नई दिल्ली – बॉम्बे हाईकोर्ट के स्किन टू स्किन फैसले पर देश की शीर्ष अदालत ने बुधवार को रोक लगा दी। इसके साथ ही हाईकोर्ट से विस्तृत जानकारी मांगी गई है। दरअसल हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के वक्षस्थल (ब्रेस्ट) को बिना स्किन टू स्किन टच के छूने के अपराध को पॉक्सो ऐक्ट के दायरे से बाहर बताया था। यूथ बार असोसिएशन में बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाई कोर्ट के इस फैसले पर विवाद छिड़ गया था। नागरिक संगठनों एवं कई जानी-मानी हस्तियों ने इसे हास्यास्पद बताकर फैसले की आलोचना की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि बिना स्किन से स्किन टच किए किसी नाबालिग के अंगों को छुआ जाए तो उसे यौन हमलानहीं माना जा सकता।
आरोपी को बरी करने के आधार को बताते हुए कहा गया था कि आरोपी का बच्चे के साथा सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ है। इस पर अटॉर्नी जनरल ने सवाल उठाते हुए इसे खतरनाक बताया था, जिसके बाद उच्चतम न्यायलय ने इस पर रोक लगाते हुए आरोपी को बरी करने पर भी रोक लगा दी है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 12 वर्ष की एक नाबालिग के साथ हुए इस अपराध के मुकदमे की सुनवाई में कहा था कि बच्ची को निर्वस्त्र किए बिना, उसके वक्षस्थल (ब्रेस्ट) को छूना यौन हमला नहीं कहा जा सकता।
पॉक्सो का कानून क्या कहता है….?
इस कानून के अधिनियम 7 के मुताबिक कोई भी व्यक्ति जो किसी यौन मकसद से किसी बच्चे का वज़ाइना, पेनिस, एनस और ब्रेस्ट टच करे, या फिर उस बच्चे से अपना या किसी दूसरे व्यक्ति का वज़ाइना, पेनिस, एनस और ब्रेस्ट टच करवाए, या फिर यौन मकसद से कोई ऐसा फिजिकल कॉन्टेक्ट करे, जिसमें पेनिट्रेशन शामिल न हो, सेक्सुअल असॉल्ट कहलाएगा।कानून के जानकारों के अनुसार पॉक्सो कानून में यौन शोषण की परिभाषा विस्तृत है। इसमें शरीरिक संपर्क शामिल हो भी सकता है और नहीं भी लेकिन जो एक महत्वपूर्ण बात है वो यौन मकसद है जिसे शायद इस फैसले में नज़रअंदाज़ किया गया है। यह कानून अंग विशेषों को अलग से रेखांकित करते हुए उसे टच करने या टच करवाने की बात को स्पष्ट करने के बाद उसी वाक्य में आगे कहता है, “Any other act with sexual intent” यानी यौन मंशा के साथ किया गया ‘और कोई भी काम’ सेक्सुअल असॉल्ट माना जाएगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट का ये फैसला बीते कई दिनों से विवादों में है। आम लोगों से लेकर तमाम महिलावादी संगठन और सरकारी आयोग तक इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। इस फैसले को न सिर्फ गलत बताया जा रहा है बल्कि इसे आने वाले समय में अपराधियों के संरक्षण का जरिया भी माना जा रहा है।आपको बता दें कि ये फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का है, जिसे इस महीने की 19 तारीख को न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ द्वारा सुनाया गया। इस फैसले को राष्ट्रीय महिला आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। तो वहीं राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिखकर इस निर्णय के खिलाफ “तत्काल अपील” दायर करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए फिलहाल इस पर रोक लगा दी है।
पूरा मामला क्या है….?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक ये केस (सतीश बनाम महाराष्ट्र राज्य) 2016 का है। एक 39 वर्षीय आदमी एक 12 साल की बच्ची को अमरूद देने के बहाने अपने घर ले गया उसका यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की। पहले बच्ची के ब्रेस्ट को दबाया और उसकी सलवार उतारने की कोशिश ही कर रहा था, कि तभी बच्ची के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर उसकी मां वहां पहुंच गई और उसे बचा लिया।लड़की की मां के एफआईआर के मुताबिक जब लड़की चिल्लाई तो उस आदमी ने अपने हाथ से उसका मुंह दबाया और फिर कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर वहां से चला गया। तभी बेटी की आवाज सुनकर जब मां वहां आई तो उसने दरवाजा खोला और देखा की बेटी अंदर रो रही थी। फिर बेटी ने मां को अपनी आप बीती सुनाई।
हाईकोर्ट ने मुताबिक पॉक्सो एक्ट के तहत मामला तब बनता, जब व्यक्ति बच्ची का गुप्तांग छूने का प्रयास करता या उसे अपना गुप्तांग छूने के लिए मजबूर करता। लेकिन यहां यह मामला नहीं है। इस मामले में किसी भी तरह का सीधा शारीरिक संपर्क ‘स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट’ नहीं हुआ है। 12 साल की बच्ची का ब्रेस्ट दबाने के मामले में इसकी जानकारी नहीं है कि आरोपी ने उसका टॉप हटाया था या नहीं? न ही यह क्लियर है कि उसने टॉप के अंदर हाथ डाल कर ब्रेस्ट दबाया था। ऐसी सूचनाओं के अभाव में इसे यौन शोषण नहीं माना जाएगा। यह आईपीसी की धारा 354 के दायरे में आएगा, जो स्त्रियों की लज्जा के साथ खिलवाड़ करने से जुड़ा है।जज के अनुसार पॉक्सो के तहत यौन हमला एक अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है। जिसमें यौन इरादे के साथ कोई एक्ट किया गया हो, इसमें निजी अंगों को छूना या बच्चे को आरोपी के निजी अंग को छूना शामिल है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का मूल सिद्धांत यह है कि अपराध के लिए सजा अपराध की गंभीरता के अनुपात में होगी। इस तरह कोर्ट ने दोषी की सजा कम कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के ‘ त्वचा से त्वचा संपर्क” फैसले पर रोक लगाई –
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के तहत आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि बिना कपड़े उतारे बच्चे के स्तन दबाने से पोक्सो एक्ट की धारा 8 के अर्थ में “यौन उत्पीड़न” नहीं होता है।अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि निर्णय ‘अभूतपूर्व’ है और ‘एक खतरनाक मिसाल कायम करने की संभावना है।’सीजेआई बोबडे ने एजी को निर्णय को चुनौती देने के लिए उचित याचिका दायर करने का निर्देश दिया। अदालत ने आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी है और 2 सप्ताह के भीतर उसे जवाब दाखिल करने का नोटिस जारी किया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह के कृत्य से आईपीसी की धारा 354 के तहत ‘छेड़छाड़’ होगी और ये पोक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत यौन शोषण नहीं होगा।न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को संशोधित करते हुए यह अवलोकन किया, जिसमें एक 39 वर्षीय व्यक्ति को 12 साल की लड़की से छेड़छाड़ करने और उसकी सलवार निकालने के लिए यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया गया था।
इस मामले को चुनौती देते हुए यूथ बार एसोसिएशन ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एकल न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियां “अनुचित” हैं और एक बालिका के शील पर चिंता करने वाली हैं।यह भी कहा गया है कि लागू किए गए फैसले को पारित करते समय, एकल न्यायाधीश ने पैरा संख्या 12 में पीड़ित बच्ची का नाम दर्ज किया जो हानिकारक है और आईपीसी की धारा 228 ए की भावना के खिलाफ है जो कुछ अपराधों के पीड़ितों के नामों के प्रकाशन को रोक देता है।
इसके अलावा, पैरा संख्या 26 में, एकल न्यायाधीश ने कहा है कि,”प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क-यानी यौन प्रवेश के बिना त्वचा-से -त्वचा संपर्क यौन उत्पीड़न नहीं है।”याचिकाकर्ता के अनुसार, इस तरह के तर्क से एक भयावह स्थिति पैदा हो जाएगी और पूरे देश की प्रतिष्ठा कम होगी।
कुछ दिन पहले, राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने घोषणा की थी कि वह यह कहते हुए इसे फैसले को चुनौती देगा कि महिलाओं की सुरक्षा और सामान्य संरक्षण के विभिन्न प्रावधानों पर न केवल इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा बल्कि ये सभी महिलाओं का उपहास होगा और महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिए विधायिका द्वारा प्रदान किए गए कानूनी प्रावधानों का तुच्छीकरण होगा। इस बीच, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने महाराष्ट्र सरकार से इस फैसले के खिलाफ “तत्काल अपील” दायर करने को कहा है। एनसीपीसीआर प्रमुख ने अपने पत्र में रेखांकित किया कि ऐसा लगता है कि पीड़िता की पहचान का खुलासा किया गया है और आयोग का विचार है कि राज्य को इस पर ध्यान देना चाहिए और आवश्यक कदम उठाने चाहिए।