लखीमपुर खीरी के गोला गोकर्णनाथ का पौराणिक शिव मंदिर शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। प्राचीन और अद्भुत शिवलिंग की स्थापना का प्रसंग रामायण काल से जुड़ा है। मान्यता है कि भगवान शंकर ने यहां मृग रूप में विचरण किया था। वराह पुराण में लिखा है कि भगवान शिव वैराग्य उत्पन्न होने पर यहां के वन क्षेत्र में भ्रमण करते हुए, रमणीय स्थल पाकर यहीं रम गए। ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र को चिंता हुई और वे उन्हें ढूंढते हुए यहां पहुंचे तो यहां वन में एक अद्भुत मृग को सोते देख समझ गए कि यही शिव हैं। वे जैसे ही उनके निकट गए तो आहट पाकर मृग भागने लगा। उत्तर प्रदेश का पवित्र तीर्थ स्थल गोला गोकर्णनाथ
सावन का पवित्र माह चल रहा है और इस समय भक्त भगवान शिव के दर्शन करने लिए शिवनगरी जाते हैं। कोई कांवड़ यात्रा में शामिल होकर तो कोई अन्य माध्यमों से भोलेनाथ का आर्शीवाद लेने के लिए उनकी शरण में जाता है। यूपी के लखीमपुरी खीरी जिले की गोला तहसील में भी छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव की नगरी गोला गोकर्णनाथ है, जहां पर दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। गोला के गोकर्णनाथ के बारे में कहा जाता है कि सतयुग में लंका का राजा रावण भगवान शिव को यहां लाया था। गोला गोकर्ण नाथ मंदिर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह गोला गोकर्णनाथ, उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित है। इस मंदिर को छोटी काशी और गोकर्ण नाथ धाम भी कहा जाता है।
लखीमपुर खीरी यहाँ के बड़े से सरोवर के किनारे श्रीगोकर्णनाथ महादेव का बड़ा मंदिर है। 8 किलोमीटर की परिधि में 5प्राचीन कुंड हैं, जहाँ हर कुंड के पास शिवालय हैं। गोकर्णनाथ महादेव के अलावा अन्य 4 शिव मंदिर हैं- देवेश्वर महादेव/गदेश्वर महादेव/बटेश्वर महादेव और स्वर्णेश्वर महादेव (स्वर्ण+ईश्वर = स्वर्णेश्वर)मन्दिर लक्ष्मणजती मन्दिर व प्राचीन बाबा भूतनाथ मन्दिर।
जनश्रुतियों के अनुसार गोला गांव पहले शिव मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित था।फिर लंका के राजा रावण ने भगवान शिव को अपनी लंकापुरी में ले जाने के लिए प्रार्थना की तो भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसके साथ चलने को कहा लेकिन भोलेनाथ ने रावण से एक शर्त रखी कि कैलाश से लंका तक बीच में कहीं भी तुम शिवलिंग को धरती पर नहीं रखोगे अगर तुमने शिवलिंग को धरती पर रख दिया तो हम वहीं पर स्थापित हो जायेंगे। तो रावण ने उनकी शर्त को स्वीकार कर लिया और शिवलिंग को लेकर आकाश मार्ग से लंका के लिए पलायन किया। यह देख कर सभी देवता भयभीत हो गए क्यूंकि रावण बहुत ही अत्याचार करता था यह सोचकर सभी देवता विष्णु भगवान के पास पहुंचे तो भगवान विष्णु ने शंकर जी से प्रार्थना की तब भगवान शंकर ने रावण को लघु शंका से अवरोध किया। रावण शिवलिंग रूप में भगवान शिव को एक चरवाहे को देकर इस हिदायत के साथ देकर लघुशंका गया कि वह शिवलिंग भूमि पर नहीं रखेगा लेकिन, जब काफी देर तक रावण के वापस न आने पर चरवाहे ने भगवान शिव को भूमि पर रख दिया। जब रावण शिव को नहीं उठा सका तो गुस्से में अपने अंगूठे से शिवलिंग को भूमि में दबा दिया। अंगूठे से दबने के कारण शिवलिंग गाय के कान के आकार का हो गया। इसके चलते यह शिवलिंग गोकर्णनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
त्रेता युग में राम-रावण युद्ध के समय रावण ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया ताकि वह युद्ध जीत सके। शिवजी ने शिवलिंग का आकार लेकर रावण को लंका में शिवलिंग स्थापित करने का निर्देश दिया। इसके लिए भगवान शिव ने एक शर्त रखी कि शिवलिंग को बीच में कहीं पर भी नीचे नहीं रखना है। लेकिन रास्ते में रावण को लघुशंका लगी तो उसने एक गड़रिये को शिवलिंग पकड़ने को कहा। गड़रिया का रूप धारण करके स्वयं भगवान विष्णु आये थे,कहते हैं कि भगवान शिव ने अपना वजन बढ़ा दिया और गड़रिये को शिवलिंग नीचे रखना पड़ा। रावण को भगवान शिव की चालाकी समझ में आ गयी और वह बहुत क्रोधित हुआ। रावण समझ गया कि शिवजी लंका नहीं जाना चाहते ताकि राम युद्ध जीत सकें। क्रोधित रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को दबा दिया जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) जैसा निशान बन गया। गड़रिये को मारने के लिए रावण ने उसका पीछा किया। अपनी जान बचाने के लिए भागते समय वह एक कुएं में गिर कर मर गया। वह जगह आज भूतनाथ के नाम से प्रसिद्ध है,आज भी हर साल वहाँ पर मेला लगता है।
वराह पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर ने तीन सींगों वाले एक मृग का रूप धारण कर लिया। देवतागण विष्णु के नेतृत्व में उन्हें खोजने पृथ्वी पर आये। ब्रह्मा और इंद्र मृगरुपी शिव के दो सींग पकड़ लिए। तभी शंकर अपने तीनों सींग छोड़ कर अदृश्य हो गए। ये सींग लिंगरूप में बदल गए। देवताओं ने शिव के तीन लिंगों में से यहाँ गोकर्णनाथ में स्थापित किया, दूसरा शुंगेश्वर (भागलपुर, बिहार में और तीसरा शिवलिंग इंद्र इन्द्रलोक ले गए। जब रावण ने इंद्र पर विजय हासिल की तो इन्द्रलोक से वह तीसरा सींग (गोकर्ण लिंग) उठा लाया किन्तु लंका के मार्ग पर जाते हुए भूल से उसने इसी गोकर्ण क्षेत्र में भूल से भूमि पर रख दिया। शिव तब यहीं स्थिर हो गए। उत्तर प्रदेश का पवित्र तीर्थ स्थल गोला गोकर्णनाथ