—– महिला शक्ति ही राष्ट्र शक्ति: RSS की शताब्दी यात्रा —-
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी) ने राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना की जिसका उद्देश्य महिलाओं को सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्र-निर्माण की मुख्यधारा में लाना रह है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की महिला शाखा राष्ट्रीय सेविका समिति ने लगभग एक शताब्दी में महिलाओं को आत्मनिर्भर, संगठित और सामाजिक रूप से जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मातृत्व, शिक्षा, नेतृत्व और समाज-निर्माण जैसी अवधारणाओं को समाहित करते हुए यह संगठन महिला सशक्तिकरण में अग्रणी रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सीधे महिलाओं के लिए कार्यक्रम नहीं चलाता, बल्कि इसके लिए इसकी महिला शाखा “राष्ट्रीय सेविका समिति” (Rashtra Sevika Samiti) और कई सहयोगी संगठन कार्यरत हैं। शताब्दी वर्ष (1925–2025) के दौरान महिलाओं के उत्थान के लिए RSS और सेविका समिति ने जिन प्रमुख कार्यों को अंजाम दिया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ {RSS} और महिला उत्थान {100 साल की यात्रा}
सन् 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर, जिन्हें स्नेह से मौसीजी कहा जाता है, ने महिलाओं को संगठित करने और उन्हें राष्ट्र सेवा की धारा से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना की। इस संगठन ने तीन मूल सिद्धांत दिए – मातृत्व, कर्तव्य और नेतृत्व। यही सिद्धांत आज लाखों सेविकाओं के जीवन को दिशा दे रहे हैं। सेविका समिति ने देशभर में हजारों शाखाएँ स्थापित कीं, जहाँ बालिकाओं और महिलाओं को शारीरिक शिक्षा, आत्मरक्षा, नेतृत्व और संस्कार का प्रशिक्षण दिया जाता है। आज सेविका समिति से जुड़ी लाखों महिलाएँ शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।
महिला उत्थान की दिशा में समिति ने अनेक छात्रावास, अनाथालय और स्वरोजगार केंद्र स्थापित किए। उत्तर-पूर्व भारत में विशेष रूप से कई हॉस्टल चलाए जा रहे हैं, जिनसे हजारों छात्राएँ लाभान्वित हो रही हैं। ग्रामीण अंचलों में महिलाओं को हस्तकला, रोजगार और स्व-सहायता समूहों से जोड़ा गया है। इतना ही नहीं, सेविका समिति ने समय-समय पर समाज को जागरूक करने का भी कार्य किया है। महिला सुरक्षा, मातृत्व स्वास्थ्य, नशा मुक्ति, शिक्षा और सांस्कृतिक चेतना पर विशेष कार्यक्रम चलाए जाते हैं। संकट के समय, चाहे बाढ़ हो, भूकंप हो या महामारी, सेविकाओं ने आगे बढ़कर सेवा कार्य किए हैं।
आज शताब्दी वर्ष के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और सेविका समिति महिलाओं की भागीदारी और नेतृत्व को और सशक्त बनाने की दिशा में काम कर रही है। शिक्षा से लेकर सामाजिक आंदोलन और राष्ट्र-निर्माण तक–हर क्षेत्र में महिलाएँ सक्रिय योगदान दे रही हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का यह संदेश स्पष्ट है कि महिला शक्ति ही राष्ट्र शक्ति है। यदि महिलाएँ आत्मनिर्भर,संस्कारित और सक्षम होंगी, तभी सशक्त भारत का सपना पूरा होगा।
1. महिला शाखा की स्थापना (1936)
- मातृत्व (Matritva), कर्तव्य (Kartavya) और नेतृत्व (Netritva)।
संगठन निर्माण और नेतृत्व– आज देशभर में लगभग 2,700+ शाखाएँ (शाखाओं की संख्या बढ़ती हुई) और 50+ पूर्णकालिक प्रचारिकाएँ सक्रिय हैं। लाखों सेविकाएँ समाजसेवा, शिक्षा और संस्कार निर्माण में भाग ले रही हैं। महिलाओं को नेतृत्व, आत्मरक्षा और प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाता है।
शिक्षा और संस्कार कार्यक्रम – देशभर में हॉस्टल और छात्रावास चलाए जाते हैं, विशेषकर उत्तर-पूर्व भारत में (18+ हॉस्टल, हजारों छात्राओं को लाभ)। शिक्षा में संस्कार, नैतिकता और राष्ट्रभक्ति पर बल। प्रोफेशनल महिलाओं (डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि) के लिए बौद्धिक शाखाएँ।
महिला सुरक्षा और स्वास्थ्य जागरूकता– आत्मरक्षा प्रशिक्षण (Self Defence)। स्वास्थ्य एवं स्वच्छता कार्यक्रम – मासिक धर्म स्वच्छता, मातृत्व स्वास्थ्य, नशामुक्ति जागरूकता। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर, पोषण कार्यक्रम और जागरूकता अभियान।
सामाजिक उत्थान कार्य– अनाथालय, महिला आश्रम और स्व-सहायता समूह (SHGs) का संचालन। महिलाओं को रोज़गार, हस्तकला और स्वरोज़गार प्रशिक्षण देना। संकट के समय (बाढ़, भूकंप, महामारी) महिलाओं की अग्रिम पंक्ति में सेवा।
समकालीन पहलें– डिजिटल युग में महिला नेतृत्व – वेबिनार, चर्चाएँ और सामाजिक अभियानों के जरिए। महिलाओं की राजनीतिक और सामाजिक भागीदारी बढ़ाने पर बल। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रेरित संगठनों में महिलाओं की हिस्सेदारी 33% से अधिक करने की कोशिश।
पिछले 100 वर्षों में RSS और उसकी महिला शाखा राष्ट्रीय सेविका समिति ने महिला उत्थान की दिशा में शिक्षा, सुरक्षा, संस्कार और आत्मनिर्भरता पर विशेष ध्यान दिया है।
आज यह संगठन न केवल पारंपरिक मूल्यों को मजबूत कर रहा है बल्कि आधुनिक समय की जरूरतों के अनुसार महिलाओं को आत्मविश्वासी, नेतृत्वकारी और राष्ट्रनिर्माण में सक्रिय भागीदार बना रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 100 वर्षों में महिला उत्थान हेतु योगदान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 1925 में हुई थी। संघ ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हुए महिलाओं को भी संगठित करने की आवश्यकता महसूस की। इसी उद्देश्य से 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी) ने राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना की। यह संगठन महिलाओं के लिए स्वतंत्र रूप से संचालित होता है और इसके मूल सिद्धांत हैं–मातृत्व, कर्तव्य और नेतृत्व।
भारत में महिला उत्थान का प्रश्न सदैव समाज और राष्ट्र-निर्माण से जुड़ा रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आधुनिक भारत तक, महिलाओं ने हर मोर्चे पर अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई। इसी क्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उसकी महिला शाखा राष्ट्रीय सेविका समिति ने पिछले 100 वर्षों में महिला उत्थान को एक नई दिशा देने का कार्य किया है।
सेविका समिति ने महिला उत्थान के क्षेत्र में शिक्षा, संस्कार और आत्मनिर्भरता पर विशेष बल दिया। देशभर में इसकी हजारों शाखाएँ सक्रिय हैं, जहाँ महिलाओं और बालिकाओं को शारीरिक प्रशिक्षण, आत्मरक्षा, अनुशासन और नेतृत्व का अभ्यास कराया जाता है। इसके अतिरिक्त, उत्तर-पूर्व सहित विभिन्न राज्यों में कई हॉस्टल और छात्रावास चलाए जा रहे हैं, जिनसे हजारों छात्राएँ लाभान्वित हो रही हैं।
समिति ने समय-समय पर महिलाओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी अभियानों को भी आगे बढ़ाया। मासिक धर्म स्वच्छता, मातृत्व स्वास्थ्य, नशा मुक्ति और पोषण जागरूकता जैसे विषयों पर सेविकाएँ ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सक्रिय रही हैं। आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में भी संगठन ने स्व-सहायता समूह और स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए हैं।आज जब RSS अपनी शताब्दी वर्षगांठ मना रहा है तब यह कहना उचित होगा कि राष्ट्रीय सेविका समिति ने भारतीय महिलाओं को न केवल आत्मविश्वासी और संस्कारित बनाया, बल्कि उन्हें राष्ट्र-निर्माण में सक्रिय भागीदारी के लिए भी तैयार किया है। यह संगठन महिला उत्थान की उस धारा का प्रतीक है, जो परंपरा और आधुनिकता दोनों को साथ लेकर आगे बढ़ रही है।
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स्थापना और उद्देश्य
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई। हालांकि महिलाओं के लिए इसकी अलग शाखा राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी) द्वारा की गई। इस समिति का मुख्य उद्देश्य था – महिलाओं को संगठित करना, उनमें आत्मविश्वास जगाना और उन्हें राष्ट्र-निर्माण की धारा से जोड़ना। समिति ने तीन मूल मंत्र दिए – मातृत्व, कर्तव्य और नेतृत्व।
संगठनात्मक विस्तार
आज देशभर में सेविका समिति की हजारों शाखाएँ सक्रिय हैं। लाखों महिलाएँ शाखाओं में शारीरिक शिक्षा, आत्मरक्षा, नेतृत्व और संस्कारों का प्रशिक्षण ले रही हैं। इसके अतिरिक्त, पूर्णकालिक प्रचारिकाएँ पूरे देश में समाजसेवा और महिला सशक्तिकरण का कार्य कर रही हैं।
महिला शिक्षा और संस्कार
समिति ने शिक्षा को महिला उत्थान का आधार माना। उत्तर-पूर्व भारत सहित देश के कई हिस्सों में छात्रावास और हॉस्टल संचालित किए जा रहे हैं, जिनमें हजारों बालिकाएँ शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। यहाँ शिक्षा के साथ-साथ भारतीय संस्कार, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति का भी प्रशिक्षण दिया जाता है।
आत्मरक्षा और स्वास्थ्य कार्यक्रम
सेविका समिति ने महिलाओं को केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें आत्मरक्षा और शारीरिक प्रशिक्षण भी दिया। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता, मातृत्व स्वास्थ्य और नशा मुक्ति जैसे विषयों पर जागरूक किया गया।
सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए समिति ने स्व-सहायता समूह, स्वरोजगार प्रशिक्षण और हस्तकला केंद्र चलाए। संकट की घड़ी में—बाढ़, भूकंप और महामारी के समय—महिलाओं ने राहत कार्यों में सक्रिय योगदान दिया।
समकालीन पहल
समय के साथ समिति ने अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार किया। आज प्रोफेशनल महिलाओं—डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, अध्यापिका—के लिए विशेष बौद्धिक शाखाएँ चलाई जा रही हैं। डिजिटल युग में वेबिनार, चर्चा और सामाजिक अभियानों के माध्यम से महिलाओं की नई पीढ़ी को भी जोड़ा जा रहा है।
पिछले 100 वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्रीय सेविका समिति ने महिला उत्थान के क्षेत्र में शिक्षा, सुरक्षा, संस्कार और आत्मनिर्भरता पर गहन कार्य किया है। इस संगठन ने यह सिद्ध किया कि महिला शक्ति केवल परिवार की धुरी नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण की भी आधारशिला है। आज शताब्दी वर्ष के अवसर पर यह कहना उचित होगा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का यह प्रयास भारतीय महिलाओं को आत्मविश्वासी, संस्कारित और सक्षम नागरिक बनाने की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध हुआ है।
एक सदी का संकल्प–आत्मनिर्भर और संस्कारित महिला निर्माण
“एक सदी का संकल्प – आत्मनिर्भर और संस्कारित महिला निर्माण” केवल एक नारा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी महिला शाखा राष्ट्रीय सेविका समिति की सतत साधना का परिणाम है। पिछले 100 वर्षों में RSS ने यह सिद्ध किया है कि राष्ट्र-निर्माण तभी संभव है, जब महिलाएँ आत्मनिर्भर हों, शिक्षित हों और संस्कारित हों। 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी) द्वारा स्थापित सेविका समिति ने मातृत्व, कर्तव्य और नेतृत्व को जीवन का आधार बनाते हुए लाखों महिलाओं को संगठित किया। आज इसकी शाखाओं में न केवल बालिकाएँ शिक्षा और आत्मरक्षा का प्रशिक्षण ले रही हैं, बल्कि आधुनिक पेशेवर महिलाएँ भी राष्ट्र सेवा और सामाजिक उत्थान की धारा से जुड़ रही हैं। यह एक सदी का संकल्प है – ऐसी महिला शक्ति का निर्माण करना, जो परंपरा और आधुनिकता दोनों को साथ लेकर समाज और राष्ट्र के उत्थान में अग्रणी भूमिका निभाए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 1925 में राष्ट्रीय पुनर्जागरण के संकल्प के साथ हुई थी। संघ का मानना रहा है कि समाज तभी सशक्त होगा, जब उसकी महिला शक्ति जागृत और संगठित होगी। इसी सोच को आगे बढ़ाने के लिए 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर, जिन्हें स्नेहपूर्वक मौसीजी कहा जाता है, ने राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना की। यह संगठन महिलाओं के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और पिछले आठ दशकों से अधिक समय से महिला उत्थान और राष्ट्र-निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
मातृत्व, कर्तव्य और नेतृत्व की धारा
सेविका समिति ने अपने कार्यक्षेत्र की नींव तीन प्रमुख मूल्यों पर रखी—मातृत्व, कर्तव्य और नेतृत्व। मातृत्व ने महिला की करुणा और संवेदनशीलता को शक्ति में बदला, कर्तव्य ने उसे समाज और परिवार के प्रति जागरूक बनाया, और नेतृत्व ने उसे राष्ट्र के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए तैयार किया।
शिक्षा और आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रयास
पिछले 100 वर्षों में RSS और सेविका समिति ने महिला शिक्षा और आत्मनिर्भरता पर विशेष बल दिया। देशभर में हजारों शाखाएँ चल रही हैं, जहाँ बालिकाओं और महिलाओं को शारीरिक प्रशिक्षण, योग, व्यायाम, आत्मरक्षा और अनुशासन का अभ्यास कराया जाता है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समिति द्वारा संचालित छात्रावास और शैक्षिक संस्थान महिलाओं को उच्च शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराते हैं।
सामाजिक जागरूकता और सेवा कार्य
महिला उत्थान केवल शिक्षा तक सीमित नहीं रहा। समिति ने स्वास्थ्य, पोषण, मातृत्व सुरक्षा और मासिक धर्म स्वच्छता जैसे मुद्दों पर विशेष अभियान चलाए। स्व-सहायता समूहों और कौशल प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया गया। प्राकृतिक आपदाओं और संकट के समय भी सेविका समिति की कार्यकर्ता सेवा कार्यों में सक्रिय रहती हैं।
परंपरा और आधुनिकता का संतुलन
सेविका समिति ने महिलाओं को यह सिखाया कि आधुनिक शिक्षा और करियर की दिशा में आगे बढ़ते हुए भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहना संभव है। यही कारण है कि समिति की शाखाओं में छात्राएँ, गृहिणियाँ, पेशेवर महिलाएँ और उद्यमी सभी एक साथ संस्कार और राष्ट्र सेवा की भावना से कार्य करती हैं।
एक सदी का संकल्प
RSS की शताब्दी यात्रा केवल संगठन के विस्तार की कहानी नहीं है, बल्कि यह महिला शक्ति को आत्मनिर्भर और संस्कारित बनाने का संकल्प है। बीते सौ वर्षों ने यह प्रमाणित किया है कि यदि महिलाओं को उचित शिक्षा, संस्कार और अवसर दिए जाएँ, तो वे समाज और राष्ट्र को नई दिशा देने में सक्षम हैं।
आज जब संघ अपनी 100वीं वर्षगांठ मना है, तब यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय सेविका समिति ने भारतीय महिला को नई पहचान दी है—आत्मविश्वास से भरी, राष्ट्र सेवा के लिए तत्पर और संस्कारित नारी। यही है उस एक सदी के संकल्प का सार, जो आने वाले समय में भी भारत को सशक्त और समर्थ बनाएगा।
महिला शक्ति ही राष्ट्र शक्ति: RSS की शताब्दी यात्रा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने पिछले एक शताब्दी में न केवल समाज और राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया है, बल्कि महिलाओं के उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण पहल की है। महिलाओं को संगठित करने और उन्हें राष्ट्र सेवा के क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी के लिए राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी) द्वारा की गई थी।
सेविका समिति का मूल मंत्र रहा – मातृत्व, कर्तव्य और नेतृत्व। इन मूल्यों के माध्यम से महिलाएँ शिक्षा, संस्कार और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। आज देशभर में हजारों शाखाएँ और छात्रावास संचालित हैं, जिनमें बालिकाओं और महिलाओं को शारीरिक प्रशिक्षण, आत्मरक्षा, योग और नेतृत्व कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है।
समिति ने महिला स्वास्थ्य, पोषण, मातृत्व सुरक्षा, मासिक धर्म स्वच्छता और नशा मुक्ति जैसे विषयों पर भी कई जागरूकता अभियान चलाए। आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में स्व-सहायता समूह और स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए, ताकि महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वतंत्र बन सकें।
RSS की यह शताब्दी यात्रा इस बात का प्रमाण है कि महिला शक्ति ही राष्ट्र शक्ति है। शिक्षा, संस्कार और अवसरों के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने से न केवल समाज मजबूत होता है, बल्कि राष्ट्र भी समृद्ध और प्रगतिशील बनता है। आज सेविका समिति की महिला सशक्तिकरण की पहल, नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
एक सदी का संकल्प – आत्मनिर्भर और संस्कारित महिला निर्माण
महिला शक्ति ही राष्ट्र शक्ति है। पिछले सौ वर्षों में हमारे समाज ने महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए अनेक प्रयास किए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक जागरूकता और आर्थिक स्वतंत्रता के माध्यम से महिलाएं अब केवल परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की रीढ़ बन रही हैं।
आज का समय महिलाओं के लिए अवसरों से भरा है। आत्मनिर्भर महिला न केवल अपने परिवार का सहारा बनती है, बल्कि समाज और राष्ट्र की प्रगति में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। संस्कारित महिला, जो नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारियों को समझती है, वह परिवार और समाज में स्थिरता और सम्मान स्थापित करती है।
एक सदी का यह संकल्प केवल शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आंदोलन है – महिलाओं को समान अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार प्रदान करने का आंदोलन। जब महिलाएं सशक्त होंगी, तभी समाज का हर क्षेत्र सशक्त होगा।
हमारा लक्ष्य स्पष्ट है – प्रत्येक महिला को आत्मनिर्भर बनाना, उसे शिक्षा और संस्कारों से सजाना और उसे समाज में बराबरी का अधिकार दिलाना। यही हमारी सदी की प्रतिबद्धता है।
100 वर्षों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ {RSS} का योगदान–महिला उत्थान से राष्ट्र निर्माण तक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने पिछले एक शताब्दी में न केवल समाज और राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया है, बल्कि महिलाओं के उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण पहल की है। महिलाओं को संगठित करने और उन्हें राष्ट्र सेवा के क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी के लिए राष्ट्रीय सेविका समिति की स्थापना 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी) द्वारा की गई थी। सेविका समिति का मूल मंत्र रहा – मातृत्व, कर्तव्य और नेतृत्व। इन मूल्यों के माध्यम से महिलाएँ शिक्षा, संस्कार और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। आज देशभर में हजारों शाखाएँ और छात्रावास संचालित हैं, जिनमें बालिकाओं और महिलाओं को शारीरिक प्रशिक्षण, आत्मरक्षा, योग और नेतृत्व कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है।
समिति ने महिला स्वास्थ्य, पोषण, मातृत्व सुरक्षा, मासिक धर्म स्वच्छता और नशा मुक्ति जैसे विषयों पर भी कई जागरूकता अभियान चलाए। आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में स्व-सहायता समूह और स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए, ताकि महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वतंत्र बन सकें। RSS की यह शताब्दी यात्रा इस बात का प्रमाण है कि महिला शक्ति ही राष्ट्र शक्ति है। शिक्षा, संस्कार और अवसरों के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने से न केवल समाज मजबूत होता है, बल्कि राष्ट्र भी समृद्ध और प्रगतिशील बनता है। आज सेविका समिति की महिला सशक्तिकरण की पहल, नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
महिला सशक्तिकरण केवल महिला का अधिकार नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की प्रगति की नींव है। इस सदी के संकल्प के साथ हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर महिला अपने सपनों को पूरा कर सके और समाज में अपनी भूमिका निभा सके।