ाने की मांग करने की तैयारी कर रहे हैं।

         जाति जनगणना मुद्दा अब बहुत गंभीर हो गया है क्योंकि ऐसा लग रहा है कि वर्तमान मोदी सरकार अगले साल 2025 में जनगणना के साथ जाति जनगणना कराने जा रही है। इसकी दो वजह हैं, पहली वजह यह है कि भाजपा राहुल गांधी के इस सबसे बड़े मुद्दे को खत्म करना चाहती है । दूसरी वजह यह है कि भाजपा के पास 2011 का डाटा मौजूद है और उसने जाति जनगणना से मिलने वाले आंकड़ों का हिसाब किताब लगा लिया है। भाजपा जाति जनगणना के बाद पैदा होने वाली परिस्थितियों के लिए खुद को तैयार कर रही है। जाति जनगणना सिर्फ जातियों की गिनती तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का भी आकलन किया जाएगा। भाजपा सत्ता में है तो ये उसे ही फैसला करना है कि जाति जनगणना के दौरान कौन से आंकड़े इकट्ठे किए जाएं। वास्तव में जाति जनगणना के बाद पैदा होने वाली परिस्थितियों के लिए भाजपा और कांग्रेस पूरी तरह तैयार हैं लेकिन विपक्ष की दूसरी पार्टियों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। दोनों दलों ने जाति जनगणना का फायदा उठाने के लिए रणनीति बना ली होगी इसलिए कांग्रेस ने इसे सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया है और भाजपा ने जाति जनगणना करवाने का फैसला कर लिया है।

जाति जनगणना:एससी-एसटी समाज के लिए घातक है

राहुल गांधी जानते हैं कि हिन्दू समाज को जातियों में तोड़कर ही वो अपना जनाधार बढ़ा सकते हैं, इसलिए वो जाति जनगणना के बाद इसकी तैयारी कर रहे हैं। राहुल गांधी जानते हैं कि अगर वो कांग्रेस के जनाधार में वृद्धि करने में कामयाब हो जाते हैं तो मुस्लिम समाज कांग्रेस की तरफ आ जाएगा । वास्तव में मुस्लिम समाज उसे वोट देता है जो भाजपा को हरा सकता है। मुस्लिम समाज किसी भी दूसरे दल का समर्थक या विरोधी नहीं है, वो सिर्फ भाजपा का विरोधी है। मुस्लिम समाज उसी के साथ जाएगा जो भाजपा को हराने के काबिल नजर आएगा । राहुल गांधी दलित,आदिवासी और ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगाना चाहते हैं क्योंकि ये वोट बैंक कभी कांग्रेस के पास हुआ करता था और आज भाजपा और दूसरे विपक्षी दलों के पास चला गया है। 

        अब सवाल पैदा होता है कि एससी-एसटी समाज को जाति जनगणना से फायदे की जगह नुकसान होने की संभावना क्यों है। वास्तव में ये समाज अपनी जनसंख्या के अनुपात में पहले ही आरक्षण का लाभ ले रहा है इसलिए जाति जनगणना के बाद यह समाज आरक्षण बढ़ाने की वैसी  मांग नहीं कर सकता जैसी कि ओबीसी समाज द्वारा की जा सकती है। दूसरी तरफ सामाजिक योजनाओं में ये समाज अपनी जनसंख्या के अनुपात से ज्यादा लाभ लेता है क्योंकि इस समाज में ही सबसे ज्यादा गरीबी है। मोदी सरकार की आवास, शौचालय, राशन, उज्जवला और नल से जल जैसी योजनाओं का सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिम और एससी-एसटी समाज को हुआ है। जहां तक बात है ओबीसी समाज की तो उसे पहले ही आरक्षण उसकी जनसंख्या को 52% मानते हुए दिया गया है और जाति जनगणना के बाद इस समाज की वास्तविक जनसंख्या कम निकलने वाली है। राहुल गांधी जाति जनगणना के बाद आरक्षण में 50% आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की मांग करने वाले हैं जिसे सुप्रीम कोर्ट पहले ही नकार चुका है।

सवाल उठता है कि अगर आरक्षण की सीमा बढ़ा दी जाती है तो एससी-एसटी समाज को इसका कोई लाभ मिलने वाला नहीं है क्योंकि यह समाज पहले ही अपनी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण ले रहा है। ज्यादा से ज्यादा इसके आरक्षण में एक दो प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है और वो भी तब होगा जब देश में शत प्रतिशत आरक्षण लागू हो जाए जिसकी कोई संभावना नजर नहीं आती है। राहुल गांधी दलित आदिवासी समाज को अपने साथ जोड़ने के लिए संपत्ति के बंटवारे जैसा सपना बेच सकते हैं जो कि संविधान के अनुसार कभी नहीं हो सकता। अगर संविधान खत्म भी कर दिया जाए तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी ऐसा करना संभव नहीं है। सिर्फ देश में तानाशाही और कम्युनिस्ट शासन में ऐसा हो सकता है लेकिन फिर सवाल उठता है कि जिन देशों में तानाशाही या कम्युनिस्ट सरकारें हैं, जब वहां ऐसा नहीं हो सका है तो भारत में ऐसा कैसे हो सकता है। दूसरी बात यह है कि देश का एससी-एसटी समाज संविधान के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है वो संविधान को क्यों खत्म करने देगा। 

        वास्तव में जाति जनगणना से अराजकता के सिवा कुछ हासिल होने वाला नहीं है क्योंकि  हर जाति अपने अपने हक के लिए खड़ी हो सकती है। 21 अगस्त को भारत बंद इसलिए किया गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने दलित आरक्षण में उपवर्गीकरण का अधिकार राज्यों को दे दिया है और क्रीमी लेयर लागू करने की बात कही है । अगर जाति जनगणना के बाद एक-एक प्रतिशत या उससे भी कम जनसंख्या वाली जातियां अपने लिए आरक्षण में आरक्षण मांगने लगी तो क्या होगा, इस पर दलित संगठनों ने क्या विचार किया है। कुछ राज्यों में दलित आरक्षण को दो हिस्सों में बांटा गया है लेकिन जाति जनगणना के बाद कितने हिस्सों में बांटना पड़ सकता है, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। यही हालत ओबीसी आरक्षण में भी होने वाली है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जाति जनगणना केवल जातियों की गिनती तक सीमित नहीं रहेगी। सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण के बाद क्रीमी लेयर लागू करने की मांग की अनदेखी करना किसी के लिए भी संभव नहीं होगा। सबसे बड़ी समस्या मीणा, जाटव और यादव जैसी जातियों के लिए होने वाली है क्योंकि आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा इन्हीं जातियों ने उठाया है। जाति जनगणना के बाद दूसरी जातियां इनके खिलाफ खड़ी हो सकती है। आरक्षण में न केवल उपवर्गीकरण होगा बल्कि क्रीमी लेयर लागू करना पड़ेगा ।

दलित आदिवासी और पिछड़ी जातियों में ऐसा आपसी संघर्ष शुरू हो सकता है जिसकी कल्पना इन जातियों के संगठनों और राजनीतिक दलों ने अभी तक नहीं की है। वास्तव में राहुल गांधी सिर्फ अराजकता पैदा करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें सत्ता दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है। वो सत्ता पाने के लिए इतना छटपटा रहे हैं कि कुछ भी करने को तैयार हैं। किसी के पीछे चलने की जगह दलित आदिवासी और पिछड़ी जातियों के संगठन और राजनीतिक दल खुद विचार करें कि वो किस तरफ जा रहे हैं। क्या ये लोग जाति जनगणना के बाद जातियों के आपसी संघर्ष के लिए तैयार हैं और उस संघर्ष में उनका क्या होगा, इस पर एक बार जरूर विचार करें । क्या वो भी राहुल गांधी के तरह मिस इंडिया या बॉलीवुड में आरक्षण चाहते हैं या निजी क्षेत्र में आरक्षण का  सपना देख रहे हैं ।

जिस संविधान को लेकर राहुल गांधी घूम रहे हैं, उन्होंने उसे कभी पढ़ा नहीं है इसलिए नहीं जानते कि जो सपने वो देख रहे हैं, वो कभी सच होने वाले नहीं है । दूसरी बात है कि दलित-आदिवासी और पिछड़ों को सोचना होगा कि जिस कांग्रेस का इतिहास आरक्षण विरोधी रहा है,वो आज उनकी हितेषी क्यों बन रही है । ये कांग्रेस ही है जो दलितों के आरक्षण में मुस्लिम समाज को शामिल करने की कई कोशिशें कर चुकी है । ये कांग्रेस ही है, जो ओबीसी के आरक्षण में मुस्लिम समाज को शामिल करके उनके आरक्षण में डाका डाल चुकी है । ये कांग्रेस ही है जो धर्म परिवर्तन करने वाले दलितों और पिछड़ों को आरक्षण में शामिल करके दोहरा लाभ देना चाहती है। ये कांग्रेस ही है जिसने ओबीसी समाज के आरक्षण को चालीस साल तक रोक कर रखा । कांग्रेस सिर्फ अपनी लड़ाई लड़ रही है, उसे दलित-आदिवासी और पिछड़ों से कोई मतलब नहीं है। जाति जनगणना:एससी-एसटी समाज के लिए घातक है