
राजधानी लखनऊ के कैंसर संस्थान में डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ का लगातार पलायन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। पिछले आठ वर्षों में जहाँ 27 डॉक्टरों ने नौकरी छोड़ी, वहीं 37 नर्सिंग कर्मियों ने भी इस्तीफा दे दिया। कई विभाग बिना विशेषज्ञ डॉक्टरों के चल रहे हैं, जबकि कुछ पूरी तरह बंद हो चुके हैं। यदि डॉक्टरों का पलायन नहीं रुका, तो आने वाले समय में मरीजों के इलाज में बड़ी कठिनाई खड़ी हो सकती है। स्वास्थ्य सेवाओं पर संकट के बादल
लखनऊ। सरकारी चिकित्सा संस्थानों को छोड़कर डाक्टरों का जाना चिंता का विषय बनता जा रहा है। इससे इन संस्थानों की व्यवस्था चरमरा सकती है। पीजीआइ, केजीएमयू और कैंसर संस्थान से डाक्टरों का जाना जारी है। सूबे के कैंसर मरीजों को बेहतर इलाज मुहैया कराने के उद्देश्य से राजधानी में कल्याण सिंह सुपर स्पेशलियटी कैंसर संस्थान का निर्माण किया गया। इसकी शुरुआत साल 2017 से हुई, लेकिन इन आठ वर्षों में 27 डाक्टरों, 37 नर्सिंग आफिसर और पांच पैरामेडिकल स्टाफ के संस्थान छोड़ने से गंभीर मरीजों के इलाज पर साथ नर्सिंग स्टाफ का भी संस्थान संकट आ गया है।
91 पदों पर निकली भर्ती, चयन सिर्फ 21 डाक्टरों का
पिछले वर्ष कैंसर संस्थान में नियमित डॉक्टरों की भर्ती के लिए 91 पदों पर विज्ञापन जारी किया गया था, लेकिन केवल 140 आवेदन ही आए। इनमें से 21 चिकित्सकों का चयन हुआ, परंतु अब तक सिर्फ चार डॉक्टरों ने ही ज्वाइन किया है। यह स्थिति संस्थान की गंभीर मानव संसाधन कमी को उजागर करती है। संस्थान के एक डॉक्टर ने बताया कि “हम लोहिया और एसजीपीजीआई के डॉक्टरों जितना ही कार्य करते हैं, लेकिन वेतन और सुविधाओं में भारी अंतर है। यही कारण है कि डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ और अन्य कर्मचारी कैंसर संस्थान छोड़कर अन्य बड़े संस्थानों की ओर जा रहे हैं।” परिणामस्वरूप कई विभाग बिना विशेषज्ञ डॉक्टरों के चल रहे हैं, जबकि कुछ पूरी तरह बंद हो चुके हैं। मरीजों के इलाज में लगातार मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वेतन और सुविधाएं समान नहीं की गईं, तो यह पलायन रुकना मुश्किल होगा। परिणामस्वरूप प्रदेश की कैंसर चिकित्सा व्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है।
चिकित्सकों के साथ नर्सिंग स्टॉफ का भी संस्थान से मोहभंग हो रहा है। आलम यह है कि कई विभाग डाक्टरों और कर्मियों की कमी से जूझ रहे तो कई बंद हो चुके हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री योगी की कैंसर संस्थान को हैं। मुंबई टाटा हास्पिटल की तर्ज पर विकसित करने की योजना को बड़ा झटका लग सकता है। यदि डाक्टरों कर्मचारियों के पलायन को रोकने के और नर्सिंग स्टाफ समेत अन्य कर्मचारियों के पलायन को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए तो कैंसर रोगियों को उपचार मुहैया करना भी कठिन हो जाएगा।
डाक्टरों की कमी से बंद हो चुके छह विभाग
कैंसर संस्थान में इस समय 300 बेड पर मरीजों की भर्ती होती है। विभिन्न विभागों में प्रतिदिन करीब 400 रोगियों की ओपीडी होती है। साइबरनाइफ जैसी अत्याधुनिक मशीनं संस्थान में आ चुकी है और टोमोथेरेपी मशीन की खरीदारी प्रक्रिया आखिरी दौर में है, लेकिन सिर्फ मशीन से अस्पताल नहीं चलता है। खासकर, कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में हाईटेक उपकरण के साथ अनुभवी डाक्टरों एवं पैरामेडिकल स्टाफ की जरूरत होती है। यहां क्रिटिकल केयर मेडिसिन, मेडिकल आंकोलाजी,हास्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन, प्लास्टिक मेडिकल आंकोलाजी, रेडियोलाजी हास्पिटल,सर्जरी और यूरोलाजी जैसे महत्वपूर्ण विभाग चिकित्सक न होने के चलते बंद हो चुके हैं।
मोटा वेतन और सुविधाओं के लिए सरकारी अस्पताल छोड़ रहे डाक्टर
केजीएमयू में पिछले दो वर्ष में 10 चिकित्सक इस्तीफा दे चुके हैं, जबकि दो वर्ष में एक दर्जन डाक्टर एसजीपीजीआइ छोड़ चुके हैं। इसकी प्रमुख वजह कारपोरेट अस्पतालों में मिलने वाला मोटा वेतन और सुविधाएं हैं। इन दीनों संस्थानों में पिछले दो वर्ष से डाक्टरों का पलायन जारी है। दरअसल, सरकारी चिकित्सा संस्थानों में मरीजों का दबाव लगातार बढ़ रहा है, लेकिन डाक्टरों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। एक डाक्टर जबकि कारपोरेट अस्पताल में 175-200 मरीजों की ओपीडी करता है,जबकि कॉर्पोरेट अस्पताल में अधिकतम 50 मरीजों की ओपीडी होती है।
सरकारी संस्थानों में एक प्रोफेसर का वेतन अधिकतम साढ़े तीन लाख रुपये प्रतिमाह मिलता है,जबकि निजी अस्पताल इसके दो तीन गुणा वृद्धि पर डाक्टरों को अपने साथ जोड़ लेते हैं। साथ ही कई तरह की सुविधाएं भी देते हैं। केजीएमयू शिक्षक संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं, सरकारी संस्थानों में डाक्टरों की भीषण कमी है, लेकिन इसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। हम लोगों पर मरीजों की ओपीडी और सर्जरी के अलावा शिक्षण एवं शोध कार्य को भी जिम्मेदारी होती है। ऐसे में कई बार परिवार के लिए समय नहीं निकलत है। को हालांकि, सभी सरकारी डाक्टरों प्रैक्टिस अलाउंस भी दिया जाता है। लखनऊ के कैंसर संस्थान में डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ का पलायन थम नहीं रहा। आठ वर्षों में 27 डॉक्टर और 37 नर्सिंग स्टाफ ने छोड़ी नौकरी। भर्ती के बावजूद नहीं भर पाई खाली जगहें। विशेषज्ञ बोले— जब तक सरकारी संस्थानों में वेतन और सुविधाएं समान नहीं होंगी, पलायन रुकना मुश्किल है। स्वास्थ्य सेवाओं पर संकट के बादल






















