दोस्तों, आज हम एक ऐसी सच्चाई पर बात करेंगे, जिसे तोड़ने के लिए सैकड़ों सालों से षड्यंत्र किए जा रहे हैं।
लेकिन सवाल उठता है – क्या ब्राह्मण और यादव अलग हो सकते हैं..?
क्या कोई कृष्ण और सुदामा की दोस्ती भूल सकता है?
क्या कोई भूल सकता है कि यदु, हमारे महाराजा यदु, कौन थे..?
महाराजा ययाति की धर्मपत्नी देवयानी, जो स्वयं एक ब्राह्मणी और भगवान शुक्राचार्य की पुत्री थीं, उन्हीं से उत्पन्न हुए यदु। यही यदु आगे चलकर यदुवंश के संस्थापक बने।
मतलब शुरुआत से ही यदुवंश की जड़ें ब्राह्मणों में थीं।
अब जरा सोचिए – भगवान परशुराम के शिष्य कौन थे…?
पहले शिष्य: भीष्म पितामह – एक क्षत्रिय।
दूसरे शिष्य: द्रोणाचार्य – एक ब्राह्मण।
तीसरे शिष्य: कर्ण – जिन्हें शूद्र कहा जाता है।
तीनों को उन्होंने अपनी दिव्य विद्या दी।
परन्तु कर्ण के साथ परशुराम ने क्या किया किसी से छुपा नहीं है क्या किया आप लोग खुद सोचें
भगवान परशुराम ने अपना सबसे महान अस्त्र – सुदर्शन चक्र किसे दिया…?
भगवान परशुराम ने अपना सुदर्शन चक्र भगवान कृष्ण को दिया क्योंकि वे इसे धारण करने के योग्य थे. था। यह चक्र भगवान विष्णु का एक शक्तिशाली अस्त्र है, जिसे परशुराम ने कृष्ण को शिक्षा पूरी करने के बाद प्रदान किया था.
- भगवान परशुराम ने सुदर्शन चक्र भगवान कृष्ण को तब दिया जब वे शिक्षा ग्रहण कर रहे थे.
- यह चक्र भगवान विष्णु का एक प्रमुख अस्त्र है.
- सुदर्शन चक्र भगवान शिव द्वारा निर्मित किया गया था और बाद में भगवान विष्णु को दे दिया गया था.
- इस चक्र का उपयोग कृष्ण ने कई राक्षसों और बुराई शक्तियों को पराजित करने के लिए किया.
अब बताइए, जब गुरु परशुराम स्वयं यादवों को इतना मान-सम्मान देते थे, तब ब्राह्मण और यादव अलग कैसे हो सकते हैं..?
इतिहास में एक घटना और दर्ज है—जब शस्त्रधारी शत्रु भगवान परशुराम का वध करने आए, तब यदुवंश के वीर भद्रसेन ने अपनी स्त्रियों और बच्चों को आगे कर दिया। उस समय युद्ध के नियमों के अनुसार, स्त्रियों और बच्चों पर आक्रमण नहीं किया जाता था। लाखों की सेना के सामने वे हटे नहीं और भगवान परशुराम की जीवित ढाल बनकर खड़े हो गए। इतिहास गवाह है कि कोई भी शत्रु उन्हें छू भी नहीं पाया।
ये केवल कथाएं नहीं, ऐतिहासिक सत्य हैं। यादव और ब्राह्मण – हमेशा से एक रहे हैं।
फिर भी कुछ लोग हैं जो इस एकता से डरते हैं, जो हमारे समाज को बांटना चाहते हैं। लेकिन हमें याद रखना होगा—यदुवंश और ब्राह्मणों का रिश्ता अटूट है, कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की तरह अमर है।
लेकिन यह भी याद् रखना होगा की जब भगवान श्री कृष्णा ने मित्र सुदामा को दो लोक दे दिया था दो लोक प्राप्त होने के बाद सुदामाजी कभी मुड़कर दोबारा मित्र श्री कृष्णा से मिलने नहीं गए थे। “जो इतिहास को जानता है, वह कभी फूट नहीं डाल सकता। आइए, हम सब एक हों और अपनी जड़ों को याद रखते हुए आगे बढ़ें। “
इतिहास में एक और घटना है…
जब भगवान परशुराम पर युद्ध का संकट आया, तो यदुवंशीय वीर भद्रसेन अपनी स्त्रियों और बच्चों को लेकर जीवित ढाल बनकर खड़े हो गए। सामने लाखों की सेना थी। पर कोई उन्हें छू भी नहीं सका। क्योंकि उन्हें विश्वास था – धर्म की रक्षा बल से नहीं, समर्पण से होती है। यह सिर्फ वीरता नहीं थी… यह था – परंपरा के लिए प्राण देने का संकल्प है—पूर्ण समर्पण है