अयोध्या पंचायत चुनाव की डुगडुगी बज गई है इसके चलते ग्राम प्रधानोें की घड़कने बढ़ गईं हैं। वे अपनी सीट बरकरार रखने के लिए हर जतन कर रहे हैं। वोटरों को भी खुश कर रहे हैं जो सबसे कठिन काम है। एक अक्टूबर से मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य शुरू हो जाएगा। हाईटेक बीएलओ एड्रायड मोबाइल के साथ घर घर जाएंगे। इसी के साथ प्रधान जी भी इस काम में लग जाएंगे कि किसी का वोट बनने से न रह जाए।
ग्राम पंचायतों का कार्यकाल 26 दिसम्बर को पूरा हो रहा है और आयोग ने जिस तरह से मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्यक्रम घोषित किया है उससे लगता है कि जनवरी में चुनाव करा लिए जाएंगे। इस तरह चुनाव में कम समय बचा है और पिछले 6 महीने का समय तो कोविड में ही चला गया जो कि प्रधानों के लिए चुनाव से ठीक पहले का सबसे महत्वपूर्ण समय था। ज्यादातर प्रधानों की समस्या यह है कि इस दौरान काम तो हुए लेकिन प्रधान जी के मनमाफिक ऐसे काम नहीं हो पाए जिससे उनका वोट वैंक बढ़ जाता।
यदि स्थितियां सामान्य होती तो प्रधान के हिसाब से काम होता। अब चुनावी वर्ष में वोटों के गणित के हिसाब से काम न हो पाना प्रधानों को भारी पड़ रहा है। समस्या यह भी है कि अब उनके पास इतना समय भी नहीं बचा है कि कुछ काम करा सकें। ऐसे में वोटरों को अपने साथ रखना एक बड़ी चुनौती है जो प्रधानों को परेशान किए है। जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है यह चुनौती और भी बढ़ती चली जा रही है। पहले यह लग रहा था कि शायद चुनाव अप्रैल या मई में होंगे और उस समय तक परिस्थितियां बदल जाएंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस तेजी से काम शुरु किया गया है उसके चलते चुनाव तो जनवरी में होते दिखाई दे रहे हैं जो प्रधानों की धड़कने बढ़ाने के लिए काफी हैं।